किसान अधिकारों की रक्षा पर भारतीय कानून दुनिया के लिए बन सकता है आदर्श: राष्ट्रपति मुर्मू

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि किसानों के अधिकारों की रक्षा करना और उनके भविष्य की देखभाल करना सरकार की जिम्मेदारी है क्योंकि वे अन्नदाता हैं और पूरी मानवता के लिए भोजन प्रदाता हैं।

किसानों के अधिकारों पर आयोजित पहली वैश्विक संगोष्ठी को संबोधित करतीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि किसानों के अधिकारों की रक्षा करना और उनके भविष्य की देखभाल करना सरकार की जिम्मेदारी है क्योंकि वे अन्नदाता हैं और पूरी मानवता के लिए भोजन प्रदाता हैं।

मंगलवार को नई दिल्ली में किसानों के अधिकारों पर आयोजित चार दिवसीय पहली वैश्विक संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि किसानों के अधिकारों की रक्षा करके हम दुनिया के भविष्य को उज्जवल और अधिक समृद्ध बनाकर उसकी रक्षा करते हैं। देश की विविधता के बारे में राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि भारत में 45,000 से अधिक प्रकार के पौधे और प्रजातियों की विस्तृत श्रृंखला है और उन्हें बचाकर और संरक्षित करके हम न केवल मानवता बल्कि पूरी दुनिया को बचाएंगे।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2001 में हस्ताक्षरित खाद्य व कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि, भोजन और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण, उपयोग व प्रबंधन के लिए सदस्य देशों के बीच सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समझौतों में से एक थी। पहली बार इसने भोजन और कृषि के लिए दुनिया के पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण, विनिमय और टिकाऊ उपयोग के माध्यम से खाद्य सुरक्षा की गारंटी देने की बात की। भारत ने पौधों की विविधता और किसान अधिकार संरक्षण कानून (पीपीवीएफआर)-2001 को पेश करने में अग्रणी भूमिका निभाई थी, जो हमारे किसानों की सुरक्षा के लिए खाद्य व कृषि हेतु पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतरराष्ट्रीय संधि से जुड़ा है। हमारा देश किसानों को कई प्रकार के अधिकार प्रदान करता है। भारतीय किसान खुद की किस्मों को पंजीकृत कर सकते हैं जिन्हें सुरक्षा मिलती है। ऐसा कानून पूरी दुनिया के लिए अनुकरणीय उत्कृष्ट मॉडल के रूप में काम कर सकता है। जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों के मद्देनजर व मानवता के प्रति सामूहिक जिम्मेदारी के रूप में संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पूरा करने के लिए इसका महत्व और बढ़ जाता है।

उन्होंने कहा कि भारत की समृद्ध कृषि-जैव विविधता वैश्विक समुदाय के लिए एक खजाना रही है। हमारे किसानों ने कड़ी मेहनत व उद्यमपूर्वक पौधों की स्थानीय किस्मों का संरक्षण किया है, जंगली पौधों को पालतू बनाया है एवं पारंपरिक किस्मों का पोषण किया है, जिन्होंने विभिन्न फसल प्रजनन कार्यक्रमों के लिए आधार प्रदान किया है। इससे मनुष्यों व जानवरों के लिए भोजन और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित हुई है। जैव विविधता को संरक्षित व पोषित करके किसान बिरादरी न केवल मानवता को, बल्कि पूरे ग्रह को बचा रही है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र विशेष की फसलों की किस्में समाज व संस्कृति से गहराई से जुड़ी होती हैं। इनमें औषधीय गुण भी होते हैं।

खाद्य एवं कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतरराष्ट्रीय संधि (आईटीपीजीआरएफए), खाद्य व कृषि संगठन (एफएओ) ने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर इस चार दिवसीय वैश्विक संगोष्ठी का आयोजन कि या है। राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि सभ्यता की शुरूआत से ही हमारे किसान ही असली इंजीनियर व वैज्ञानिक हैं जिन्होंने मानवता के लाभ के लिए प्रकृति की ऊर्जा व उदारता का उपयोग किया है। एक नोबेल पुरस्कार विजेता व अर्थशास्त्री ने बिहार के गांव का दौरा करते समय एक बार टिप्पणी की थी "भारतीय किसान वैज्ञानिकों से बेहतर हैं"। राष्ट्रपति ने कहा कि मैं इस कथन से पूर्णतः सहमत हूं क्योंकि कृषि में हमने परंपरा को प्रौद्योगिकी के साथ सहजता से मिश्रित किया है।

उन्होंने कहा कि हमने कई पौधों-प्रजातियों को खो दिया है। फिर भी पौधों-प्रजातियों की कई किस्मों की रक्षा व पुनर्जीवित करने के किसानों के प्रयास सराहनीय है। उनका अस्तित्व आज हम सबके लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने खुशी जताई कि आईटीपीजीआरएफए ने किसानों के अधिकारों पर पहली वैश्विक संगोष्ठी के आयोजन स्थल के रूप में भारत को चुना। जैव विविधता में भारत पौधों व प्रजातियों की विस्तृत श्रृंखला से संपन्न देशों में से एक है। हमारे कृषि-जैव विविधता संरक्षकों व मेहनती किसानों, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के प्रयासों ने सरकारी समर्थन के साथ मिलकर देश में कई कृषि क्रांतियों को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।