पराली जलाने की घटनाओं में पिछले साल के मुकाबले 52.5 फीसदी की कमी

देश में किसानों द्वारा फसल अवशेष यानि पराली जलाने की घटनाओं में साल 2020 की तुलना में इस साल 23 अक्तूबर,2021 तक 52.5 फीसदी कमी आई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की एक रिपोर्ट में यह आंकड़े दिये गये हैं। इन आंकड़ों के अनुसार 23 अक्तूबर तक पंजाब में 58.2 फीसदी , हरियाणा में 5.4 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 4.3 फीसदी, दिल्ली में 100 फीसदी और राजस्थान में पराली जलाने की घटनाओं में 87.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है । वहीं पंजाब और हरियाणा के किसान कह रहे हैं कि हाल के दिनों में बारिश होने की वजह से धान की कटाई में देरी हो रही है और पराली गीली है इसलिए आने वाले दिनों में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ सकती हैं

देश में किसानों द्वारा फसल अवशेष यानि पराली जलाने की  घटनाओं में साल 2020 की तुलना में इस साल 23 अक्तूबर,2021 तक  52.5 फीसदी कमी आई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की एक रिपोर्ट में यह आंकड़े दिये गये हैं।  इन आंकड़ों के अनुसार  23 अक्तूबर तक पंजाब  में  58.2 फीसदी , हरियाणा में 5.4 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 4.3 फीसदी, दिल्ली में 100 फीसदी और राजस्थान में  पराली जलाने की घटनाओं में 87.5  फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।  जबकि  मध्य प्रदेश में 2020 की तुलना में चालू सीजन में 81 फीसदी  की कमी दर्ज की गई। आईसीएआर सैटेलाइट से स्ट्रॉ बर्नर की निगरानी कर रहा है। वहीं पंजाब और हरियाणा के किसान कह रहे हैं कि हाल के दिनों में बारिश होने की वजह से धान की कटाई में देरी हो रही है और पराली गीली है इसलिए आने वाले दिनों में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ सकती हैं। 

आईसीएआर द्वारा सैटेलाइट लिए गये  6 राज्यों के आंकड़ों के अनुसार 22 अक्टूबर 2021 में  फसल अवशेष  में आग की लगने घटनाएं जहां 1228 थी वही 23 अक्टूबर 2021 फसल अवशेष जलाने की संख्या 542 थी।   

आईसीएआर की रिपोर्ट के मुताबिक 23 अक्टूबर, 2021 को पंजाब में  369 हरियाणा में 136, उत्तर प्रदेश में 7  दिल्ली शून्य , राजस्थान में 7 और मध्य प्रदेश  23 स्थानों पर फसल अवशेष जलाने की घटनाएं हुई। आईसीएआर का कहना है कि 15 सितंबर, 2021 से लेकर 23 अक्टूबर, 2021 के बीच छह राज्यों में कुल 8332 फसल अवशेष जलने की घटनाओं का पता चला है, जिनमें पंजाब में 5807 हरियाणा में 1644, उत्तर प्रदेश में 641,  दिल्ली में शून्य ,राजस्थान  में 52 और मध्यप्रदेश में 1881 था।  

इस सबंध में भारतीय किसान अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) में फसल अवशेष प्रबंधन परियोजना पर कार्य कर रहे वैज्ञानिक डॉ. इंद्रमणि मिश्रा ने रूरल वॉयस को बताया कि पराली जलाने की दर में आई गिरावट के लिए केन्द्र सरकार ,आईसीएआर,  कृषि विश्वविद्यालयों और राज्य सरकारों की  एकीकृत कार्ययोजना के चलते यह नतीजा सामने आया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने फसल अवशेष प्रबंधन के उद्देश्य से कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन (एसएमएएम) योजना के तहत केंद्र सरकार ने पिछले चार वर्षों में इस मुद्दे को हल करने के लिए 2000 हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए गये हैं। किसानों को फसल अवशेष जलाने से रोकने के उद्देश्य से वर्ष 2018 में फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) की योजना शुरू की गई थी, जिसमें किसानों को कस्मट हायरिंग सेंटर्स (सीएचसी)  की स्थापना के माध्यम से उसी स्थान पर फसल प्रबंधन के लिए मशीनरी प्रदान की जाती है। धान की पराली और फसल अवशेष जलाने पर रोक लगाने के लिए आईसीएआर के महानिदेशक (डीजी) की अध्यक्षता में हाई लेवल निगरानी समिति गठित की गई है। आईसीएआर सैटेलाइट से स्ट्रॉ बर्नर की निगरानी कर रहा है। खेत में पराली जलाते ही राज्यों को इससे संबधित अधिकारी को सूचित कर दिया जाता है जिससे  उसको नियंत्रित कर सके। 

डॉ. मिश्रा ने कहा कि आईसीएआर के संस्थआन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई ) द्वारा विकसित एक कम लागत वाली कैप्सूल पूसा डि-कंपोजर तकनीक 25 राज्यों में किसानों को प्रदान की गई है। इस साल देश में राज्य  सरकार कृषि विश्विविद्यालय आईएआरआई  सहित निजी संस्थानों ने  17 लाख एकड़  के लिए  फसलों के अवशेषों को खेत मे गलाने के लिए डि-कंपोजर दिया गया है। किसानों के बीच पराली जलाना नहीं, गलाना है का नारा प्रचारित किया गया है।

लेकिन किसान पूरी तरह से सरकार के इन दावों से सहमत नहीं हैं। हरियणा के कंडेला गांव के किसान कल्याण मंच के प्रदेश अध्यक्ष सुनील कंडेला ने रूरल वॉयस के साथ एक बातचीत में कहा कि कोई भी किसान पराली को नही जलाना चाहता है। पराली हम लोग मजबूरी में जलाते हैं। अगर किसानों को सही समाधान मिल जाय तो पराली नही जलंएगें । पराली  जलाने की कमी आने  के आंकडे़ पर उन्होंने कहा कि अभी हरियाणा में ज्यादा एरिया में धान की कटाई नहीं हुई है। ज्यादा पराली जलाने के मामले आने वाले  दो  तीन सप्ताह में देखने को मिलेंगे। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगर सरकार की तरफ से पराली को निपटाने के लिए कोई मदद मिलती है तो पराली तो नहीं जलाएंगे। अगर मदद नहीं मिलती है तो जल्दी से गेहूं की बुवाई के लिए  किसान धान की पराली को जलाएंगे।

वहीं पंजाब के किसानों का कहना है कि सरकारी डाटा कुछ भी कहे लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं। ज्यादातर एरिया में अभी धान की कटाई चल रही है औऱ बारिश के वजह धान की कटाई में इस साल देरी हो रही है। खेतों में ज्यादा नमी के वजह से खेतों की जुताई में भी देरी हो रही है। आने वाले दिनों में  जब किसान गेहूं की बुवाई के लिए  खेत तैयार करेंगे तो उस वक्त जमीनी हकीकत की सही अंदाजा लग सकेगा।