सरकार से नाराज हर वर्ग हमारे साथ हैः इक़रा हसन

2017 में भाजपा यहां से हारी थी, जब उसने पलायन का मुद्दा उठाया था। फिर हमने 2018 में भी हराया। तभी से उन्होंने मेरे भाई को निशाने पर ले लिया था। सारे मामले उसके बाद के ही हैं। उस पर गैंगस्टर एक्ट लगा दिया गया है

गुरुवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के पहले चरण में 58 सीटों पर मतदान होने हैं। शामली जिले की कैराना सीट इस चरण में सबसे चर्चित है। केंद्रीय गृह मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता अमित शाह ने 22 जनवरी को यहीं से अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत की और पलायन का मुद्दा उठाकर माहौल बदलने की कोशिश की। यहां भारतीय जनता पार्टी की तरफ से पूर्व सांसद स्वर्गीय हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह और समाजवादी पार्टी तथा राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन की तरफ से नाहिद हसन मुख्य उम्मीदवार हैं। नाहिद ने 2017 के चुनाव में मृगांका को 21 हजार से अधिक वोटों से हराया था। उससे पहले 2014 के उपचुनावों में भी नाहिद को जीत मिली थी। हालांकि उससे पहले 2007 और 2012 में भाजपा के हुकुम सिंह जीते थे। नाहिद के पिता स्वर्गीय मुनव्वर हसन भी दो बार कैराना से विधायक और मुजफ्फरनगर से दो बार सांसद रहे। इस बार सपा प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद नाहिद को 16 जनवरी को अचानक गिरफ्तार कर लिया गया। उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एक्ट और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) एक्ट के तहत 2021 में दर्ज एक मामले में उनकी गिरफ्तारी हुई। दो बार सांसद रह चुकी उनकी मां तबस्सुम हसन पर भी गैंगस्टर एक्ट लगा दिया गया।

इन परिस्थितियों में नाहिद के लिए चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी उनकी बहन इक़रा हसन ने उठाई। दिल्ली यूनिवर्सिटी के हाई प्रोफाइल लेडी श्रीराम कालेज से हिस्ट्री में ग्रेजुएट इक़रा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के ही स्कूल ऑफ लॉ से एलएलबी की है। उसके बाद यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के स्कूल ऑफ ओरियंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (एसओएएस) से इंटरनेशनल लॉ  एंड पालिटिक्स में मास्टर्स किया। कभी सक्रिय राजनीति में नहीं आने की ख्वाहिश रखने वाले इक़रा ने बड़ी शिद्दत के साथ भाई नाहिद के लिए प्रचार किया और अब जीत के प्रति आश्वस्त हैं। उनके लिए इस चुनाव के क्या मायने हैं, किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा, चुनाव से क्या उम्मीद है, इन सब मुद्दों पर इकरा हसन से बात की रूरल वॉयस के संपादक हरवीर सिंह ने। यह बातचीत 6 फरवरी को हुई। मुख्य अंशः-

चुनाव तो नाहिद हसन का है। आपकी मां भी चुनाव प्रचार नहीं कर सकीं। इस जिम्मेदारी को निभाते हुए आपको कैसा लगा?

बहुत कठिन परिस्थितियां रहीं। एक तरह से हमारे परिवार की घेराबंदी करने की कोशिश की गई। हमारा राजनीतिक परिवार रहा है, उसे खत्म करने की साजिश है। मेरे भाई का चरित्र हनन करने की कोशिश की गई। उसके खिलाफ सभी मामले राजनीति से प्रेरित हैं। 2017 में भाजपा यहां से हारी थी, जब उसने पलायन का मुद्दा उठाया था। फिर हमने 2018 में भी हराया। तभी से उन्होंने मेरे भाई को निशाने पर ले लिया था। सारे मामले उसके बाद के ही हैं। उस पर गैंगस्टर एक्ट लगा दिया गया है। मेरी मां एक सम्मानित महिला हैं, उन पर भी गैंगस्टर एक्ट लगाया गया है। सारे मामले बेबुनियाद हैं।

आपकी मां दो बार सांसद रह चुकी हैं। उन पर गैंगस्टर एक्ट किस मामले में लगाया गया है?

हमारे विधानसभा क्षेत्र के एक गांव में दो गुटों के बीच झगड़ा हुआ था। उसी मामले में अन्य लोगों के साथ मेरे भाई और मां के ऊपर भी गैंगस्टर एक्ट लगा दिया गया।

आपके भाई के सामने मृगांका सिंह उम्मीदवार हैं। वे भी राजनीतिक परिवार से हैं। हालांकि वे पहले भी नाहिद से चुनाव हार चुकी हैं। नाहिद की तरफ से आप ही चुनाव प्रचार में लगी हैं। तो क्या इसे दो राजनीतिक परिवारों के बीच प्रॉक्सी उम्मीदवारों की लड़ाई मानी जाए?

मेरे विचार से मृगांका सिंह को प्रॉक्सी उम्मीदवार कहना ठीक नहीं होगा, क्योंकि उनकी अपनी व्यक्तिगत पहचान भी है। वे अपने दम पर चुनाव लड़ने में सक्षम हैं।

जो उम्मीदवार दो बार चुनाव हार चुका हो, उसे तीसरी बार आसानी से टिकट नहीं मिलता। वे हुकुम सिंह की बेटी हैं, शायद इसलिए उन्हें बार-बार मौका मिल रहा है। मेरा सवाल उस संदर्भ में है।

मेरे विचार से यहां का जातिगत समीकरण उन्हें उम्मीदवार बनाने की एक प्रमुख वजह है। अगर आप यहां की डेमोग्राफी देखें तो उससे आपको इसका अंदाजा हो जाएगा। यहां अगड़ी और पिछड़ी जातियों का भी समीकरण है। यहां सबसे बड़ी जाति कश्यप है। पहले किसी कश्यप को ही टिकट दिए जाने की चर्चा थी, लेकिन उनका टिकट काटकर मृगांका सिंह को टिकट दिया गया है।

आपको अलग तरह का परिवेश मिला, इसलिए आप काफी आगे तक गईं। चुनाव लड़ने का माद्दा भी रखती हैं। लेकिन आम तौर पर इस इलाके की महिला मतदाता उतनी मुखर नहीं हैं। आपके समुदाय में भी। वोट देने में महिलाओं का निजी फैसला नहीं होता, परिवार का फैसला ही प्रमुख होता है। इस पर आपकी क्या राय है?

इसकी बड़ी वजह यहां साक्षरता बहुत कम है, पितृसत्तात्मक समाज है और पिछड़ापन है। यह पिछड़ापन सिर्फ मुस्लिम समुदाय में नहीं बल्कि किसी भी धर्म या जाति की महिलाओं में दिखता है। आपका यह कहना बिल्कुल सही है कि अधिकतर महिलाएं परिवार के पुरुषों के कहने के मुताबिक मतदान करती हैं। क्षेत्रीय राजनीति में महिलाओं को प्रतिनिधित्व नहीं मिलना भी इसका एक कारण है।

भाई और मां के खिलाफ मामले दर्ज हैं, तो ऐसे में अगर पार्टी आपको टिकट देती तो उस परिदृश्य में क्या होता?

मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं रही है। राजनीति में मेरी हमेशा दिलचस्पी रही, लेकिन खुद राजनीति में कभी हिस्सा नहीं लेना चाहती थी। लेकिन हमारे परिवार की जो घेराबंदी करने की कोशिश की जा रही है, उसका किसी न किसी को तो सामना करना ही था। घर में मेरे अलावा और कोई नहीं जो इस काम को संभाल सकता था। इसलिए मुझे आगे आना पड़ा। मैं चुनाव लड़ने के लिए तैयार थी। मैंने नामांकन भी दाखिल किया था। हमारी रणनीति थी कि अगर किसी कारण मेरे भाई का नामांकन रद्द होता है तो मैं चुनाव लडूंगी। लेकिन अगर भाई का नामांकन रद्द नहीं हुआ तो मैं अपना नाम वापस ले लूंगी। यह बस एहतियात के तौर पर उठाया गया कदम था। इसलिए जैसे ही भाई का नामांकन स्वीकार हुआ, मैंने अपना नाम वापस ले लिया।

आपको जीत का भरोसा है तो उसके पीछे आपका चुनावी गणित क्या है? वे कौन से समीकरण हैं जो आपको अपने पक्ष में नजर आते हैं?

एंटी इनकंबेंसी बहुत बड़ी भूमिका निभाएगी। हर वर्ग के लोग सरकार से नाराज हैं। सत्तारूढ़ पार्टी ने पलायन का खोखला मुद्दा फिर से उठाया है। यह दरअसल किसान आंदोलन से लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश है। हमारा क्षेत्र गन्ना क्षेत्र है और यहां अनेक लोग खेती-बाड़ी करते हैं। इसलिए किसानों का मुद्दा ही यहां प्रमुख है।

यहां एक बड़ा मुद्दा था हिंदू-मुसलमान का, खासतौर से जाटों और मुसलमानों का। आरएलडी-सपा गठबंधन के कारण आपको कितने जाट वोट मिलने की उम्मीद है?

मुझे लगता है कि हमें बड़ी संख्या में जाटों के वोट मिलेंगे। यहां राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख जयंत चौधरी जी की भी रैली की थी। उन्होंने लोगों से कहा कि आप सब यह सोचकर वोट दीजिए कि मैं खुद यहां से लड़ रहा हूं। मेरे विचार से इससे बड़ी बात और नहीं हो सकती है। यहां सबने हमें आश्वासन दिया है। इसलिए बड़ी संख्या में जाट, सिख, मुस्लिम, कश्यप वोट हमें मिलने की उम्मीद है। शिक्षामित्र बड़ी तादाद में हमारे साथ हैं। ऐसा नहीं कि कोई खास समुदाय ही हमें वोट दे रहा है। जो लोग इस सरकार के कार्यकाल में पीड़ित रहे, वे सब हमारे साथ हैं।