कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को सुनाएगा फैसला, सरकार से पूछा क्या कानूनों को स्थगित नहीं रखा जा सकता

कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन पर सरकार कदमों पर सुप्रीम कोर्ट ने नाखुशी जाहिर की है। इस मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार का कहा इस मुद्दे को सुलझाने का आपका तरीका निराशाजनक है। भारत के मुख्य न्यायधीश एस.ए बोबड़े ने तल्खी में बोलते हुए ,मोदी सरकार से पूछा है कि यदि अगर आप इन कानूनों पर रोक नहीं लगाना चाहते हैं तो हम यह कदम उठाएंगे ।

केंद्र सरकार द्वारा लागू किये गये तीन नये कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसानों के आंदोलन से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने  केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई है। भारत के मुख्य न्यायधीश एस.ए बोबड़े ने तल्खी में बोलते हुए ,मोदी सरकार से पूछा है कि यदि आप इन कानूनों पर रोक नहीं लगाना चाहते हैं तो हम यह कदम उठाएंगे । कोर्ट ने पूछा कि आप किस तरह हल निकाल रहे हैं? कोर्ट ने यह भी कहा है कि वह किसानों के प्रदर्शन से जुड़े मुद्दों और कृषि कानून लागू करने को लेकर अलग-अलग हिस्सों में आदेश जारी करेगा।  न्यायालय ने कहा कि वह दो हिस्सों में इस मुद्दे पर फैसला देगा। कोर्ट ने कहा कि नए कृषि कानूनों पर केंद्र और किसानों के बीच जिस तरह से बातचीत चल रही है, उससे वह बेहद निराश हैं। मुख्य न्यायाधीश समेत तीन न्यायाधीशों की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है। जानिए कोर्ट ने और क्या-क्या कहा---

- "क्या चल रहा है? राज्य आपके कानूनों के खिलाफ विद्रोह कर रहे हैं। हम बातचीत की प्रक्रिया से बेहद निराश हैं"।

- हम आपकी वार्ताओं पर कोई भटकाव नहीं चाहते हैं, लेकिन हम इस प्रक्रिया से बेहद निराश हैं।

- यह एक बहुत ही नाजुक स्थिति है।

-हमारे सामने एक भी याचिका नहीं है जो कहती है कि ये कृषि कानून फायदेमंद हैं।

 -किसान आंदोलन जारी रख सकते हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या प्रदर्शन वहीं चलेगा, जहां अभी हो रहा है?  

- इन दिनों में कई किसानों की मौत हो चुकी है और कई आत्महत्या भी कर चुके हैं।  बुजुर्ग और महिलाएं आंदोलन में शामिल हैं। आखिर चल क्या रहा है?

  - अगर कुछ गलत हुआ तो हम सभी जिम्मेदार होंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे को सुलझाने के लिए हम एक समिति बनाने का प्रस्ताव रख रहे हैं।  सकते हैं जिसके सामने किसान संगठन अपना पक्ष रख सकते हैं। इस बीच इन कानूनों पर रोक लगाई जा सकती है। समिति की सिफारिशों के आधार पर आगे फैसला हो सकता है। इसके सामने किसान संगठन इन कानूनों के प्रावधानों पर अपनी राय रख सकते हैं।  न्यायालय ने कहा कि हम बातचीत के बेहतर माहौल के लिए  समिति बनाने का प्रस्ताव रख रहे हैं। सरकार ने कानून बनाये हैं और इनके खिलाफ आंदोलन चल रहा है। अगर कोई अनहोनी होती है तो उसका जिम्मेदार कौन होगा। इसलिए हमें यह देखना है कि किसी तरह की जानमाल की हानि न हो। साथ ही यह भी कहा कि हम कानूनों की वैधानिकता की जांच नहीं कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि इस विवाद का हल निकले। सरकार के तमाम कदम अभी तक विवाद को सुलझाने में नाकाम रहे हैं।

सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट को कहा कि वह इस मामले में फैसला सुनाने में जल्दबाजी नहीं करे। इस पर न्यायालय ने कहा कि क्यों नहीं। हमने आपको काफी समय दिया है लेकिन आपने कुछ नहीं किया। हम इस मुद्दे पर आज और मंगलवार को फैसला सुना देंगे।  

 सुप्रीम कोर्ट की सोमवार की सुूनवाई के बाद सबकी निगाहें मंगलवार की सुनवाई और उसके बाद आने वाले आदेश की तरफ लग गई हैं। इस समय देश में किसानों का आंदोलन सबसे बड़े मुद्दे के रूप में  दिख रहा है। सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच  आठ दौर की बातचीत नाकाम हो चुकी है और अब अगली बैठक 15 जनवरी को होने वाली है। लेकिन किसानों के कानूनों को रद्द करने से कम पर कुछ भी स्वीकार करने के चलते मामला उलझा हुआ है। वहीं दिल्ली के बार्डरों पर लाखों किसान सर्दी के मौसम में धरना दे रहे हैं। इनमें बच्चों से लेकर बुजुर्ग और महिलाएं शामि्ल हैं। 45 दिन से चल रहे इस आंदोलन में 50 से अधिक किसानों की जान भी जा चुकी है। लेकिन किसान संगठन पूरी तरह एकजुट होकर अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं। इस आंदोलन का राजनीतिक असर भी दिख रहा है। इसके चलते शिरोमणी अकाली दल और आरलपी जैसी भाजपा की सहयोगी पार्टियां एनडीए से अलग हो चुकी हैं।