उत्तर भारत के प्रमुख कपास उत्पादक जिलों में हरे तेला (जैसिड) का खतरनाक प्रकोप देखने को मिल रहा है। साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर (SABC), जोधपुर द्वारा प्रोजेक्ट बंधन के तहत किए गए ताजा फील्ड सर्वेक्षण में यह जानकारी सामने आई है। हरियाणा के हिसार, फतेहाबाद, सिरसा; पंजाब के मानसा, बठिंडा, अबोहर, फाजिल्का और राजस्थान के हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर जिलों में कपास की फसल पर इस कीट का गंभीर हमला पाया गया है।
डॉ. दिलीप मोंगा, डॉ. भागीरथ चौधरी, डॉ. नरेश, दीपक जाखड़ और केएस भारद्वाज की टीम ने प्रति पत्ती 12-15 लीफहॉपर के संक्रमण स्तर की सूचना दी है। फील्ड सर्वेक्षण में न केवल प्रति पत्ती लीफहॉपर की अत्यधिक तादाद की सूचना मिली, बल्कि कपास की पत्तियों को होने वाली क्षति भी काफी अधिक पाई गई।
लीफहॉपर (जैसिड) संक्रमण के लक्षण
पत्तियों का किनारा पीला होना, नीचे की ओर मुड़ना और पौधे के अवरुद्ध विकास इसके प्रमुख लक्षण हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह पिछले एक दशक का सबसे गंभीर प्रकोप है।
‘Amrasca biguttula biguttula’ नामक यह कीट जिसे इंडियन कॉटन जैसिड या हरे तेला भी कहा जाता है, कपास के अलावा बैंगन, आलू, मिर्च आदि फसलों को भी नुकसान पहुंचाता है। यह पत्तियों से रस चूसता है और विषाक्त पदार्थ छोड़ता है, जिससे पत्ते मुरझाने, सिकुड़ने और सूखने लगते हैं। यदि समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो कपास की उपज में 30% तक की गिरावट संभव है।
प्रकोप का कारण
इस बार सामान्य से अधिक बारिश, लगातार नमी और उमस भरे मौसम ने इस कीट के प्रसार को बढ़ावा दिया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR-CICR) संक्रमण पैमाने के अनुसार, अधिकांश खेतों में ग्रेड-3 से 4 स्तर की क्षति पाई गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तरी कपास उत्पादक क्षेत्र में यह एक दशक का सबसे भीषण प्रकोप है।
फसल की वर्तमान स्थिति
SABC के संस्थापक व निदेशक डॉ. भगीरथ चौधरी के अनुसार, लीफहॉपर का संक्रमण ऐसे समय में सामने आया है जब कपास की फसल खड़ी है और फसल की स्थिति पिछले तीन-चार वर्षों की तुलना में काफी बेहतर है। श्रीगंगानगर के देर से बोए गए क्षेत्रों को छोड़कर, जहां बुवाई के दौरान सिंचाई उपलब्ध नहीं थी, पूरे उत्तरी क्षेत्र में फसल मज़बूत दिखाई दे रही है।