2022 पांचवां सबसे गर्म साल रहा, भारत में फसलों को हुआ नुकसान: डब्ल्यूएमओ

जलवायु परिवर्तन की वजह से फसलों की पैदावार प्रभावित हो रही है।

जलवायु परिवर्तन की वजह से पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2022 में दुनिया का औसत तापमान 1.15 डिग्री सेल्सियस अधिक था। इसकी वजह से पिछला साल आधिकारिक तौर पर अब तक का पांचवा या छठा सबसे गर्म साल रहा है। इससे भारत में फसलों की पैदावार में गिरावट आई है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की ओर से शुक्रवार को जारी ताजा रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।

स्टेट ऑफ दि ग्लोबल क्लाइमेट 2022 नाम से डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक (1850-1900) औसत से 1.15 डिग्री सेल्सियस अधिक था। ला नीना की स्थिति के बावजूद रिकॉर्ड में यह "पांचवां या छठा" सबसे गर्म वर्ष रहा है। वर्ष 2015 से आठ साल बाद यह अब तक का सबसे गर्म वर्ष था। रिपोर्ट में इसके तीन मुख्य कारण बताए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रीनहाउस गैसों - कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड की सांद्रता 2021 में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई (ताजा आंकड़े इसी वर्ष तक के उपलब्ध हैं)।

डब्ल्यूएमओ का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री की सीमा (पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में) से नीचे रखना महत्वपूर्ण है। 2022 में मानसून से पहले का समय भारत और पाकिस्तान में असाधारण रूप से गर्म था। पाकिस्तान में मार्च और अप्रैल सबसे गर्म रहा जो एक रिकॉर्ड था। इन दोनों महीनों में राष्ट्रीय औसत तापमान दीर्घकालिक औसत से चार डिग्री सेल्सियस से अधिक था। वहीं भारत में अत्यधिक गर्मी की वजह से अनाज की पैदावार कम हो गई। उत्तराखंड के कई जंगलों में ज्यादा गर्मी की वजह से आग लग गई थी।

रिपोर्ट के मुताबिक, "भारत और पाकिस्तान में 2022 में मानसून सीजन से पहले चली गर्म हवाएं फसलों की पैदावार में गिरावट का कारण बनी। इसकी वजह से भारत को गेहूं का निर्यात रोकना पड़ा। इससे पहले रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने चावल निर्यात पर पाबंदी लगाई थी। भारत के इन दोनों कदमों से अंतरराष्ट्रीय बाजार में मुख्य खाद्य पदार्थों की उपलब्धता खतरे में पड़ गई। अंतरराष्ट्रीय खाद्य बाजारों में मुख्य खाद्य पदार्थों की पहुंच व स्थिरता और पहले से ही मुख्य खाद्य पदार्थों की कमी से प्रभावित देशों के लिए भारत के इस कदम ने ज्यादा जोखिम पैदा कर दिया है।"

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डब्ल्यूएमओ ने कहा है कि पिछले साल जून में मानसून सीजन के दौरान, खासकर भारत के पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों में बाढ़ की विभीषिका देखने को मिली। बाढ़ और भूस्खलन के कारण लगभग 700 लोग मारे गए और अन्य 900 लोग बिजली गिरने से मारे गए। असम में बाढ़ से 6.63 लाख लोगों का विस्थापन भी हुआ। इसी तरह, पाकिस्तान में भारी बारिश की वजह से बाढ़ का गंभीर संकट पैदा हुआ और भूस्खलन हुआ। इससे देश के दक्षिणी एवं मध्य भागों के सबसे कमजोर और खाद्य-असुरक्षित क्षेत्रों में सबसे अधिक प्रभाव पड़ा और जल जनित बीमारियों का प्रसार हुआ। बाढ़ की वजह से 9.36 लाख पशुओं के साथ 1,700 से अधिक लोग मारे गए। कृषि भूमि के बड़े क्षेत्र प्रभावित हुए और परिवहन व बुनियादी ढांचे के निर्माण को काफी हद तक बाढ़ ने बाधित कर दिया।

डब्ल्यूएमओ के महासचिव प्रोफेसर पेटेरी टालस ने कहा, “दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि की वजह से जलवायु परिवर्तन जारी है। जलवायु परिवर्तन की घटनाओं से दुनिया की बड़ी आबदी गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है। उदाहरण के लिए, 2022 में पूर्वी अफ्रीका में लगातार सूखा पड़ा, पाकिस्तान में रिकॉर्ड तोड़ बारिश हुई और चीन एवं यूरोप में भीषण गर्मी ने लाखों लोगों को प्रभावित किया। इसने खाद्य असुरक्षा को बढ़ावा दिया जिससे बड़े पैमाने पर पलायन बढ़ा और अरबों डॉलर का नुकसान हुआ। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों के बीच सहयोग की वजह से जलवायु की घटनाओं से प्रेरित मानवीय प्रभावों को कम करने में बहुत प्रभावी साबित हुआ है, खासकर मृत्यु दर और आर्थिक नुकसान को कम करने में। संयुक्त राष्ट्र की 'सभी पहल के लिए प्रारंभिक चेतावनी' का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पृथ्वी पर मौजूद हर व्यक्ति को पहले ही चेतावनी मिल जाए।"

फिलहाल, दुनिया के लगभग 100 देशों में पर्याप्त मौसम सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं। इस महत्वाकांक्षी कार्य को पूरा करने के लिए अवलोकन नेटवर्क में सुधार और पूर्व चेतावनी, जल विज्ञान एवं जलवायु सेवा क्षमताओं में निवेश की आवश्यकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबे समय से निगरानी किए जा रहे ग्लेशियरों के एक सेट में औसतन 1.18 मीटर पानी के बराबर बर्फ का नुकसान हुआ जो पिछले दशक के औसत से बहुत अधिक है। आधिकारिक तौर पर वर्ष 2015 के बाद यह छह सबसे नकारात्मक द्रव्यमान संतुलन वर्ष (1950 से 2022 तक)  के बाद हुआ है। 1970 के बाद से संचयी द्रव्यमान संतुलन (उस समय से ग्लेशियरों से खोई हुई बर्फ की कुल मात्रा) 26 मीटर से अधिक पानी के बराबर है। द्रव्यमान संतुलन समय के साथ ग्लेशियरों के द्रव्यमान में परिवर्तन को मापने का एक तरीका है। इसकी गणना बर्फ की कुल मात्रा और पिघलने वाली बर्फ की मात्रा को घटाकर की जाती है।

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ग्रीनहाउस गैसों द्वारा जलवायु प्रणाली में फंसी ऊर्जा का लगभग 90 फीसदी महासागरों में चला जाता है। समुद्र की गर्मी की मात्रा, जो ऊर्जा में इस लाभ को मापती है, 2022 में रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गई। डब्ल्यूएमओ ने कहा है कि लगातार तीन वर्षों से ला नीना की स्थिति के बावजूद समुद्र की सतह के 58 फीसदी हिस्से में 2022 में कम से कम एक बार समुद्री गर्म हवाओं का असर रहा। इसके विपरीत केवल 25 फीसदी समुद्र सतह पर ठंडी हवाओं का असर देखा गया।