यूपी में लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ 5 फीसदी गेहूं की सरकारी खरीद, समय बढ़ाने का भी असर नहीं

उत्तर प्रदेश में गेहूं की खरीद लगभग 3,32,000 टन पर अटक गई है, जबकि सरकार ने 60 लाख टन का लक्ष्य रखा था। इस तरह वास्तविक खरीद लक्ष्य के 5.5 फीसदी तक ही पहुंच सकी। पिछले साल राज्य सरकार और भारतीय खाद्य निगम के खरीद केंद्रों ने 2021-22 रबी विपणन सत्र के लिए 55 लाख टन के लक्ष्य के मुकाबले 10 जून 2021 तक 50 लाख टन गेहंं खरीदा था

वर्तमान रबी विपणन सत्र 2022-23 में उत्तर प्रदेश में गेहूं की खरीद लगभग 3,32,000 टन पर अटक गई है, जबकि सरकार ने 60 लाख टन का लक्ष्य रखा था। इस तरह वास्तविक खरीद लक्ष्य के 5.5 फीसदी तक ही पहुंच सकी। पिछले साल राज्य सरकार और भारतीय खाद्य निगम के खरीद केंद्रों ने 2021-22 रबी विपणन सत्र के लिए 55 लाख टन के लक्ष्य के मुकाबले 10 जून 2021 तक 50 लाख टन गेहूं खरीदा था। इस तरह देखा जाए तो इस वर्ष पिछले साल की तुलना में 10 फीसदी गेहूं की भी सरकारी खरीद नहीं हुई है।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार सरकारी एजेंसियों ने अब तक राज्य के लगभग 87,000 गेहूं किसानों से लगभग 3,31,000 टन गेहूं की खरीद की है। सरकारी खरीद कम होने के कारण हाल ही योगी आदित्यनाथ सरकार ने गेहूं खरीद की अवधि दो सप्ताह बढ़ाकर 30 जून कर दी थी।

चालू सीजन में गेहूं की खरीद के एवज में अब तक किसानों को 615 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया जा चुका है। पिछले साल इसी अवधि में एक लाख से अधिक किसानों को लगभग 10,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। अब जून में बाकी बचे करीब एक हफ्ते में कम ही रहने की उम्मीद है। सरकारी एजेंसियां ​​2,015 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं खरीद रही हैं। खरीद सीजन एक अप्रैल से शुरू हो गया था और राज्य सरकार द्वारा समय सीमा बढ़ाने से पहले 15 जून को समाप्त होने वाला था। उत्तर प्रदेश सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन के दौरान किसानों से गेहूं खरीदने के लिए 6,000 खरीद केंद्र खोलने की योजना की घोषणा की थी।

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गेहूं की कीमतों में उछाल के कारण रबी विपणन सत्र की शुरुआत में ही गेहूं की खरीद कम होने की उम्मीद थी। रूस और यूक्रेन विश्व स्तर पर बड़े गेहूं उत्पादक और निर्यातक रहे हैं। निर्यात बाजार में गेहूं की मांग में वृद्धि के कारण इसकी घरेलू कीमतों में भी वृद्धि हुई थी। हालांकि भारत सरकार ने बाद में घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।