केंद्र ने किसानों को क्या प्रस्ताव दिया? किन फसलों की होगी 5 साल तक एमएसपी पर खरीद?

केंद्र सरकार ने किसानों के सामने एक प्रस्ताव रखा है, जिसके तहत फसल विविधिकरण अपनाने वाले किसानों से सहकारी एजेंसियां एमएसपी पर उपज खरीद के लिए पांच साल का अनुबंध करेंगी। यह अनुबंध दलहन, मक्का और कपास की फसलों के लिए होगा, जिनकी 5 साल तक एमएसपी पर खरीद की जाएगी। किसान नेताओं का कहना है कि वे सरकार के प्रस्ताव पर आपस में विचार कर एक-दो दिन में अगला निर्णय लेंगे। 

फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी समेत कई मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे किसानों और तीन केंद्रीय मंत्रियों पीयूष गोयल, अर्जुन मुंडा व नित्यानंद राय के बीच चौथे देर की वार्ता रविवार देर रात तक चली। केंद्र सरकार ने किसानों के सामने एक प्रस्ताव रखा है, जिसके तहत फसल विविधिकरण अपनाने वाले किसानों से सहकारी एजेंसियां एमएसपी पर दालों, मक्का और कपास की खरीद के लिए पांच साल का अनुबंध करेंगी। किसान नेताओं का कहना है कि वे सरकार के प्रस्ताव पर आपस में विचार कर एक-दो दिन में अगला निर्णय लेंगे। 

चंडीगढ़ में किसान नेताओं के साथ बातचीत के बाद केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि एनसीसीएफ और नेफेड जैसी सहकारी संस्थाएं उन किसानों के साथ अनुबंध करेंगी जो अरहर, उड़द, मसूर दाल या मक्का उगाएंगे। अगले 5 वर्षों तक उनकी फसलें एमएसपी पर खरीदी जाएंगी। खरीद की मात्रा की कोई सीमा नहीं होगी और इसके लिए एक पोर्टल बनाया जाएगा। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इससे पंजाब भूजल स्तर में सुधार होगा और जमीन को बंजर होने से रोका जा सकेगा। गोयल के मुताबिक, “किसान मक्का उगाना चाहते हैं लेकिन कीमतें एमएसपी से नीचे जाने पर उन्हें जो नुकसान होता है, उससे वे बचना चाहते हैं।” 

गोयल ने कहा कि हमने किसान नेताओं को प्रस्ताव दिया है। वे चर्चा कर सोमवार सुबह तक हमें जवाब दे सकते हैं। अगर किसान कोई निर्णय लेते हैं, तो सरकार उसके अनुरुप चर्चा कर आगे बढ़ेगी। किसानों की अन्य मांगों पर गोयल ने कहा कि उन पर गहन चर्चा के बिना समाधान निकालना संभव नहीं था। चुनाव आ रहे हैं और नई सरकार बनेगी। इन मुद्दों पर चर्चा जारी रहेगी। केंद्रीय मंत्री ने सरकार के प्रस्ताव को इनोवेटिव और आउट ऑफ द बॉक्स बताते हुए कहा कि किसानों को अपना विरोध समाप्त कर देना चाहिए। यदि किसान सहमत होते हैं तो अन्य मांगों पर भी चर्चा की जाएगी।

प्रस्ताव पर विचार करेंगे किसान 

केंद्र के प्रस्ताव पर किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने कहा कि अगले एक-दो दिन अपने मंचों पर चर्चा करेंगे और इस बारे में विशेषज्ञों की राय लेंगे। उसके बाद ही आगे की रणनति तय की जाएगी। कर्ज माफी और अन्य मांगों पर अभी चर्चा नहीं हुई है। उन्होंने मंगलवार तक इन मसलों पर ही कुछ सहमति बनने की उम्मीद जताई। किसानों का 'दिल्ली चलो' मार्च फिलहाल रुका हुआ है, लेकिन अगर सभी मुद्दों का हल नहीं निकला तो 21 फरवरी से फिर दिल्ली मार्च शुरू होगा।

रविवार को केंद्रीय मंत्रियों के साथ बैठक में किसान यूनियनों के 14 प्रतिनिधि मौजूद थे। बैठक शुरू होने से पहले दो मिनट का मौन रखकर किसान आंदोलन के दौरान मरने वाले किसान ज्ञान सिंह को श्रद्धांजलि दी गई। 

पंजाब के मुख्यमंत्री ने उठाया दालों के आयात का मुद्दा 

बैठक में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी शामिल थे। किसानों के साथ वार्ता से पहले केंद्रीय मंत्रियों ने पंजाब के मुख्यमंत्री के साथ अलग से भी बैठक की थी। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि उन्होंने किसानों के वकील के रूप में बैठक में भाग लिया। अंतिम निर्णय किसानों को लेना है। बैठक के दौरान उन्होंने मोजाम्बिक और कोलंबिया से दालों के आयात का मुद्दा उठाया। मुख्यमंत्री मान का कहना है कि अगर इन फसलों के लिए एमएसपी दिया जाता है तो पंजाब दालों के उत्पादन में देश का नेतृत्व कर सकता है और यह दूसरी हरित क्रांति होगी। राज्य के किसान कपास और मक्का तभी अपना सकते हैं जब उन्हें इन फसलों पर एमएसपी की गारंटी मिले। 

क्या हैं किसानों की मांगें? 

केंद्र सरकार से वार्ता विफल रहने के बाद गत 13 फरवरी को किसानों ने दिल्ली मार्च शुरू किया था, लेकिन उन्हें हरियाणा के शंभू और खनौरी बॉर्डर पर रोक दिया गया। किसानों ने हरियाणा की सीमा में दाखिल होने की कोशिश की तो सुरक्षाबलों और आंदोलनकारी किसानों के बीच टकराव हुआ। किसानों को रोकने के लिए आंसू गैस के गोले बरसाए और पैलेट गन का इस्तेमाल हुआ। ड्रोन से भी आंसू गैस के गोले छोड़े गए। इस दौरान कई किसान और पुलिसकर्मी घायल हो गये। फिलहाल हजारों किसान शंभू बॉर्डर और खनौरी बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं। 

किसानों की मुख्य मांगों में एमएसपी की कानूनी गारंटी, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने, किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए पेंशन, कृषि ऋण माफी, बिजली दरों में बढ़ोतरी पर रोक, किसानों के खिलाफ पुलिस केस वापस लेने, आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिजनों को मुआवजे, भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 को बहाल करने और लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों के लिए "न्याय" की मांग शामिल है।   

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दो साल पहले हुए किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए मोदी सरकार ने तीनों कानूनों को वापस लेने का फैसला किया था। साथ ही एमएसपी के मुद्दे का हल निकालने समेत कई वादे किए थे। आंदोलित किसान अब सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे हैं।