विश्व बाजार में बासमती चावल पर विशेष अधिकार प्राप्त करने के भारत के प्रयासों को न्यूजीलैंड और केन्या में बड़ा झटका लगा है। भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बौद्धिक संपदा अधिकार संबंधी TRIPS समझौते का हवाला देकर न्यूजीलैंड में बासमती का ट्रेडमार्क हासिल करना चाहता था। जबकि केन्या में बासमती नाम की छह चावल किस्मों को ट्रेडमार्क दिए जाने पर भारत ने आपत्ति जताई थी। लेकिन दोनों देशों की अदालतों ने भारत के दावों को स्वीकार नहीं किया है लेकिन भारत ने इनके खिलाफ अपना दावा बरकरार रखा है।
भारत की दलील थी कि बासमती को भारत में भौगोलिक संकेतक (GI) प्राप्त है और TRIPS समझौते के तहत भौगोलिक संकेतक का दुरुपयोग रोकने की जिम्मेदारी भी शामिल है। इसलिए बासमती को ट्रेडमार्क देकर GI सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
भारत के ओर से कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) ने न्यूजीलैंड उच्च न्यायालय में भारत के बासमती चावल के लिए ट्रेडमार्क देने से इनकार करने वाले पिछले फैसलों को चुनौती दी थी।
न्यूजीलैंड कोर्ट का फैसला
गत 30 अक्टूबर को आए न्यूजीलैंड उच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, TRIPS समझौता सदस्य देशों को अन्य देशों में पंजीकृत ऐसे भौगोलिक संकेतकों (GI) को मान्यता और सुरक्षा देने के लिए बाध्य नहीं करता है जो घरेलू कानूनों की शर्तों को पूरा नहीं करते हैं। जज ने माना कि न्यूजीलैंड का फेयर ट्रेडिंग एक्ट, 1986 बासमती जैसे उत्पादों के मूल स्थान से जुड़े भ्रामक दावों को रोकने के लिए पर्याप्त है।
हालिया आदेश में न्यूजीलैंड हाईकोर्ट ने बासमती के लिए ट्रेडमार्क पंजीकरण के भारत के अनुरोध को खारिज कर दिया है। अदालत ने बौद्धिक संपदा कार्यालय (IPONZ) के 2024 के उस फैसले को बरकरार रखा है जिसमें कहा गया था कि बासमती केवल भारत से संबंधित नहीं है। अदालत ने माना कि "बासमती उत्पादक क्षेत्र" भारत और पाकिस्तान दोनों में फैला हुआ है। ऐसे में भारतीय उत्पादकों को विशेष अधिकार देना अनुचित होगा। इससे पाकिस्तान के उत्पादक बासमती नाम से अपना चावल नहीं बेच पाएंगे।
गौरतलब है कि न्यूजीलैंड में बासमती पर विशेष अधिकार के लिए एपीडा ने 2019 में आवेदन किया था। लेकिन IPONZ ने जुलाई 2024 में इस अनुरोध को खारिज कर दिया था।
केन्या का फैसला: TRIPS स्वतः लागू नहीं
केन्या में, एपीडा ने ऐसी छह चावल किस्मों के ट्रेडमार्क पंजीकरण पर आपत्ति जताई थी जिनके नाम में “बासमती” शब्द का इस्तेमाल किया गया है। एपीडा का तर्क था कि TRIPS समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देश GI के दुरुपयोग को रोकने के लिए बाध्य हैं।
केन्याई अदालत ने एपीडा की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि TRIPS एक स्व-निष्पादन संधि (Self-Executing Treaty) नहीं है और इसे राष्ट्रीय कानून के अनुरूप ही लागू किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय कानून का पालन किए बिना TRIPS को सीधे लागू करना देश की कानूनी व्यवस्था की अनदेखी होगा।
फैसलों का असर
पाकिस्तान के चावल उद्योग ने न्यूजीलैंड के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इससे बासमती उत्पादक के रूप में उसकी वैधता को मजबूती मिलेगी। और भविष्य के अंतर्राष्ट्रीय GI विवादों में उसकी स्थिति मजबूत करता है।
ये फैसले बासमती के लिए विशेष अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा हासिल करने में भारत की चुनौतियों को उजागर करते हैं। भारत ने बासमती को GI टैग दिया है लेकिन बासमती की खेती पाकिस्तान में भी होती है। विश्व बाजार में भारत और पाकिस्तान दोनों को बासमती उत्पादक देश के तौर पर मान्यता प्राप्त है। प्रीमियम चावल बाजारमें प्रतिस्पर्धा तेज होने के साथ, ये फैसले भविष्य में बासमती-मूल विवादों को भी प्रभावित कर सकते हैं।