धान में बौनेपन की बीमारी पर केंद्रीय टीम गठित, आईएआरआई की अंतरिम रिपोर्ट में बीमारी की वजह की पहचान

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में धान की फसल में पौधों के  बौनेपन की अनजान बीमारी को लेकर केंद्र सरकार काफी चिंतित दिख रही है। यही वजह है कि बीमारी के बारे में सोमवार को मीडिया में आई खबरों का संज्ञान लेते हुए एक आठ सदस्यीय केंद्रीय टीम गठित कर इसके ऑन स्पॉट आकलन के लिए प्रभावित राज्यों पंजाब और हरियाणा में जाने को कहा गया है। इस टीम को मंगलवार यानी एक दिन में ही विस्तृत रिपोर्ट कृषि मंत्रालय के एग्रीकल्चर कमिश्नर को सौंपने के लिए कहा गया है। वहीं धान की फसल में आई इस बीमारी पर आईएआरआई ने अपनी एक रिपोर्ट केंद्रीय कृषि मंत्रालय को सौंप दी है जिसमें बीमारी की वजह को काफी हद तक पहचाने की बात की गई है। पौधों के बौनेपन की वजह के रूप में ग्रास स्टंट वायरस या फाइटोप्लाज्मा बैक्टीरिया की संभावना मानी जा रही है

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में धान की फसल के पौधों पौधों में बौनेपन की अनजान बीमारी को लेकर केंद्र सरकार काफी चिंतित दिख रही है। यही वजह है कि बीमारी के बारे में सोमवार को मीडिया में आई खबरों का संज्ञान लेते हुए एक आठ सदस्यीय केंद्रीय टीम गठित कर इसे ऑन स्पॉट आकलन के लिए प्रभावित राज्यों पंजाब और हरियाणा में जाने को कहा गया है। इस टीम को मंगलवार यानी एक दिन में ही विस्तृत रिपोर्ट कृषि मंत्रालय के एग्रीकल्चर कमिश्नर को सौंपने के लिए कहा गया है। वहीं रूरल वॉयस को मिली जानकारी के मुताबिक आईएआरआई ने इस बीमारी पर अपनी एक रिपोर्ट केंद्रीय कृषि मंत्रालय को सौंप दी है । इस रिपोर्जिट में बीमारी की वजह को काफी हद तक पहचाने की बात की गई है। पौधों में बौनेपन की  वजह के रूप में ग्रास स्टंट वायरस या फाइटोप्लाज्मा बैक्टीरिया की संभावना को माना जा रहा है।

केंद्रीय टीम गठन के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के असिस्टेंट एग्रीकल्चर कमिश्नर द्वारा 22 अगस्त, 2022 को पत्र जारी किया है। जिसमें 23 अगस्त, 2022 तक टीम को एग्रीकल्चर कमिश्नर को विस्तृत रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है।

सोमवार को रूरल वॉयस ने पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में धान के खेतों में पांच फीसदी से लेकर 20 फीसदी तक बौनेपन की अनजान बीमारी की खबर प्रकाशित की थी। इस खबर में बीमारी के संभावित कारकों के बारे में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) पूसा के डायरेक्टर डॉ. ए के सिंह बात कर जानकारी दी गई है।

https://www.ruralvoice.in/latest-news/lower-acreage-of-paddy-and-unknown-dwarfing-disease-in-punjab-and-haryana-will-hit-rice-production-1082.html

वहीं आईएआरआई ने इस बीमारी पर अपनी एक रिपोर्ट केंद्रीय कृषि मंत्रालय को सौंप दी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक आईएआरआई की टीम पहली बार 2 अगस्त, 2022 को हरियाणा में पानीपत जिले के उरलाना खुर्द गांव में किसान प्रीतम सिंह के खेतों पर गई थी। जहां से उसने पौधों के सैंपल लिये थे। इसके बाद आईएआरआई के डायरेक्टर डॉ. ए. के. सिंह भी हरियाणा के कुरुक्षेत्र के पेहवा में बेचकी गांव में किसान प्रकाश सिंह के धान के खेत में गये थे। आईएआरआई की टीम ने धान के पौधों के सैंपल लेकर इनकी जांच की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि फील्ड सर्वे में पाया गया कि धान की फसल में उर्वरक और जरूरी न्यूट्रीशन  देने के बावजूद पौधों में बौनेपन की समस्या खत्म नहीं हुई। इस आधार पर माना जा सकता है कि पौधों के बौनेपन के पीछे उर्वर तत्वों की कमी नहीं है।

आईएआरआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि बीमारी से प्रभावित पौधों के सैंपल की जांच करने के बाद फाइटोप्लाज्मा बैक्टीरिया या ग्रास स्टंट वायरस को इसका कारण माना जा रहा है।  इन सैंपल के डीएनए को अलग कर इनकी जीन सिक्वेंसिंग की रिपोर्ट काफी हद तक पौधों में बौनेपन (स्टंटिंग) समस्या को स्पष्ट कर सकेगी। इस रिपोर्ट के मुताबिक आईएआरआई ने शुरुआती स्तर का जांच का काम कर लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक पौधों के सैंपल में फाइटोप्लाज्मा होने के लक्षण मिले हैं। साथ ही ग्रास स्टंट वायरस को भी एक संभावित कारक के रूप में देखा जा रहा है।

कृषि मंत्रालय द्वारा गठित आठ सदस्यीय टीम का प्रमुख एग्रीकल्चरल टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट (अटारी) के डायरेक्टर डॉ. राजबीर सिंह और नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट, नई दिल्ली के डायरेक्टर सुभाष चंदर को बनाया गया है। समिति के अन्य सदस्यों में पीएयू, लुधियाना के डॉ. अजमेर सिंह धत, सीसीएसएचएयू हिसार के डायरेक्टर (रिसर्च) डॉ. जीत राम शर्मा, आईएआरआई, पूसा के सीनियर साइंटिस्ट (वायरोलॉजी) डॉ. अमलेंदु घोष, आरसीआईपीएमसी, फरीदाबाद के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. वी डी निगम, सीआईपीएमसी जालंधर के असिस्टेंट डायरेक्टर सुरेश कुमार और डीडब्ल्यूडी, गुरुग्राम के ज्वाइंट डायरेक्टर डॉ. विक्रांत सिंह शामिल हैं।