आईआईटी गुवाहाटी ने बांस से बनाया पॉलीमर कम्पोजिट, ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स में हो सकता है इस्तेमाल

आईआईटी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने 'बम्बूसा तुल्दा' नामक स्थानीय बांस और बायोडिग्रेडेबल पॉलिमर से मिलाकर एक सस्ता और पर्यावरण के अनुकूल नया मटेरियल बनाया है। यह मजबूत, गर्मी सहन करने वाला और नमी कम सोखने वाला है, जो गाड़ियों के इंटीरियर में प्लास्टिक की जगह इस्तेमाल किया जा सकता है। यह खोज भारत के हरित निर्माण लक्ष्यों के अनुरूप है और इसका उपयोग ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और सस्टेनेबल इन्फ्रास्ट्रक्चर में किया जा सकता है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी (IIT Guwahati) के शोधकर्ताओं ने पूर्वोत्तर भारत में तेज़ी से बढ़ने वाली बांस की प्रजाति 'बम्बूसा टुल्डा' से बायो डिग्रेडेबल पॉलिमर के साथ मिलकर एक पर्यावरण-अनुकूल मिश्रित सामग्री विकसित की है। उच्च शक्ति, तापीय स्थिरता, कम नमी अवशोषण और कम लागत जैसे गुणों के कारण यह सामग्री ऑटोमोटिव इंटीरियर में इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक प्लास्टिक का एक उपयुक्त विकल्प है।

संस्थान में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर डॉ. पूनम कुमारी के नेतृत्व में किया गया यह शोध न केवल प्लास्टिक कचरे की समस्या का समाधान करता है, बल्कि हरित सामग्रियों की बढ़ती वैश्विक मांग, विशेष रूप से ऑटोमोटिव उद्योग के लिए, का समाधान भी प्रदान करता है।

प्रो. पूनम कुमारी, मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी गुवाहाटी

इस शोध के निष्कर्ष प्रतिष्ठित जर्नल, एनवायरमेंट, डेवलपमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी (स्प्रिंगर नेचर) में प्रकाशित हुए हैं। शोध का लेखन प्रो. पूनम कुमारी ने शोध छात्र अबीर साहा और निखिल दिलीप कुलकर्णी के साथ मिलकर किया है।

कैसे बनाया यह पॉलीमर
आईआईटी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने चार बांस-आधारित मिश्रित फॉर्मूलेशन का परीक्षण किया, जिनमें जैव-आधारित या पेट्रोलियम-आधारित एपॉक्सी से रीइनफोर्स किए गए बम्बूसा-तुलदा रेशे शामिल थे। टीम ने बांस के रेशों को क्षार से उपचारित करके, बेस पॉलीमर के साथ उनकी अनुकूलता में सुधार किया। इससे वास्तविक उपयोग के लिए उनकी शक्ति में वृद्धि हुई। इसके बाद तैयार फॉर्मूलेशन का मूल्यांकन 17 विभिन्न मापदंडों पर किया गया ताकि उनकी तन्य शक्ति, तापीय प्रतिरोध, इम्पैक्ट ड्यूरेबिलिटी, जल अवशोषण और प्रति किलोग्राम लागत आदि का परीक्षण किया जा सके।

इन सभी फॉर्मूलेशनों में अलग-अलग ताकत थी, लेकिन कोई भी ऐसा नहीं था जिसमें संतुलित और उच्च प्रदर्शन करने वाले सभी गुण मौजूद हों। इसे पहचानने के लिए शोधकर्ताओं ने मल्टी-क्राइटेरिया डिसीजन मेकिंग (MCDM) नामक एक विशेष मूल्यांकन विधि का इस्तेमाल किया। परिणामों में पाया गया कि बायो-बेस्ड एपॉक्सी "फॉर्मुलाइट" से बना बांस का कंपोज़िट सबसे बेहतर प्रदर्शन करता है। इसमें नमी बहुत कम सोखती है, अच्छी गर्मी सहन करने की क्षमता है और यह मजबूत भी है। इसकी कीमत लगभग 4300 रुपये प्रति किलोग्राम है, जिससे यह किफायती और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प बन जाता है। इसका उपयोग वाहन के डैशबोर्ड, डोर पैनल और सीट बैक जैसे हिस्सों में किया जा सकता है।

कहां हो सकता है इसका इस्तेमाल
विकसित कंपोजिट के बारे में बात करते हुए डॉ. पूनम कुमारी ने कहा, "यह कंपोजिट उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, हवाई जहाजों और टिकाऊ निर्माण सामग्री जैसी चीज़ों के हिस्से/पुर्ज़े बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह लकड़ी, लोहे और प्लास्टिक के हिस्सों का सस्ता और टिकाऊ विकल्प होगा। इसकी कीमत भी लगभग बराबर होगी और यह सतत विकास के लक्ष्य (SDG) 7, 8 और 9 को पूरा करने में मदद करेगा। यह विकास ‘मेक इन इंडिया’ नीति और ग्रीन टेक्नोलॉजी क्रांति के अनुरूप है।”

टीम फिलहाल इस नए बनाए गए कंपोज़िट (मिश्रित पदार्थ) का पूरा जीवन चक्र मूल्यांकन कर रही है, ताकि यह समझा जा सके कि इसके निर्माण से लेकर नष्ट होने तक पर्यावरण पर इसका क्या असर पड़ता है। अगले चरण में, शोधकर्ता अब उत्पादन बढ़ाने के लिए इंडस्ट्रियल तकनीक जैसे कम्प्रेशन मॉडलिंग और रेज़िन ट्रांसफर अपनाने की योजना बना रहे हैं।