खरीफ फसलों की बुवाई के समय में देश के कई राज्यों में किसानों को यूरिया और डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) जैसी आवश्यक उर्वरकों की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में किसान उर्वरक वितरण केंद्रों पर लंबी-लंबी कतारों में खड़े हैं। स्थिति इतनी विकट है कि खाद के लिए महिलाएं भी सुबह चार-पांच बजे से लाइनों में लगने को मजबूर हैं। कई जगह किसान रात में ही लाइन लगाने के लिए बैग या कपड़े रख देते हैं और सुबह से ही लाइनों में लग जाते हैं। घंटों इंतजार के बाद भी किसानों को पर्याप्त खाद नहीं मिल पा रही है। अधिकांश जिलों में मांग के मुकाबले उर्वरकों की कम उपलब्धता के चलते यह स्थिति पैदा हुई है।
मध्य प्रदेश के खंडवा, खरगोन, सिवनी और नर्मदापुरम समेत कई जिलों से खाद मिलने में दिक्कत की खबरें हैं। इस मुद्दे पर विपक्षी दल कांग्रेस ने राज्य और केंद्र की भाजपा सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा कि किसानों को अमानक बीज बेचे गए और अब खाद की किल्लत से जूझ रहे हैं। उन्होंने केंद्रीय कृषि मंत्री पर निशाना साधते हुए पूछा, “जब केंद्र और राज्य दोनों जगह आपकी ही सरकार है, तो कार्रवाई में देरी क्यों?”
वहीं, छत्तीसगढ़ के पूर्व गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने आरोप लगाया कि राज्य में किसानों को धान के लिए आवश्यक खाद समय पर नहीं मिल रही है।
कालाबाजारी और टैगिंग की शिकायतें
किसानों को डीएपी की जगह सिंगल सुपर फॉस्फेट जैसे वैकल्पिक उर्वरकों का उपयोग करने की सलाह दी जा रही है, जिससे उनकी लागत और बढ़ रही है। साथ ही, किसानों को यूरिया के साथ जबरन जिंक और अन्य उत्पाद जोड़कर बेचे जाने की शिकायतें भी मिल रही हैं। खाद संकट का फायदा उठाने के लिए कई विक्रेता किसानों को ऊंचे दाम पर यूरिया और डीएपी बेच रहे हैं।
यूपी के बुलंदशहर में टैगिंग की शिकायत पर जिला कृषि अधिकारी ने दो खाद दुकानों के लाइसेंस निलंबित कर दिए हैं। अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि यूरिया या डीएपी के साथ अन्य उत्पादों की टैगिंग न की जाए।
उर्वरक संकट का कारण
भारत उर्वरकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर है जिसमें चीनप्रमुख आपूर्तिकर्ता है। मगर चीन ने अपनी घरेलू जरूरतों और इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी के लिए फॉस्फेट की बढ़ती मांग को देखते हुए डीएपी का निर्यात बहुत कम कर दिया। इसके अलावा, लाल सागर संकट के कारण उर्वरकों की आपूर्ति के लिए जहाजों को केप ऑफ गुड होप से लंबा मार्ग अपनाना पड़ रहा है, जिससे आपूर्ति में देरी और लागत में वृद्धि हुई है।
इस बारे में रूरल वॉयस ने खबर प्रकाशित की थी कि देश में 1 जून 2025 को डीएपी का ओपनिंग स्टॉक पिछले साल की तुलना में लगभग नौ लाख टन (करीब 42%) कम था। इस कारण कई क्षेत्रों में किसानों को डीएपी की किल्लत और कालाबाजारी का सामना करना पड़ रहा है।
डीएपी आयात में भारी गिरावट
वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने चीन से 22.9 लाख टन डीएपी आयात किया था, जो 2024-25 में घटकर केवल 8.4 लाख टन रह गया। वर्तमान में भारत डीएपी के लिए सऊदी अरब, मोरक्को, जॉर्डन और रूस जैसे देशों पर निर्भर है।
आयात मूल्य में बढ़ोतरी
डीएपी का आयात मूल्य बढ़ता जा रहा है जिसकी वजह से उर्वरक कंपनियां अधिक आयात नहीं कर पा रही हैं। जून 2025 में भारतीय कंपनियों ने जॉर्डन से 781.5 डॉलर प्रति टन की दर पर डीएपी आयात का सौदा किया, जबकि कुछ माह पूर्व यही दर 515 से 525 डॉलर प्रति टन थी। अब सऊदी कंपनी साबिक ने 810 डॉलर प्रति टन की नई बोली लगाई है, जिससे खाद की कीमतों में और इजाफा होना तय है।
खरीफ बुवाई के समय खाद की किल्लत किसानों की उत्पादकता और मुनाफे पर असर डाल सकती है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर न सिर्फ आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी, बल्कि वितरण प्रणाली की पारदर्शिता और कालाबाजारी पर भी सख्ती से लगाम लगानी होगी।