पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन, कई प्रश्नचिन्ह छोड़ गई एक निर्भीक आवाज

गवर्नर के पद पर रहने के बाद जीवन के अंतिम वर्षों में सत्यपाल मलिक ने जिस बेबाकी से सरकार पर सवाल उठाए, उन्हें एक अनूठे राजनीतिक व्यक्तित्व के तौर पर याद किया जाता रहेगा।

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन, कई प्रश्नचिन्ह छोड़ गई एक निर्भीक आवाज

पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ राजनेता सत्यपाल मलिक का मंगलवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वे 79 वर्ष के थे। उनके निधन की खबर से राजनीतिक और सामाजिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। सत्यपाल मलिक ने अपने सार्वजनिक जीवन में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं और विभिन्न राज्यों के राज्यपाल के रूप में अपनी सक्रिय और स्पष्टवादी भूमिका के लिए जाने जाते रहे। 

मलिक के नजदीकी लोगों ने बताया कि आज दोपहर 1 बजकर 12 मिनट पर राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उनका निधन हो गया। 

सत्यपाल मलिक ने जम्मू-कश्मीर, गोवा, मेघालय और बिहार के राज्यपाल के रूप में कार्य किया। अपने कार्यकाल के दौरान और उसके बाद भी वे अपनी स्पष्टवादिता और बयानों को लेकर चर्चा में रहे। वे केंद्र सरकार की नीतियों पर बेबाकी से सवाल उठाते रहे, जिससे वे सुर्खियों में रहते थे। 

सत्यपाल मलिक की सादगी, स्पष्टवादिता और किसानों से गहरे जुड़ाव ने उन्हें एक अलग पहचान दी।  24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश में बागपत के हिसावदा गांव में जन्मे मलिक छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे। वे पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की प्रेरणा से राजनीति में आए। 1974 में चौधरी चरण सिंह ने उन्हें भारतीय क्रांति दल के टिकट पर बागपत से चुनाव लड़ाया और वे महज 28 साल की उम्र में विधानसभा पहुंच गये थे। 

इमरजेंसी के दौरान सत्यपाल मलिक ने इंदिरा गांधी की नीतियों का विरोध किया और जेल गये। 1980 में लोकदल ने उन्हें राज्यसभा भेजा। लेकिन 1984 में वह कांग्रेस में शामिल हो गये। राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स घोटाले के आरोप लगने के बाद उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और वीपी सिंह के जन मोर्चा और फिर जनता दल में शामिल हो गये।   

1989 में वह जनता दल के टिकट पर लोकसभा सांसद चुने गये और 1990 में केंद्र सरकार में राज्यमंत्री भी रहे। लेकिन 1996 में सपा के टिकट पर अलीगढ़ से लोकसभा चुनाव हार गये। बाद में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। वे भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय प्रभारी और 2012 में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे। 2017 में उन्हें बिहार और 2018 में जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल नियुक्त किया गया। 2020 में किसान आंदोलन के दौरान उन्होंने किसानों के मुद्दों पर सरकार को आगाह किया। तभी से उनके बयान सुर्खियों में रहने लगे। 

हालांकि, सत्यपाल मलिक के कार्यकाल में ही जम्मू-कश्मीर में विधानसभा भंग हुई और अनुच्छेद 370 हटाया गया था। 2023 में उन्होंने पुलवामा हमले को लेकर कई सवाल खड़े किये। 2022 तक वह मेघालय के राज्यपाल रहे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से मोदी सरकार के मुखर आलोचक हो गये थे। उन्होंने 'अग्निपथ योजना' को लेकर भी सरकार की खूब आलोचना की। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समेत पक्ष-विपक्ष के तमाम नेताओं ने सत्यपाल मलिक के निधन पर दुख जताया। 

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