मध्य प्रदेश में गेहूं और धान की सरकारी खरीद को लेकर असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। मप्र सरकार इस खरीद से खुद को अलग करना चाहती है। वित्तीय बोझ का हवाला देते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि विकेंद्रीकृत उपार्जन योजना के स्थान पर केंद्रीकृत उपार्जन योजना संचालन की अनुमति प्रदान की जाए। यानी केंद्र सरकार की एजेंसी सीधे किसानों से समर्थन मूल्य पर गेहूं व धान की खरीद करे।
इस बारे में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने केंद्रीय खाद्य मंत्री प्रल्हाद जोशी को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि गेहूं और धान खरीद की व्यवस्था केंद्रीकृत तरीके से की जाए। उन्होंने लिखा कि विकेंद्रीकृत व्यवस्था में स्टॉक के निराकरण में बहुत ज्यादा समय लग रहा है। साथ ही राज्य सरकार की जो लागत आती है, उसका समय पर भुगतान न होने से राज्य को काफी वित्तीय हानि हो रही है। उक्त उपार्जन योजना में बैंकों से ली गई उधार राशि 72.17 करोड़ रुपये है जिसके पुर्नभुगतान में काफी समस्या हो रही हैं।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में एमएसपी पर गेहूं खरीद के लिए वर्ष 1999 और धान खरीद के लिए 2007 से विकेन्द्रीकृत उपार्जन योजना लागू है। इसमें राज्य सरकार अपनी एजेंसियों के माध्यम से किसानों से एमएसपी पर अनाज की खरीद करती है और फिर केंद्रीय एजेंसी भारतीय खाद्य निगम द्वारा इसका उठाव किया जाता है। अगर इस साल मध्य प्रदेश सरकार खरीद में भाग नहीं लेती है तो एफसीआई को गेहूं व धान की खरीद के लिए सीधे मंडियों में सक्रिय होना पड़ेगा।
केंद्रीकृत व्यवस्था लागू होने के बाद भी किसानों से एमएसपी पर खरीद जारी रहेगी, लेकिन व्यवस्था में बदलाव से किसानों को कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। खासतौर पर एफसीआई के खरीद मानकों को लेकर किसानों की चिंताएं हैं। अगर केंद्र सरकार मध्य प्रदेश सरकार के आग्रह को स्वीकार कर लेती है तो राज्य में धान और गेहूं की खरीद में नागरिक आपूर्ति निगम की भूमिका समाप्त हो जाएगी।
किसानों को होगा घाटा: जीतू पटवारी
वहीं, सीएम मोहन यादव का पत्र सामने आने के बाद प्रदेश की सियासत गरमा गई है। विपक्षी दल कांग्रेस के नेता जीतू पटवारी ने आरोप लगाया, "मप्र की भाजपा सरकार ने गेहूं व धान की सरकारी खरीदी करने से हाथ खड़े कर दिए हैं। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी को पत्र भी लिख दिया है। सरकार का कुतर्क है अब FCI खरीदी करेगा! मैं प्रामाणिक तौर पर कह रहा हूं इससे किसानों को सिर्फ नुकसान ही होगा! गुणवत्ता मानक के नाम पर लाखों क्विंटल गेहूं रिजेक्ट होगा। किसान को अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई औने-पौने दामों पर बाजार की शर्तों और निजी व्यापारियों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा!"
जीतू पटवारी ने मध्यप्रदेश सरकार के इस निर्णय का विरोध करते हुए कहा कि किसानों के आर्थिक शोषण की इस नीति को तत्काल वापस लेना चाहिए।