सेब उत्पादक किसान प्रभावित कर सकते हैं हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजे

देश में सेब का कुल उत्पादन 24 लाख टन है और इसका  26 फीसदी से अधिक इस पहाड़ी राज्य से आता है। जिसके जरिये राज्य को 5000 से 5,500 करोड़ रुपये की सालाना आय होती है और यह राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 5 फीसदी का योगदान देती है। राज्य के सेब किसान भाजपा सरकार से नाराज दिख रहे हैं और करीब 20 विधान सभा सीटों पर बड़ी संख्या में हैं। उनकी नाराजगी चुनावों में भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है

हिमाचल प्रदेश अपने सेब के बागानों के लिए जाना जाता है यह यहां के लोगों की आय का एक बड़ा जरिया है। सेब हिमाचल की  अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। देश में सेब का कुल उत्पादन 24 लाख टन है और इसका  26 फीसदी से अधिक इस पहाड़ी राज्य से आता है। जिसके जरिये राज्य को 5000 से 5,500 करोड़ रुपये की सालाना आय होती है और यह राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 5 फीसदी का योगदान देती है। राज्य के सेब किसान भाजपा सरकार से नाराज दिख रहे हैं और करीब 20 विधान सभा सीटों पर बड़ी संख्या में हैं। उनकी नाराजगी चुनावों में भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है।

हालांकि पिछले कुछ सालों से सेब बागानों के किसानों कठिन दौर से गुजर रहे हैं। एक कीटनाशक के एक पैकेट की कीमत जहां पहले 800 रुपये हुआ करती थी लेकिन अब यही करीब दोगुना हो गई है। वहीं सेब की पैकेजिंग के मैटीरियल की कीमत भी 20 फीसदी बढ़ गई है। एक तरफ जहां  उत्पादन की लागत में वृद्धि हुई है लेकिन वहीं दूसरी तरफ यह बिडम्बना है कि सेब की कीमतों में कमी आई है और किसानों की आय घट गई है। 

सेब की खेती में लागत के बढ़ने में कई कारक हैं जहां पहले पैकेजिंग सामग्री पर जीएसटी 12 फीसदी थी जो अब 18 फीसदी हो गया है। लागत बढ़ने में इसे एक मुख्य कारक माना जा रहा है। इसमें कोई आश्चर्य करने बात करने वाली बात नहीं है कि चुनाव के अंतिम चरण के प्रचार के दौरान सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी कांग्रेस ने सेब की खेती करने वाले किसानों को अपनी तरफ लुभाने के लिए पूरी  ताकत लगा दी है। 

राज्य विधानसभा में 68 सीटें हैं और 20 सीटों पर सेब की खेती करने वालों की अच्छी खासी संख्या है। हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को मतदान होगा और वोटों की गिनती 8 दिसंबर को होगी। अभी दो महीने पहले सेब  बागान मालिक अधिक उत्पादन लागत और सेब की कम कीमतों के विरोध में सड़कों पर उतर आए थे। हिमाचल प्रदेश में माकपा विधायक राकेश सिंघा ने अन्य मुद्दों के अलावा पैकेजिंग सामग्री पर मूल्य वृद्धि और जीएसटी के खिलाफ सेब की खेती करने वालों के विरोध का जिक्र करते हुए कहा, मैं साल 1987 से सेब किसानों से जुड़ा हुआ हूं। सेब किसानों के दो बड़े आंदोलन हुए हैं। पहले भाजपा और फिर कांग्रेस के शासन के दौरान आंदोलन हुआ।

हिमाचल प्रदेश के कांग्रेस प्रभारी राजीव शुक्ला ने पूछा कि भाजपा ने कहा है कि सेब उत्पादकों के लिए जीएसटी 12 फीसदी तक सीमित होगा लेकिन वे जीएसटी को खत्म क्यों नहीं कर रहे हैं। शुक्ला ने कहा कि सेब उत्पादकों के प्रतिनिधित्व के साथ एक कृषि और उत्पादक समिति का गठन किया जाएगा जो फलों और फसलों की कीमत तय करेगी।

कांग्रेस नेता अलका लाम्बा ने दावा किया कि राज्य में सेब उत्पादक एमएसपी की गारंटी देने वाले कानून के अभाव में अपनी उपज कम दरों पर बेचने को मजबूर हैं। उनका मानना है उनकी पार्टी सत्ता विरोधी लहर पर है और मतदाताओं से राज्य में भाजपा को दोबारा न चुनने का आग्रह कर रही है।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने राज्य के प्रमुख सेब उत्पादक क्षेत्रों में एक के बाद एक तीन चुनावी सभाओं को संबोधित किया, जो कांग्रेस के गढ़ हैं। सेब बेल्ट में नड्डा के खिलाफ राजस्थान से कांग्रेस के नेता सचिन पायलट थ, जिन्होंने जुब्बल-कोटखाई में सेब के मुख्य व्यापारिक केंद्र खरापाथर में एक रैली को संबोधित किया। पायलट ने आरोप लगाया कि सरकार के नासमझी भरे रवैये के कारण सेब की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। सेब राज्य की सबसे बड़ी कमाई के साधनों में से एक है। भाजपा सरकार ने राज्य में कीटनाशकों और फफूंदनाशकों पर सब्सिडी समाप्त कर दी है।

दूसरी ओर  सत्तारूढ़ दल भाजपा का मानना ​​है कि उसने सेब किसानों की मदद के लिए बहुत कुछ किया है। उनका कहना है कि सेब के बागवानों को ठोस योजना बनाकर हर रूप से  क्षमता में विकास में मदद की है। यह आंदोलन राजनीतिक है जिसे हमारे विरोधियों ने बनाया है। हाल ही में, संयुक्त किसान मंच (एसकेएम) ने सेब किसानों से अपील की है कि एक विशेष पार्टी ने उनके हितों की रक्षा के लिए क्या किया है और अपने घोषणापत्र में किए गए वादों पर अमल किया है कि नही  इसका आकलन करने के बाद और सोच  विचार करके  ही वोट डालें।

सेब किसानों के मुताबिक उन्हें सरकार की ओर से कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। कई किसानों का मानना ​​है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने उनकी उपेक्षा की है और इस वजह से उनका मुनाफा कम हो गया है। सरकार ने कवकनाशी और अन्य चीजों पर सब्सिडी को हटा दिया और उद्योग के लिए आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी बढ़ा दिया और इसने किसानों की परेशानी में इजाफा किया है।