कोऑपरेटिव की पहुंच हर गांव, हर व्यक्ति तक होः डॉ. चंद्रपाल सिंह

कृषक भारती कोऑपरेटिव लिमिटेड (KRIBHCO) के चेयरमैन और इंटरनेशनल कोऑपरेटिव अलायंस (एशिया-प्रशांत) के प्रेसिडेंट डॉ. चंद्रपाल सिंह का मानना है कि सहकारिता हर गांव और हर व्यक्ति तक पहुंचनी चाहिए। खास बातचीत में उन्होंने नई सहकारी नीति में प्रोफेशनल प्रबंधन, महिला-युवा भागीदारी, पारदर्शिता और स्वायत्तता पर जोर दिया।

देश की दूसरी सबसे बड़ी सहकारी उर्वरक उत्पादक और विपणन संस्था कृभको के चेयरमैन और इंटरनेशनल कोऑपरेटिव अलायंस (आईसीए) के एशिया-पैसिफिक प्रेसिडेंट डॉ. चंद्रपाल सिंह का कहना है कि कोऑपरेटिव की पहुंच हर व्यक्ति तक होनी चाहिए। बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मुकाबला करने के लिए भी सहकारी संस्थाओं को मजबूत करना जरूरी है। डॉ. यादव ने रूरल वर्ल्ड के एडिटर-इन-चीफ हरवीर सिंह के साथ नई सहकारिता नीति 2025, अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष और कृभको के डायवर्सिफिकेशन के बारे में लंबी बातचीत की। मुख्य अंश:

यह इंटरव्यू पहले हमारे प्रिंट पब्लिकेशन रूरल वर्ल्ड के अगस्त से अक्तूबर, 2025 के संस्करण मेंं प्रकाशित हो चुका है। 

-आप इंटरनेशनल कोऑपरेटिव एलायंस (आईसीए) में एशिया पैसिफिक के प्रेसिडेंट हैं। पहली बार कोई भारतीय इस पद पर है। आईसीए में आप भारतीय सहकारिता क्षेत्र को किस तरह का एक्सपोजर दे पाए? खासतौर से आईसीए के विश्व की कोऑपरेटिव क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण संस्था होने के नाते। 

सिर्फ हिंदुस्तान में नहीं, बल्कि पूरे एशिया क्षेत्र में हमने इंटरनेशनल ईयर ऑफ कोऑपरेटिव्स, 2025 (आईवाईसी, 2025) के कार्यक्रम आयोजित किए और उनके प्रभाव की समय-समय पर समीक्षा की। हाल ही हमारे बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मीटिंग चीन के ग्वांग्झाउ में हुई। वहां हमने विस्तार से इस बात पर चर्चा की कि किस देश में क्या कार्यक्रम हुए, वहां की सरकार के सपोर्ट से क्या हासिल हुआ और आम लोगों पर उसका क्या प्रभाव रहा? इस आधार पर हमने पूरे क्षेत्र की समीक्षा की है। 

यह तो बात हुई एशिया क्षेत्र की। हमारा सौभाग्य था कि आईवाईसी, 2025 की शुरुआत हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में की। हिंदुस्तान से उनका संदेश लेकर पूरी दुनिया के लोगों ने साल भर कार्यक्रम आयोजित किए। विभिन्न देशों की सरकारों ने यह प्रयास किया कि सहकारिता आंदोलन को बेहतर बनाया जाए, उसे समृद्ध बनाया जाए। इन सब के लिए हमारे यहां से संदेश लेकर के पूरी दुनिया में लोग गए। दुनिया भर के लोगों ने इस पर काम किया है और इसके परिणाम आने वाले समय में निश्चित रूप से हमारे सामने आएंगे।

-जैसा कि आपने जिक्र किया, कि संयुक्त राष्ट्र के इंटरनेशनल ईयर ऑफ कोऑपरेटिव्स 2025 की शुरुआत हमारे देश से हुई। यह हमारे लिए भी महत्वपूर्ण है। इसका पूरे देश में जो मैसेज गया, क्या उससे कोऑपरेटिव सेक्टर ज्यादा समृद्ध होगा और इससे लोगों के बीच जागरूकता और सहकारिता में गतिविधियां बढ़ेंगी?

हां। हमारा मुख्य मिशन ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का है। पिछले दिनों नेफेड ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था मुंबई में। वहां केंद्रीय गृहमंत्री, कृषि मंत्री, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्री थे। सबके विचार सामने आए। कार्यक्रम में शिरकत करने वाले भी कोऑपरेटिव से जुड़े बड़े लोग और बड़े किसान थे। वहां मंत्री जी ने बताया कि सरकार की तरफ से किसानों के लिए क्या काम किए जा रहे हैं। लोगों की समस्याओं पर सवाल-जवाब भी हुए।

हमारा मुख्य उद्देश्य है ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना, किसान को खुशहाल बनाना, किसान के खेत का उत्पादन बढ़ाना, बैंकों के माध्यम से कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराना, इफको-कृभको के माध्यम से सही मात्रा में, सही कीमत पर और सही समय पर खाद-बीज उपलब्ध कराना। क्वालिटी के मामले में आजकल भरोसा सहकारी संस्थाओं पर है। इन सब बातों पर विस्तार से विचार विमर्श किया गया।

ऐसे ही इफको ने कार्यक्रम किया। कृभको ने भी इंदौर में कार्यक्रम आयोजित किया था। बैंकिंग फेडरेशन ने अलग कार्यक्रम आयोजित किया। ये संस्थाएं जिस उद्देश्य के लिए बनी हैं, उस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने लोगों के समक्ष अपना रोडमैप प्रस्तुत किया और लोगों से सहभागिता की अपील की।

-सहकारिता आंदोलन के लिए वर्ष 2025 की अपनी अहमियत है। वर्ष 2002 के बाद 2025 में नई सहकारिता नीति आई। नई नीति को आप किस तरीके से देखते हैं? देश में सहकारिता आंदोलन के उद्देश्यों को हासिल करने में नई नीति के प्रावधानों को आप किस तरह से देखते हैं? 

देखिए, यह हमारे लिए बहुत खुशी की बात है कि 23 साल बाद राष्ट्रीय स्तर पर नई कोऑपरेटिव पॉलिसी तैयार की गई है। वैसे तो कोऑपरेटिव स्टेट का सब्जेक्ट होता है, राज्य सरकारें अपना कार्यक्रम तय करती हैं। लेकिन हम लंबे समय से यह देख रहे हैं कि राज्यों में भी सहकारी विभाग उपेक्षित रहा है। जिस तरीके से काम होना चाहिए, वह नहीं हो पाता।

जीडीपी में बड़ा योगदान कोऑपरेटिव मूवमेंट से जुड़े हुए लोगों का ही है। आज ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए, किसान को आर्थिक रूप से खुशहाल बनाने के लिए कोऑपरेटिव मूवमेंट के माध्यम से पूरे देश में प्रयास हो रहे हैं। हमारा हमेशा प्रयास रहा है कि कोऑपरेटिव की पहुंच एक-एक गांव में हो। देश में आठ लाख कोऑपरेटिव सोसाइटी हैं, और उनके माध्यम से हमारी पहुंच 90-95% गांवों तक है। लेकिन, हमें इतनी जागरूकता पैदा करनी है कि उसकी पहुंच एक-एक व्यक्ति तक हो जाए। कोऑपरेटिव की अच्छाइयों के बारे में सब लोगों को जानकारी हो।

पॉलिसी के माध्यम से प्राइमरी कोऑपरेटिव सोसाइटी को बहुद्देशीय बना दिया गया है। जैसे, किसान को अपनी उपज मार्केट में बेचने के लिए सहकारी संस्थाएं अहम भूमिका निभा सकती हैं। इनके लिए प्रोफेशनल लोगों की जरूरत है। प्रोफेशनल नहीं होगा तो विश्वसनीयता नहीं होगी। सहकारी संस्थाओं की विश्वसनीयता गांव-गांव तक, एक-एक व्यक्ति तक होनी चाहिए। कामकाज के पुराने तरीके से विश्वसनीयता का ह्रास हुआ है। जब कोई प्रोफेशनल आदमी बैठेगा, वह संस्था के सदस्यों द्वारा लगाई गई शेयर पूंजी के व्यवसाय से उसका घाटा और मुनाफा जुड़ा होगा, तो निश्चित रूप से वह बेहतर ढंग से काम करेगा।

-यह सहकारिता का सिद्धांत ही है कि आप सामूहिक रूप से क्रिएट करते हैं और सामूहिक रूप से मुनाफे को साझा करते हैं। सहकारिता का मंत्र सहकार से समृद्धि है। आप नई पॉलिसी के और कौन से महत्वपूर्ण प्वाइंट हाईलाइट करना चाहेंगे?

हमारे देश की महिलाएं कोऑपरेटिव मूवमेंट से कम जुड़ी हैं। उनके छोटे-छोटे ग्रुप बनाकर, आगे चलकर उनको कोऑपरेटिव सोसाइटी का रूप देकर, उन्हें कोऑपरेटिव मूवमेंट के बारे में जागरूक करके मूवमेंट से जोड़ना है। उनकी ऊर्जा का सदुपयोग करना है। अभी उनकी ऊर्जा का पूरा सदुपयोग देश के निर्माण में हो नहीं पा रहा है। 

दूसरा, कोऑपरेटिव मूवमेंट जवान रहे, इसके लिए आने वाली नई पीढ़ी को हमें जोड़ना है। युवाओं को जोड़ने के लिए त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय बनाने का बहुत अच्छा काम हुआ है। वहां से पढ़-लिखकर जो युवा आएंगे तो कोऑपरेटिव के प्रति उनमें ज्ञान होगा, जागरूकता होगी तो निश्चित रूप से उसका लाभ मिलेगा।

आज पढ़ लिखकर नौजवान केवल रोजगार के लिए घूमता है। लेकिन वह इस बात को भी महसूस कर सकता है कि पढ़-लिखकर अगर 50 लोगों को जोड़कर एक कोऑपरेटिव सोसाइटी बनाएंगे तो बेहतर काम कर सकते हैं। उत्पादक को लाभ पहुंचा सकते हैं और उपभोक्ता को सही कीमत में सही सामान भी उपलब्ध करा सकते हैं। आज इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का जमाना है, उसे नए लोग ही आगे बढ़ा सकते हैं। हमने मांग की है कि हाई स्कूल और इंटरमीडिएट के पाठ्यक्रम में भी एक चैप्टर कोऑपरेटिव पर रखा जाए। पॉलिसी में यह बात रखी गई है। कोऑपरेटिव का एक विषय रखने पर लोगों में जागरूकता पैदा होगी। युवा खुद समृद्ध होने के साथ गांव के दूसरे लोगों और किसानों को भी समृद्ध बनाने में अपनी ऊर्जा का सदुपयोग करेंगे।

-स्वायत्तता और पारदर्शिता के साथ लोगों में प्रोफेशनलिज्म लाने में यह नीति कितनी कारगर होगी? 

मैं कह सकता हूं कि इसमें जो चमत्कारिक बात है उससे इसके परिणाम आएंगे।

-नई नीति में कोऑपरेटिव इलेक्टोरल सिस्टम को भी बदलने की बात की गई है, जिससे पारदर्शिता रहे।

ट्रांसपेरेंसी के लिए इलेक्शन अथॉरिटी और इलेक्टोरल रोल बनाने की बात कही गई है। लोग ही शेयरहोल्डर हैं, उन्हीं में से किसी को आना चाहिए, लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूत रहनी चाहिए। यह सारी बातें पॉलिसी में हैं। पॉलिसी में और भी कई बेहतर चीजें हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन किस तरीके से होता है वह महत्वपूर्ण है।

-सहकारी संस्था लोगों की अपनी संस्था है। जिन लोगों की शेयर होल्डिंग है उनकी स्वायत्तता का इस पॉलिसी में कितना ख्याल रखा गया है? 

बिल्कुल होना चाहिए। पॉलिसी में कहा भी गया है कि स्वायत्तता का ध्यान रखा जाए। लेकिन देखना है कि इस पर कितना अमल होगा। देखिए, मल्टीनेशनल कंपनियों का मुकाबला प्राइवेट लोग तो नहीं कर पाएंगे। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं, कि अगर सहकारी संस्थाएं मजबूत होंगी तो इन मल्टीनेशनल कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा में मजबूती के साथ खड़ी दिखाई देंगी। 

-सहकारिता राज्यों का विषय है। मल्टी स्टेट कोऑपरटिव सोसाइटी तो केंद्रीय रजिस्ट्रार के तहत चलती हैं, लेकिन प्राइमरी कोऑपरटिव सोसाइटी राज्यों के एक्ट के तहत चलती हैं। क्या आपको लगता है कि जो अंब्रेला पॉलिसी बनी है, उसे राज्यों को उसी तरीके से एडॉप्ट करना चाहिए?

राज्यों को इस पॉलिसी को अपने यहां लागू करना चाहिए। अगर वे इस पॉलिसी को बेहतर कर सकते हैं तो उसमें कोई दिक्कत भी नहीं है। लेकिन अगर आप इस पॉलिसी के तहत काम करेंगे तो केंद्र सरकार आर्थिक रूप से भी मदद करेगी। मूवमेंट को चलाने में ट्रेनिंग, एजुकेशन, रिसर्च इन सब कार्यक्रमों के लिए केंद्र सरकार मदद दे रही है। चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो वह क्रियान्वयन करे और बेहतर चीजों को एडॉप्ट करके अपने यहां लागू करे।

-दोनों के तालमेल से अच्छे परिणाम मिलेंगे...।

हम यही कह रहे हैं कि कोऑपरेटिव राजनीति से ऊपर उठ कर है। इसमें जाति, धर्म, संप्रदाय, पार्टी कुछ नहीं, सब बराबर के शेयर होल्डर हैं। प्रॉफिट हो या नुकसान, सबके हिस्से में जाएगा। 

-सरकार ने अलग सहकारिता मंत्रालय बनाया और उसकी जिम्मेदारी पावरफुल कैबिनेट मिनिस्टर अमित शाह को दी। इसका सहकारिता आंदोलन पर कितना असर देखते हैं?

नया मंत्रालय बनने के बाद उसके कामकाज पर जोर देना ही पड़ा। क्योंकि एक तो यह राज्यों का विषय है, और दूसरा, यह काफी उपेक्षित विषय रहा है। यह दो तरीके से उपेक्षित है। एक तो बहुत से लोगों को कोऑपरेटिव सोसाइटी के लाभ-हानि का पता नहीं लगता क्योंकि उनमें जागरूकता नहीं है। जागरूकता नहीं होगी उसका लाभ नीचे तक पहुंच ही नहीं पाएगा। (त्रिभुवन) यूनिवर्सिटी बनने के बाद नौजवान कोऑपरेटिव की तरफ आकर्षित हुआ है। यूनिवर्सिटी से वह एक अच्छा पेशेवर बनकर निकलेगा। उसे अच्छा रोजगार मिलेगा, वह अच्छा व्यवसाय भी कर सकता है। 

-सहकारी संस्थाएं चलाने का आपका लंबा अनुभव है। सहकारिता की बाकी बड़ी संस्थाओं के बोर्ड में भी आप रहे हैं। आप नेशनल कोऑपरेटिव यूनियन ऑफ इंडिया (एनसीयूआई) के अध्यक्ष रहे, कृभको का नेतृत्व लंबे समय से कर रहे हैं। यह देश की दूसरी सबसे बड़ी उर्वरक सहकारी संस्था है और लगातार ग्रोथ भी कर रही है। आपके नेतृत्व में किस तरह से कृभको को देखें? 

हमने संस्था को मजबूत करने का काम किया है। जब मैं 1999 में कृभको का चेयरमैन था, तब इसका उत्पादन 16 से 18 लाख टन के बीच में था। हमने उत्पादन बढ़ाया। आज उसी प्लांट में 24-25 लाख टन उत्पादन होता है। हमने 11 लाख उत्पादन क्षमता वाली इकाई ओसवाल से खरीदी। उस समय पीएसयू का विनिवेश हो रहा था, लेकिन हमने प्राइवेट कंपनी को खरीदा। फिर, ओमान में कृभको, आरसीएफ और ओमान ने साझा प्लांट लगाने की शुरुआत की। हम कोऑपरेटिव की संस्थाएं हैं और कोऑपरेटिव में काम करने में ज्यादा सहूलियत है। पीएसयू के काम करने का तरीका अलग होता है। आरसीएफ के पीछे हटने के बाद उस प्लांट में इफको को शामिल किया। इफको और कृभको ने मिलकर ओमान में प्लांट लगा दिया। 

हमने एथनॉल के तीन प्लांट लगाए। हमने निर्यात के लिए कृभको एग्री बिजनेस शुरू किया। हमने कहा कि किसानों को कैसे फायदा मिले, इसके लिए हमें काम करना है। हमने कई तरीके से किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए काम किया।

-कृभको का लगातार विस्तार हुआ। यह मुनाफे में भी है। इसके शेयर होल्डर को कितना लाभ देते हैं?

एक्ट में प्रोविजन है कि अधिकतम 20% डिविडेंड दे सकते हैं, और जब से मैं चेयरमैन हूं हम 20% डिविडेंड दे रहे हैं। 

-कृभको को डायवर्सिफाई करने के लिए क्या कर रहे हैं?

जैसा मैंने बताया, हमने एथनॉल के प्लांट लगाए। ये ग्रेन बेस्ड एथनॉल प्लांट नेल्लोर, हजीरा और करीमनगर (तेलंगाना) में हैं। ये सब एग्री बेस्ड प्लांट हैं। यहां हम किसानों का मक्का, ब्रोकन राइस इस्तेमाल करेंगे और उससे एथनॉल बनाएंगे। 

-आपकी और भी कोई विस्तार योजना है?

शाहजहांपुर में पोटैटो प्रोसेसिंग प्लांट लगा रहे हैं। वह यूरोप की मल्टीनेशनल कंपनी फार्म फ्राई को सप्लाई के लिए है। वह पूरी दुनिया में फ्रेंच फ्राई सप्लाई करती है। हमने उसके साथ एक एग्रीमेंट किया है कि भारत में भी वे जहां किसानों को सीड उपलब्ध करा के आलू उत्पादन कराएंगे और उनका आलू खरीदेंगे और प्रोसेस करके हम पूरी दुनिया में बेचेंगे। 

देश में उर्वरकों की कमी को देखते हुए हमने शाहजहांपुर फर्टिलाइजर प्लांट में नई यूनिट लगाने का प्रस्ताव दिया है। हमने शाहजहांपुर में रेल लाइन भी बनाई। हमने क्रिल (कृभको इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड) बनाया जिसमें चार कंटेनर डिपो थे। लेकिन उसमें हमारी विशेषज्ञता नहीं थी, इसलिए हम उसमें बेहतर नहीं कर पा रहे थे। इसलिए डीपी वर्ल्ड को उसमें ज्यादा शेयर दे दिया। वे वहां बेहतर काम कर रहे हैं।