हाइब्रिड धान की खेती पर प्रतिबंध लगाने के पंजाब सरकार के आदेश को निष्प्रभावी करने के लिए केंद्र सरकार सीड एक्ट, 1966 के प्रावधानों का इस्तेमाल कर सकती है। पंजाब सरकार ने 7 अप्रैल को धान की हाइब्रिड किस्मों के बीजों की बिक्री और बुवाई पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था। फिलहाल यह मामला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में विचाराधीन है।
इसी बीच, खबर है कि केंद्र सरकार सीड एक्ट, 1966 के प्रावधानों का इस्तेमाल कर पंजाब सरकार के आदेश को रोकने की कवायद में जुट गई है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, केंद्र सरकार का तर्क है कि सीड एक्ट के तहत नोटिफाइड किस्मों पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में 5 मई को हुई सुनवाई के दौरान भी केंद्र सरकार ने यह दलील पेश की थी। मामले में अगली सुनवाई 13 मई को होगी।
उधर, सीड इंडस्ट्री का तर्क है कि धान की बुवाई का सीजन निकला जा रहा है। अगर समय रहते फैसला नहीं हुआ तो इस साल पंजाब के किसानों को हाइब्रिड बीज न मिलने से 12 से 15 हजार रुपये प्रति एकड़ का नुकसान उठाना पड़ेगा। वर्ष 2019 में भी पंजाब सरकार ने धान की हाइब्रिड किस्मों पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन तब मामला किसी तरह सुलझ गया था। लेकिन इस साल फिर से पंजाब के कृषि विभाग ने एक आदेश जारी कर हाइब्रिड धान के बीजों की बिक्री और बुवाई पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके पीछे मिलिंग में टूटने अधिक होने को वजह बताया जा रहा है।
हाइब्रिड धान पर रोक के खिलाफ पंजाब के कुछ किसान और बीज विक्रेता हाई कोर्ट पहुंच गये। इस मामले पर पहली सुनवाई 25 अप्रैल को हुई थी। उसके बाद 2 मई औ 5 मई को भी सुनवाई हुई। सुनवाई में पंजाब सरकार ने तर्क दिया था कि हाइब्रिड किस्मों पर यह रोक स्टेट सीड एक्ट, 1949 के तहत मिले अधिकारों के तहत लगाई गई है। जबकि याचिका दायर करने वाले किसानों और बीज बिक्रेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार का सीड एक्ट, 1966 राज्य सरकारों की ओर से जारी 1949 के सीड अंतरिम आदेशों को ओवरवराइड करता है। यानी राज्य सरकार के पास अधिकार नहीं है कि वह केंद्र सरकार द्वारा नोटिफाइड किस्मों पर प्रतिबंध लगा सके।
5 मई की सुनवाई में केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए असिस्टेंट सॉलिसीटर जनरल (एएसजी) सत्य पाल जैन ने कहा कि पंजाब सरकार को इस प्रकार का आदेश जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। हाइब्रिड किस्मों की अधिसूचना जारी करने से पहले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा उत्पादन, मिलिंग रिकवरी और एग्रो-क्लाइमेट जोन के हिसाब से अनुकूलता का मूल्यांकन किया जाता है। केंद्र सरकार की ओर से अधिसूचित हाइब्रिड किस्मों पर रोक लगाने का पंजाब सरकार के पास कोई अधिकार नहीं है।
याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय से पंजाब सरकार के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी। मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस कुलदीप तिवारी ने केंद्र से उसका पक्ष रिकार्ड पर रखने के लिए लिखित में जवाब मांगा। जिसके लिए केंद्र सरकार की ओर पेश हुए एएसजी ने दो सप्ताह का समय मांगा। हालांकि, किसानों और बीज डीलर्स के वकीलों ने कहा कि अगर दो सप्ताह बाद सुनवाई होगी तो चालू खरीफ सीजन में बुवाई का समय निकल जाएगा। इसके बाद न्यायालय ने मामले की सुनवाई 13 मई के लिए तय की है।
उधर, सूत्रों का मानना है कि केंद्र सरकार इस मामले में हस्तक्षेप कर सकती है। केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव (सीड) सीड कंट्रोलर होने के नाते पंजाब सरकार के आदेश पर रोक लगा सकते हैं।
पंजाब में करीब 5 लाख एकड़ में हाइब्रिड धान की खेती होती है। सवाना सीड कंपनी की हाइब्रिड किस्म सवा 7501 की उत्पादकता 85 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है। साथ ही ये किस्में 125 दिन में तैयार हो जाती हैं। इस तरह हाइब्रिड धान से किसानों को प्रति एकड़ 12 से 15 हजार रुपये तक का फायदा होता है। अगर पंजाब के किसानों को ये किस्में नहीं उगाने को मिलती हैं तो उनको यह नुकसान उठाना पड़ेगा।
हाइब्रिड किस्मों की अधिक उपज और कम अवधि के कारण ही हरियाणा में हाइब्रिड धान का रकबा पंजाब से अधिक हो गया है। हरियाणा में करीब छह लाख एकड़ में हाइब्रिड धान उगाया जा रहा है। पिछले साल हरियाणा में धान की हाइब्रिड किस्मों के बीज खरीदने के लिए किसानों की लंबी लाइनें लगी थीं।
पंजाब में हाइब्रिड किस्मों पर प्रतिबंध के बावजूद बहुत-से किसान अधिक उपज देने वाली हाइब्रिड धान का बीज खरीदना चाहते हैं। केंद्र सरकार का कृषि मंत्रालय भी इस मामले को लेकर सक्रिय है। हालांकि, एएसजी द्वारा केंद्र सरकार के लिखित जवाब के लिए दो सप्ताह का समय मांगने के चलते मामला लटक गया है।