मूंगफली किसानों को नुकसान से बचाने में कारगर साबित होगा इक्रीसेट का नया शोध
अध्ययन में पाया गया कि प्राकृतिक विविधता काफी व्यापक है — कुछ किस्में 30 दिनों से अधिक तक अंकुरित नहीं हुईं, जबकि कुछ एक सप्ताह में ही अंकुरित हो गईं। टीम ने उन किस्मों का चयन किया जिनमें 10–21 दिनों की डॉर्मेंसी थी, जो सुरक्षित कटाई और समय पर दोबारा बुवाई के लिए आदर्श मानी जाती है
इंटरनेशनल क्रॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी एरिड जोन (इक्रीसेट) और उसके सहयोगी संस्थानों मूंगफली को लेकर एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। संस्थान के एक नये अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि ताज़े बीजों में प्राकृतिक डॉर्मेंसी—यानी अंकुरण का “निर्मित इंतज़ार”—मूंगफली में प्रि-हार्वेस्ट स्प्राउटिंग रोक सकता है और किसानों की पैदावार तथा गुणवत्ता दोनों को बचाया जा सकता है। इक्रीसेट के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने इस शोध को कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि जलवायु अनिश्चितताओं के बीच ताज़े बीजों की डॉर्मेंसी पर प्राप्त ये जीनोमिक जानकारियां वैश्विक दक्षिण के करोड़ों छोटे किसानों के लिए परिवर्तनकारी अवसर प्रदान करती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वे दुनिया भर के मूंगफली ब्रीडर्स से अपील करते हैं कि वह इन निष्कर्षों को अगली पीढ़ी की सहनशील किस्मों के विकास में शामिल करें।
अनिश्चित और बे-मौसम बारिश मूंगफली किसानों के लिए गंभीर खतरा बनती रही है। कटाई से पहले ही फली में अंकुरण (प्रि-हार्वेस्ट स्प्राउटिंग) होने से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। स्पेनिश किस्मों पर इसका प्रभाव सबसे ज्यादा पड़ता है, जो वैश्विक मूंगफली उत्पादन का लगभग 60 फीसदी हिस्सा हैं। शुरुआती बरसात से समयपूर्व अंकुरण होने पर 10–20 फीसदी तक पैदावार घट सकती है और गंभीर परिस्थितियों में यह नुकसान 50 फीसदी तक पहुंच सकता है। ऐसे में उन किस्मों और जीन्स को समझना बेहद जरूरी हो जाता है, जिनमें नमी की स्थिति में भी अंकुरण रुक सके।
आमतौर पर मूंगफली की फसल बोने के 90–120 दिनों बाद पककर तैयार होती है। किसान इस चरण में सूखे मौसम की छोटी-सी अवधि पर निर्भर रहते हैं। पकने या सुखाने के समय थोड़ी-सी बारिश भी अंकुरण को शुरू कर सकती है, जिससे पैदावार, गुणवत्ता और किसानों की आय — तीनों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। दो सीज़न में इक्रीसेट जीनबैंक के 184 मूंगफली जीनोटाइप का मूल्यांकन किया गया। अध्ययन में पाया गया कि प्राकृतिक विविधता काफी व्यापक है — कुछ किस्में 30 दिनों से अधिक तक अंकुरित नहीं हुईं, जबकि कुछ एक सप्ताह में ही अंकुरित हो गईं। टीम ने उन किस्मों का चयन किया जिनमें 10–21 दिनों की डॉर्मेंसी थी, जो सुरक्षित कटाई और समय पर दोबारा बुवाई के लिए आदर्श मानी जाती है।
इसके बाद चयनित किस्मों की आनुवंशिक संरचना का विश्लेषण किया गया और 9 प्रमुख जीन्स की पहचान की गई, जो ताज़ी बीज डॉर्मेंसी और प्रि-हार्वेस्ट स्प्राउटिंग प्रतिरोध से जुड़े हैं। यह खोज भविष्य में बेहतर किस्मों के विकास के लिए महत्वपूर्ण दिशा प्रदान करती है। इक्रीसैट के डिप्टी डायरेक्टर जनरल (रिसर्च एंड इनोवेशन) डॉ. स्टैनफोर्ड ब्लेड ने कहा कि मूंगफली अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की प्रमुख आर्थिक फसल है और वैश्विक तिलहन उत्पादन का आधार भी। उन्होंने कहा कि बीज डॉर्मेंसी का अनुकूलन केवल छोटे किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी बदलावकारी क्षमता रखता है।
अध्ययन मूंगफली की ऐसी किस्में विकसित करने की नींव रखता है जिनमें 2–3 सप्ताह की डॉर्मेंसी हो—यह किसानों को अचानक बारिश के बीच भी सुरक्षित कटाई करने का समय दे सकती है। इक्रीसैट के प्रिंसिपल साइंटिस्ट (जीनोमिक्स और प्री-ब्रीडिंग) डॉ. मनीष पांडे ने बताया कि ताज़े बीजों की डॉर्मेंसी का महत्व मूंगफली के अलावा कई अन्य फसलों में भी है। उनका कहना है कि जीनोमिक-आधारित समाधान सबसे किफायती तरीका है, और उन्हें उम्मीद है कि यह खोज इस क्षेत्र में और शोध को प्रोत्साहित करेगी।
इक्रीसैट हाल के वर्षों में मूंगफली की गर्मी सहनशीलता, रोग प्रतिरोध और ब्लैंचेबिलिटी से जुड़े जीनोमिक पहलुओं पर भी महत्वपूर्ण प्रगति कर चुका है। संस्थान की ब्रीडर टीम वैश्विक जर्मप्लाज़्म में से प्राथमिक गुणों की पहचान कर जीन-स्तरीय जानकारी को नई किस्मों के विकास में शामिल कर रही है, ताकि किसानों को भविष्य के लिए बेहतर किस्में उपलब्ध कराई जा सकें। यह अध्ययन भारत के कृषि विश्वविद्यालय रायचूर, अमेरिका के USDA–ARS क्रॉप जेनेटिक्स एंड ब्रीडिंग रिसर्च यूनिट, चीन की ऑयल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट, और ऑस्ट्रेलिया की मर्डोक यूनिवर्सिटी के साझेदारी में किया गया।

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