पराली प्रबंधन के दिशा-निर्देशों में संशोधन, आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करने को सरकार से मिलेगी 65 फीसदी वित्तीय सहायता

सरकार ने फसल अवशेष प्रबंधन दिशा-निर्देशों में संशोधन किया है ताकि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में उत्पन्न धान की पराली के कुशल प्रबंधन को सक्षम बनाया जा सके। कृषि मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार, धान की पराली की आपूर्ति श्रृंखला के लिए लाभार्थी/संग्रहकर्ता (किसान, ग्रामीण उद्यमी, किसानों की सहकारी समितियां, किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) और पंचायतें) और पराली का उपयोग करने वाले उद्योगों के बीच द्विपक्षीय समझौते के तहत तकनीकी-वाणिज्यिक पायलट परियोजनाएं स्थापित की जाएंगी।

सरकार ने फसल अवशेष प्रबंधन दिशा-निर्देशों में संशोधन किया है ताकि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में उत्पन्न धान की पराली के कुशल प्रबंधन को सक्षम बनाया जा सके। कृषि मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार, धान की पराली की आपूर्ति श्रृंखला के लिए लाभार्थी/संग्रहकर्ता (किसान, ग्रामीण उद्यमी, किसानों की सहकारी समितियां, किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) और पंचायतें) और पराली का उपयोग करने वाले उद्योगों के बीच द्विपक्षीय समझौते के तहत तकनीकी-वाणिज्यिक पायलट परियोजनाएं स्थापित की जाएंगी।

बयान में कहा गया है कि सरकार मशीनरी और उपकरणों की पूंजीगत लागत पर वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। आवश्यक कार्यशील पूंजी को या तो उद्योग और लाभार्थी द्वारा संयुक्त रूप से वित्तपोषित किया जा सकता है या लाभार्थी द्वारा कृषि अवसंरचना निधि (एआईएफ), नाबार्ड या वित्तीय संस्थानों से वित्तपोषण का उपयोग किया जा सकता है। एकत्रित पराली के भंडारण के लिए भूमि की व्यवस्था और इसकी तैयारी लाभार्थी द्वारा की जाएगी जिसे अंतिम उपयोगकर्ता उद्योग द्वारा निर्देशित किया जा सकता है।

पराली आपूर्ति श्रृंखला की स्थापना के लिए ज्यादा एचपी वाले ट्रैक्टर, कटर, टेडर, मध्यम से बड़ी गांठ बांधने वाली मशीन, रेकर, लोडर, ग्रैबर्स और टेलीहैंडलर जैसी मशीनें और उपकरण अनिवार्य रूप से आवश्यक होती है। इसके लिए परियोजना प्रस्ताव आधारित वित्तीय सहायता दी जाएगी। राज्य सरकारें परियोजना अनुमोदन समिति के माध्यम से इन परियोजनाओं को मंजूरी देंगी।

बयान के मुताबिक, सरकार (केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से) परियोजना लागत की 65 फीसदी वित्तीय सहायता प्रदान करेगी, परियोजना को प्राथमिक प्रोत्साहन देने वाले के रूप में उद्योग 25 फीसदी का योगदान देगा और एकत्र किए गए पराली के प्राथमिक उपभोक्ता के रूप में कार्य करेगा तथा किसान या किसानों का समूह या ग्रामीण उद्यमी या किसानों की सहकारी समितियां या किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) या पंचायतें परियोजना की प्रत्यक्ष लाभार्थी होंगी और शेष 10 फीसदी का योगदान देंगी।

इस पहल से निम्नलिखित लाभ होंगे-

  • स्थानीय विकल्पों के माध्यम से होने वाले पराली प्रबंधन के प्रयासों में यह पहल पूरक साबित होगी।
  • तीन साल के दौरान 15लाख टन अधिशेष पराली के एकत्र होने की उम्मीद है जिसे खेतों में जला दिया जाता है।
  • पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों में4500 टन क्षमता के लगभग 333 बायोमास संग्रह डिपो निर्मित किए जाएंगे।
  • पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण में काफी कमी आएगी।
  • इससे लगभग9,00,000 मानव दिवस के बराबर रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
  • पराली के मजबूत आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन को बढ़ावा मिलेगाजिनके माध्यम से बिजली/जैव-सीएनजी/जैव-एथेनॉल उत्पादकों द्वारा पराली को विभिन्न अंतिम उपयोगों यानी बिजली उत्पादन, ताप उत्पादन, जैव-सीएनजी आदि के लिए उपलब्ध कराने में सहायता मिलेगी।
  • आपूर्ति श्रृंखला की स्थापना केकारण जैव ईंधन और ऊर्जा क्षेत्रों में नए निवेश की संभावना बढ़ेगी।