आईसीएआर के सीआईएसएच संस्थान में हो रही हैं आम की बायोएक्टिव किस्में विकसित

आईसीएआर का सेंट्र्ल इंस्टीट्यूट ऑफ सब-ट्रॉपिकल हार्टिकल्चर रिसर्च (सीआईएसएच) संस्थान किसानों की आय में वृद्धि और स्वास्थ्य के लिए बेहतर किस्मों के लिए बॉयोएक्टिव आम की किस्मों को विकसित करने के लिए अनुसंधान कर रहा है

अकारण ही आम को फलों का राजा नही कहा जाता,बल्कि उसमें  स्वाद, बनावट और सुगंध जैसी खासियत हैं, जिसके लिए प्यार से उसे 'फलों का राजा' कहा जाता है।

लोकप्रिय गैस्ट्रोनॉमिकल के अनुसार आम को इसके विशेष चिकित्सकीय गुणों की विस्तृत श्रृंखला की वजह से लोगों में स्वीकार किया जाता है। इसका उत्पादन केवल भारत ही नही बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य हिस्सों में भी प्रमुखता से किया जाता है।आम के मौसम में लोग खासकर बच्चे, आम का सेवन बड़े चाव से करते हैं। आम विटामिन-ए की कमी को दूर करता है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के लखनऊ स्थित सेंट्र्ल इंस्टीट्यूट ऑफ सब-ट्रॉपिकल हार्टिकल्चर रिसर्च (सीआईएसएच) में किसानों की आय में वृद्धि और स्वास्थ्य के लिए बेहतर किस्मों के लिए आम की बॉयोएक्टिव किस्मों को विकसित करने के लिए अनुसंधान चल रहा है ।

सीआईएसएच के डायरेक्टर डॉ. शैलेंद्र राजन का कहना है कि औषधीय और चिकित्सा शोधकर्ताओं ने आम में पाये जाने वाले दो महत्वपूर्ण घटकों मैंगिफेरिन और ल्यूपोल से  मिलने वाले  स्वास्थ्य लाभों की खोज की है। इन खास गुणों के चलते आम में कैंसर रोग से लड़ने की क्षमता और  हृदय  को स्वस्थ रखने के गुण होते हैं। इसके चलते ही  हमारे कृषि वैज्ञानिक औऱ शोधकर्ताओं को आम की  बायोएक्टिव तत्व  -उन्नतशील  किस्मों को विकसित करने के लिए प्रेरित हुए हैं। 

सीआईएसएच को  ग्लोबल मार्केट में  निर्यात करने औऱ अपनी जगह बनाने के  लिए लाल रंग की किस्मों को विकसित करने का जिम्मा दिया गया है। ग्लोबल मार्केट में  ब्राजील और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों के लाल रंग के आमों का प्रभुत्व था क्योंकि उस समय, अमेरिका और यूरोप में उपभोक्ताओं को  केवल लाल रंग के आम  के बारे में जानकारी थी हालांकि, जैसे-जैसे लोग बायोएक्टिव तत्व की उपस्थिति  और इसके औषधीय गुणों के बारे में अधिक जागरूक होते गए, कृषि वैज्ञानिकों का बायोएक्टिव तत्व  की समृद्ध किस्मों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

सीआईएसएच लखनऊ के पास दुनिया के विभिन्न प्रकार के आम के किस्में मौजूद है। इन फलों के विश्लेषण से इन विभिन्न प्रकार बायोएक्टिव तत्वों  की एक विस्तृत श्रृंखला का पता चला है। डॉ. राजन ने यह भी बताया हैं कि इन किस्मों के अलावा, संस्थान ने आम की हाइब्रिड किस्मों को विकसित किया है जिनमें पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक पौष्टिक तत्व मौजूद है।

आम के महत्व की बात की जाए तो इसमें विटामिन, खनिज, पॉलीफेनोल एंटीऑक्सिडेंट और मैंगिफेरिन और ल्यूपोल जैसे कई अन्य बायोएक्टिव तत्व  की मौजूदगी और उच्च सांद्रता के कारण इसकी संज्ञा  एक 'सुपर फल' के रूप में की गई है। आम की किस्में उसके आकार, रंग, सुगंध, स्वाद और कई अन्य  विशेषताओं से यह दूसरे फलो से  भिन्न  है। 

हालांकि, आम की कुछ किस्मों में अधिक दाम हासिल करने की क्षमता है लेकिन उनमें कम पोषक तत्व होते हैं। मगर आम की कुछ किस्मों में पोषक तत्वो की अधिक मात्रा  होती है लेकिन उपभोक्ता  जनता इससे अनजान रहते हैं और इसलिए यह किस्में बाजार में उपलब्ध नहीं होती हैं। विशेषज्ञों का सुझाव  है कि अधिक पोषकता वाली कम प्रचलित आम की किस्मों को पहचान कर  इनकी लोकप्रियता बढ़ाकर इनकी अधिक कीमत मिलने का रास्ता बनाया जा सकता है।  

अब तक सीआईएसएच में आम के पल्प में पोषक तत्वों की जानकारी के लिए आम की 100 से अधिक किस्मों का अध्ययन किया जा चुका है। आम्रपाली में फ्लेवोनोइड्स और कैरोटेनॉयड्स की उच्च सांद्रता होती है जबकि लंगड़ा एक प्रसिद्ध किस्म है उसमें एंटीऑक्सीडेंट ज्यादा पाया जाता  है लेकिन कैरोटीनॉयड कम मात्रा में पाया जाता  है।

डॉ राजन का कहना है कि "बायोएक्टिव तत्व आंत में ग्लूकोज के अवशोषण को रोककर ब्लड शुगर के स्तर को कम करते हैं। मैंगिफेरिन स्तन और पेट के कैंसर से बचाने में मदद करता है। आम में पाया जाना वाला ल्यूपोल में सूजन, गठिया, मधुमेह, हृदय रोग, गुर्दे की बीमारी, यकृत विषाक्तता, माइक्रोबियल संक्रमण, कैंसर आदि सहित विभिन्न रोगों से लड़ने की औषधिय क्षमता होती है।

 ( वीरेंद्र सिंह रावत, लखनऊ में कार्यरत जर्नलिस्ट हैं। वह इकोनॉमी, बजट, एग्रीकल्चर और समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।)