IBET 2025: खेत-से-ईंधन तक संगोष्ठी में किसान केंद्रित जैव ऊर्जा इकोसिस्टम का आह्वान

भारत जैव-ऊर्जा एवं प्रौद्योगिकी एक्सपो 2025 में ‘खेत से ईंधन तक: जैव-ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण’ विषय पर एक उच्चस्तरीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। रूरल वॉयस और इंडियन फेडरेशन ऑफ ग्रीन एनर्जी (IFGE) ने संयुक्त रूप से यह आयोजन नई दिल्ली स्थित यशोभूमि केंद्र में किया।

भारत जैव-ऊर्जा एवं प्रौद्योगिकी एक्सपो 2025 में ‘खेत से ईंधन तक: जैव-ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण’ विषय पर एक उच्चस्तरीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। रूरल वॉयस और इंडियन फेडरेशन ऑफ ग्रीन एनर्जी (IFGE) ने संयुक्त रूप से यह आयोजन नई दिल्ली स्थित यशोभूमि केंद्र में किया। संगोष्ठी में किसानों, उद्योग जगत के प्रतिनिधियों, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं ने एक ऐसी ‘खेत से ईंधन तक’ वैल्यू चेन के निर्माण पर विचार-विमर्श किया जो किसानों को सशक्त बनाए और भारत की जैव-ऊर्जा क्रांति को गति प्रदान करे।

पैनल 1: ऊर्जा सुरक्षा के लिए कृषि उपज का इस्तेमाल
आईसीएआर-भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. ए.वी. उमाकांत ने 1जी और 2जी इथेनॉल और कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) के लिए फीडस्टॉक के रूप में ज्वार की क्षमता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि ज्वार की नई विकसित किस्में अनाज, चारा और बायोमास की बेहतर पैदावार देने वाली हैं।

आईसीएआर-भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शंकर लाल जाट ने भारत के इथेनॉल कार्यक्रम में मक्का को सफलता की कहानी बताया। उन्होंने कहा कि किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्ति का लाभ मिला है। बढ़ते उत्पादन के साथ मक्का एक लाभदायक फीडस्टॉक बना रहेगा।

डीसीएम श्रीराम लिमिटेड के चीनी प्रभाग के सीईओ एवं कार्यकारी निदेशक रोशन लाल टमक ने किसानों की आय में सुधार और एक बेहतर फीडस्टॉक सप्लाई चेन बनाने के लिए इंडस्ट्री लिंकेज को मजबूत करने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने उत्पादकता में अंतर के प्रति आगाह किया और औसत तथा सर्वोत्तम उपज के बीच बड़े अंतर का जिक्र किया।

प्राज इंडस्ट्रीज के एवीपी-कॉर्पोरेट स्ट्रैटजी, डॉ. तुषार पाटिल ने जैव ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र में किसान समूहों के लिए अवसरों पर चर्चा की। उन्होंने भविष्य के विकास मार्गों, बाजार विकास और ग्रामीण समृद्धि बढ़ाने के मॉडलों पर जोर दिया।

पैनल 2: बायो एनर्जी एवं सर्कुलर इकोनॉमी के आर्थिक लाभ

फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FAI) के महानिदेशक डॉ. सुरेश कुमार चौधरी ने मृदा स्वास्थ्य और कार्बन संतुलन बनाए रखने में जैविक खाद की भूमिका पर जोर दिया। नकली उर्वरकों पर चिंता जताते हुए उन्होंने फर्मेंटेड जैविक खाद (एफओएम) और तरल फर्मेंटेड जैविक खाद (एलएफओएम) जैसे नए उत्पादों के लिए कठोर परीक्षण और मानकों को जरूरी बताया।

फार्मवाट इनोवेशन्स प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक और सीईओ कुमार नीलेन्दु झा ने किसान समूहों और इकोसिस्टम इनेबलर्स द्वारा संचालित एक स्थायी कृषि-अपशिष्ट मूल्य श्रृंखला बनाने के बारे में बात की।

ट्रेड प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया के संयुक्त निदेशक अनिक रॉय ने जैव ऊर्जा क्षेत्र में नए व्यापार और व्यवसाय के अवसरों पर प्रकाश डाला। उन्होंने किसानों को लाभ पहुंचाने वाली उन्नत तकनीकों को बढ़ावा देने पर जोर दिया।

नॉर्दर्न फार्मर्स मेगा एफपीओ के संस्थापक एवं निदेशक पुनीत सिंह थिंड ने अपने वैश्विक अनुभवों का जिक्र किया। उन्होंने जोखिम उठाने और सौदेबाजी की क्षमता विकसित करने में किसान सहकारी समितियों के महत्व पर जोर दिया। कनाडा उच्चायोग के सस्केचेवान इंडिया ऑफिस के प्रबंध निदेशक स्कॉट मैथिस भी इस संगोष्ठी में शामिल हुए और अपने विचार साझा किए।

सत्रों का संचालन रूरल वॉयस और रूरल वर्ल्ड के एडिटर-इन-चीफ हरवीर सिंह ने किया। उन्होंने ‘कृषि से ईंधन’ तक की श्रृंखला को और अधिक समावेशी और किसान-केंद्रित बनाने की बात कही।

विभिन्न राज्यों के प्रगतिशील किसानों ने भी अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने जैव ऊर्जा विकास को किसानों की आय बढ़ाने के लक्ष्य के साथ जोड़ने के अवसरों और चुनौतियों पर प्रकाश डाला। धर्मेंद्र मलिक के नेतृत्व में भारतीय किसान संघ (अराजनैतिक) के एक किसान समूह ने संगोष्ठी में भाग लिया। किसानों का एक अन्य समूह उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले से आया था।

किसानों ने इस बात पर जोर दिया कि उभरते जैव ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र में अधिक उपज देने वाली बीज किस्मों तक पहुंच, मजबूत मार्केट लिंकेज और फसलों का बेहतर मूल्य सुनिश्चित करके किसान हितों की रक्षा करना अत्यंत आवश्यक है। किसानों ने एफओएम और एलएफओएम के उपयोग पर भी चिंता व्यक्त की और अधिक जागरूकता और व्यावहारिक प्रदर्शनों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

संगोष्ठी का निष्कर्ष था कि एक मजबूत जैव-ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण न केवल भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि ग्रामीण विकास और किसान सशक्तीकरण का एक मजबूत वाहक भी है। विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि एक स्थायी ‘कृषि-से-ईंधन’ इकोनॉमी के लिए स्थिर नीतियों, किसान हितों की सुरक्षा और एक विश्वसनीय फीडस्टॉक आपूर्ति श्रृंखला की आवश्यकता होगी। संगोष्ठी में भारत के जैव-ऊर्जा लक्ष्यों को कृषि आय में वृद्धि और ग्रामीण समृद्धि के दृष्टिकोण के साथ मिलाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।