वैश्विक बाजार में दूध की मांग कम लेकिन सप्लाई अधिक, दुग्ध उत्पादों के दाम में अस्थिरता के आसार

Maxum Foods की एक रिपोर्ट के अनुसार यूरोपीय संघ, अमेरिका और न्यूज़ीलैंड में बढ़ते दूध उत्पादन के कारण इसकी कीमतों में गिरावट का रुख है। इससे वैश्विक डेयरी बाज़ारों पर नए सिरे से दबाव बढ़ रहा है। विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि 2025 के अंत तक आपूर्ति मांग से ज़्यादा हो जाएगी, जिससे डेयरी क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ेगी।

वैश्विक डेयरी बाज़ार इन दिनों उथल-पुथल का सामना कर रहे हैं। प्रमुख दूध उत्पादक देशों में उत्पादन बढ़ने के कारण दुग्ध उत्पादों की कीमतें नीचे जा रही हैं। यूरोपीय संघ, अमेरिका और न्यूज़ीलैंड से आपूर्ति में वृद्धि मांग से ज़्यादा हो रही है, जिससे उत्पाद मूल्य कम हो रहे हैं। मैक्सम फ़ूड्स (Maxum Foods) ने अपनी अगस्त 2025 की एक रिपोर्ट में यह बात कही है।

रिपोर्ट के अनुसार इस साल की शुरुआत में कीमतों में थोड़े समय की मजबूती के बाद बाज़ार के फंडामेंटल में बदलाव आया है। यूरोपीय संघ में आपूर्ति की बाधाएँ कम हुई हैं, हालांकि वहां ग्रीष्मकाल अधिक गर्म और शुष्क होने के कारण चारे की उपलब्धता पर ख़तरा मंडरा रहा है। अमेरिका में दूध और पनीर के उत्पादन में मज़बूत वृद्धि देखी जा रही है। वहां सुस्त घरेलू मांग और निर्यात में कमी के कारण स्टॉक बढ़ रहा है और कीमतें गिर रही हैं।

न्यूज़ीलैंड डेयरी का बड़ा निर्यातक है। वह एक और मजबूत सीज़न की ओर अग्रसर है। वहां दूध उत्पादन पिछले साल के स्तर से थोड़ा ऊपर रहने की उम्मीद है। हालांकि वैश्विक व्यापार सक्रिय बना हुआ है, लेकिन कमजोर मांग कीमतों को प्रभावित कर रही है, जिससे निर्यात की गति पर असर पड़ रहा है।

हालांकि ऑस्ट्रेलिया की तस्वीर इसके विपरीत है। कुछ क्षेत्रों में बारिश में सुधार के बावजूद, दक्षिण के इलाके में लगातार चारे की कमी के कारण मई से चारे की कीमतें दोगुनी हो गई हैं। इस तनाव के कारण पिछले तीन वर्षों में सबसे ज़्यादा पशु वध दर्ज की गई है। वर्ष 2025-26 के सीज़न में मिल्क सॉलिड के उत्पादन में 2% की कमी आने का अनुमान है।

मैक्सम फ़ूड्स का कहना है कि भू-राजनीतिक बदलाव और अमेरिकी राजकोषीय नीति में परिवर्तन वैश्विक परिदृश्य को और जटिल बना रहे हैं। आने वाले महीनों में आपूर्ति के मांग से अधिक होने की संभावना है। रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय डेयरी उद्योग के लिए बढ़ते जोखिमों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि उत्पादन में वृद्धि से दीर्घकालिक मूल्य स्थिरता को खतरा है।