जैविक खाद्य उत्पादों के लिए पहली बार बनी राष्ट्रीय स्तर की सहकारी समिति, वैश्विक बाजार में पैठ बढ़ाने पर फोकस

ऑर्गेनिक फूड का ग्लोबल मार्केट अनुमानित 10 लाख करोड़ रुपये का है। इसमें भारत की हिस्सेदारी सिर्फ 2.7 फीसदी है। इस बाजार में भारत की पैठ बढ़ाने के असीमित अवसर हैं। सरकार इस अवसर का लाभ उठाना चाहती है। इससे न सिर्फ किसानों की आय बढ़ेगी बल्कि निर्यात में भी इजाफा होगा।

किसानों की आमदनी बढ़ाने और भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के मकसद से केंद्र सरकार ने जैविक खाद्य उत्पादों (ऑर्गेनेकि फूड) को बढ़ावा देने और इसका निर्यात बढ़ाने का फैसला किया है। इसके लिए अपनी तरह की पहली पहल करते हुए जैविक उत्पादों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सहकारी समिति बनाने की घोषणा की गई है। ऑर्गेनिक फूड का ग्लोबल मार्केट अनुमानित 10 लाख करोड़ रुपये का है। इसमें भारत की हिस्सेदारी सिर्फ 2.7 फीसदी है। इस बाजार में भारत की पैठ बढ़ाने के असीमित अवसर हैं। सरकार इस अवसर का लाभ उठाना चाहती है। इससे न सिर्फ किसानों की आय बढ़ेगी बल्कि निर्यात में भी इजाफा होगा।

राष्ट्रीय स्तर की यह सहकारी समिति अन्य सहकारी समितियों की सहायता करेगी ताकि उनके सदस्य किसानों को उनकी उपज की ज्यादा से ज्यादा कीमत मिल सके। राष्ट्रीय समिति ऑर्गेनिक उत्पादों का बड़े पैमाने पर एकत्रीकरण, ब्रांडिंग और मार्केटिंग करने के साथ-साथ उनके परीक्षण और कम लागत पर प्रमाणीकरण की सुविधा भी मुहैया कराएगी। इसके लिए उन मान्यता प्राप्त जैविक परीक्षण प्रयोगशालाओं और प्रमाणन निकायों को सूचीबद्ध करेगी जो परीक्षण और प्रमाणन की लागत को कम करने के लिए समिति के मानदंडों को पूरा करेगी।  अमूल के ब्रांड और मार्केटिंग नेटवर्क का इस्तेमाल कर विभन्न कारोबारी मॉडल को अपनाया जाएगा और खुद का नेटवर्क विकसित किया जाएगा। इसके अलावा समिति जैविक उत्पादकों के तकनीकी मार्गदर्शन, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण आदि की भी सुविधा मुहैया कराएगी।

इस समय देश में 8.54 लाख पंजीकृत सहकारी समितियां हैं जिनके 29 करोड़ से अधिक सदस्य हैं। इन सदस्यों में से ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों से हैं जो कृषि और संबद्ध क्षेत्र से संबंधित गतिविधियों में लगे हुए हैं। केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि सहकारी क्षेत्र की इस ताकत का उपयोग ऑर्गेनिक क्लस्टर और इसकी पूरी आपूर्ति श्रृंखला के विकास के लिए किया जाएगा। तीन प्रमुख सहकारी समितियों गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड (GCMMF), नेशनल एग्रीकल्चरल को-ऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NAFED), नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NCCF) और राष्ट्रीय स्तर के दो संगठन राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) और राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) ने इस क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर की इकाई स्थापित करने के लिए हाथ मिलाया है। देश में इस तरह के अम्ब्रेला ऑर्गेनाइजेशन की आवश्यकता लगातार महसूस की जा रही थी। दुनिया में भारत के जैविक उत्पादकों की सबसे बड़ी संख्या होने के बावजूद प्रति उत्पादक कम भूमि और अपर्याप्त उपज के कारण जैविक उत्पाद बाजार में उनका योगदान कम है। दुनिया के कुल जैविक उत्पादकों में से लगभग आधे करीब 16 लाख भारत के हैं। इसके अलावा प्रक्रियाओं, बाजार की स्थितियों और ऐसे उत्पादों से मुनाफा कमाने के बारे में उत्पादकों में जानकारी और जागरूकता की कमी है।

मौजूदा समय में प्रमाणित भारतीय जैविक उत्पाद का खुदरा बाजार लगभग 27,000 करोड़ रुपये का है जिसमें 7,000 करोड़ रुपये का निर्यात भी शामिल है। दुनिया भर में लगभग 34 लाख जैविक उत्पादक हैं जो 749 लाख हेक्टेयर (दुनिया की कुल कृषि भूमि का 1.6%) भूमि में जैविक उत्पाद की खेती करते हैं। इनमें से सबसे ज्यादा ऑस्ट्रेलिया में 357 लाख हेक्टेयर में इन उत्पादों की खेती होती है। जबकि 27 लाख हेक्टेयर भूमि के साथ भारत चौथे स्थान पर है। मध्य प्रदेश में 7.6 लाख हेक्टेयर, राजस्थान में 3.5 लाख हेक्टेयर और महाराष्ट्र में 2.8 लाख हेक्टेयर जमीन में जैविक उत्पादों की खेती होती है। जबकि सिक्किम 2016 से पहले से ही पूरी तरह से जैविक राज्य है। पिछले तीन वर्षों में भारत द्वारा निर्यात किए गए 10 प्रमुख जैविक उत्पादों में प्रसंस्कृत खाद्य, तिलहन, अनाज और बाजरा, चीनी, मसाले, दालें, चाय, चारा और कॉफी शामिल हैं।