कृषि विकास को गति देने वाले इनोवेशन, एसजीडी लक्ष्यों के लिए प्रभावी निगरानी व्यवस्था जरूरी

कृषि क्षेत्र में उन इनोवेशन को बड़े पैमाने पर लागू करने की जरूरत है जिनसे इस क्षेत्र के विकास की रफ्तार बढ़ाई जा सके। इसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के संस्थानों को अहम भूमिका निभानी पड़ेगी। सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (एसडीजी) की प्रभावी निगरानी के लिए एक व्यवस्था बनाने की भी जरूरत है

कृषि क्षेत्र में उन इनोवेशन को बड़े पैमाने पर लागू करने की जरूरत है जिनसे इस क्षेत्र के विकास की रफ्तार बढ़ाई जा सके। इसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के संस्थानों को अहम भूमिका निभानी पड़ेगी। सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (एसडीजी) की प्रभावी निगरानी के लिए एक व्यवस्था बनाने की भी जरूरत है।

‘सेस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल हासिल करने के लिए खाद्य पोषण और पर्यावरण सुरक्षा’ विषय पर दो दिन तक चली  संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने यह विचार व्यक्त किए। ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (तास) ने इसका आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (नास), आईएसपीजीआर, इक्रीसैट, आईआरआरआई जैसे संस्थानों के साथ मिलकर किया था।

संगोष्ठी में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के करीब 250 जाने-माने लोगों ने हिस्सा लिया, जिनमें तास के चेयरमैन तथा आईसीएआर के पूर्व डीजी डॉ. आर.एस. परोदा, नीति आयोग के सदस्य (कृषि) रमेश चंद, इक्रीसैट की डीजी जैकलीन ह्यूजेज, आईआरआरआई के डीजी ज्यां बाली, आईसीएआर के डीजी हिमांशु पाठक, नास के प्रेसिडेंट टी. महापात्रा प्रमुख थे।

संगोष्ठी के बाद जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों की राय में  फसलों, बागवानी, मवेशी, डेयरी, पोल्ट्री और फिशरीज सेक्टर में तेज विकास से पोषक फसलों और पशुओं के साथ मछली उत्पादन भी बढ़ेगा। इससे लोगों को बेहतर पोषण और स्वास्थ्य मिलेगा, साथ ही पर्यावरण सुरक्षा भी होगी। एक्सपर्ट्स का मानना है कि वर्ष 2030 तक एसडीजी के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बाकी बचे आठ वर्षों में प्रभावी रणनीति बनाने और कदम उठाने की जरूरत है। इसके लिए नीति आयोग और आईसीएआर को साथ काम करना पड़ेगा।

भारत ने बीते 70 वर्षों में कृषि के क्षेत्र में अकल्पनीय प्रगति की है। अब यह खाद्य पदार्थों के मामले में न सिर्फ आत्मनिर्भर है, बल्कि अनेक देशों को निर्यात भी करता है। विशेषज्ञों के अनुसार, सवाल है कि इसके बावजूद वांछित नतीजे क्यों नहीं मिल रहे हैं। हमें फसलों की उत्पादकता और किसानों की कमाई बढ़ाने के लिए आधुनिक विज्ञान और पारंपरिक खेती को मिलाना पड़ेगा। फसल प्रणाली आधारित रिसर्च के बजाय खाद्य प्रणाली आधारित रिसर्च को अपनाना होगा।

विशेषज्ञों ने कहा कि केंद्र सरकार को कृषि अनुसंधान पर खर्च बढ़ाना चाहिए। अभी यह जीडीपी का 0.39% है, इसे बढ़ाकर 1% किया जाना चाहिए। चीन इस मद में 0.62%, ब्राजील 1.8% और अमेरिका 3% खर्च करता है।

विशेषज्ञों ने कहा कि कृषि को देश की अर्थव्यवस्था के एक महत्वपूर्ण सेक्टर के तौर पर देखा जाना चाहिए। एसडीजी को हासिल करने, समावेशी विकास को बढ़ावा देने, करोड़ों छोटे किसानों के कल्याण और देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए यह जरूरी है। इसके लिए निवेश के संसाधन जुटाने, सस्टेनेबल खेती के लिए इन्सेंटिव देने, ईज ऑफ डुइंग बिजनेस, बाजार सुधार, केंद्र-राज्य संबंधों को गवर्नेंस के लिहाज से संतुलित बनाने और सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी मजबूत करने की जरूरत है।

विशेषज्ञों का कहना था कि किसानों को केंद्र में रखने, एग्री-फूड सिस्टम में पोषण सुरक्षा की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाने, साइंस सोशल रेस्पांसिबिलिटी (एसएसआर) को कॉरपोरेट सोशल रेस्पांसिबिलिटी से जोड़ने और खाद्य उत्पादन की जगह खाद्य प्रणाली को अपनाने की जरूरत है। नए इनोवेशन की जरूरत बताते हुए उन्होंने कहा कि जीन एडिटिंग तकनीक से नए अवसर खुलते हैं। ऐसी प्रौद्योगिकी में हमें अपनी क्षमता बढ़ानी होगी। विज्ञान प्रौद्योगिकी और इनोवेशन (एसटीआई) को पॉलिसी के केंद्र में रखने की जरूरत है क्योंकि यही आज की जरूरत है।

विशेषज्ञों के अनुसार तीन ‘पी’ (पॉलिसी, प्रोग्राम और पीपुल) के सिद्धांत पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। हमें ऐसी पॉलिसी पर फोकस करना होगा जिससे इनोवेशन का ईकोसिस्टम बने और उसे बढ़ावा मिल सके। नई टेक्नोलॉजी, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस और टेक्नोलॉजी एडवांसमेंट सेंटर (टीएसी) के लिए विशेष प्रशिक्षण की जरूरत है। उनका यह भी कहना था कि जल संसाधनों और मिट्टी की गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि अगर देश ने मिट्टी की सेहत पर खर्च नहीं किया तो मनुष्य की सेहत बुरी तरह प्रभावित होगी। वैज्ञानिक प्लानिंग और संतुलित कृषि-खाद्य प्रणाली आधारित बहुक्षेत्रीय अप्रोच कृषि क्षेत्र के तेज विकास के लिए जरूरी है ताकि यह देश की लक्षित 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी में कम से कम एक ट्रिलियन डॉलर (20 फीसदी) का योगदान कर सके।