जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण में गड़बड़ी! उत्तराखंड की एजेंसी पर एपीडा ने लगाया 10 लाख का जुर्माना
जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण में अनियमितताओं को लेकर एपीडा ने उत्तराखंड राज्य जैविक प्रमाणन एजेंसी पर 10 लाख का जुर्माना लगाया। साथ ही एजेंसी के अन्य राज्यों में प्रमाणन पर प्रतिबंध लगा दिया है।

देश में जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण पर तमाम सवाल उठ रहे हैं। सवालों के घेरे में खुद सरकारी एजेंसियां हैं। उत्तराखंड राज्य जैविक प्रमाणन एजेंसी (USOCA) फिर से विवादों में है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने उत्तराखंड राज्य जैविक प्रमाणन एजेंसी पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। साथ ही एजेंसी के उत्तराखंड के अलावा अन्य राज्यों में जैविक उत्पादों के प्रमाणन पर प्रतिबंध लगा दिया है।
उत्तराखंड राज्य जैविक प्रमाणन एजेंसी पर यह कार्रवाई राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (NPOP) के तहत नेशनल एक्रीडीटेशन बॉडी (NAB) की उप समिति ने की है। इस संबंध में एपीडा की ओर से एक सरकुलर जारी किया गया है।
उच्च पदस्थ सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि उत्तराखंड की एजेंसी के प्रमाणीकरण में मानकों के उल्लंघन और गड़बड़ी की शिकायतों को देखते हुए एपीडा ने एजेंसी से जुड़े कई उत्पादक समूहों का ऑडिट कराया था। इस ऑडिट में कई खामियां सामने आई थीं, जिसके बाद एजेंसी पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
ऑडिट में सामने आया कि उत्तराखंड राज्य जैविक प्रमाणन एजेंसी ने बिना किसी जांच-पड़ताल के कई समूहों को उनके उत्पादों के लिए प्रमाण-पत्र जारी कर दिए। जबकि कुछ समूह जैविक खाद की बजाय रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कर रहे थे। कई उत्पादक समूहों में किसान सदस्य फर्जी थे। इस तरह की कई गड़बड़ियां एजेंसी के प्रमाणीकरण में मिली।
उत्तराखंड राज्य जैविक प्रमाणन एजेंसी वर्ष 2001 में स्थापित उत्तराखंड राज्य बीज एवं जैविक उत्पाद प्रमाणीकरण एजेंसी की एक स्वतंत्र विंग है जो जैविक उत्पादों का थर्ड पार्टी सर्टिफिकेशन करती है। यह सरकारी स्तर पर गठित देश की पहली जैविक उत्पाद प्रमाणीकरण एजेंसी थी जो आज खुद ही विवादों में है।
उत्तराखंड के अलावा यह एजेंसी देश के लगभग 22 राज्यों में जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण का कार्य करती थी। लेकिन अब यह केवल उत्तराखंड में ही सर्टिफिकेशन कर पाएगी। लेकिन एपीडा के कड़े रुख के बाद भी एजेंसी की कार्यशैली में सुधार नहीं हुआ।
पहले भी विवादों में रही एजेंसी
वर्ष 2023 में उत्तराखंड राज्य जैविक प्रमाणन एजेंसी तब विवादों में आई जब एपीडा की ओर से कराए गये ऑडिट में कई खामियां सामने आई थीं। इस पर एपीडा ने एजेंसी को नोटिस जारी किया था और इस साल अप्रैल में पांच लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया था। एजेंसी द्वारा कपास के प्रमाणीकरण में भी अनियमितताएं पाई गई थीं।
जैविक उत्पाद प्रमाणन पर उठे सवाल
कृषि विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र प्रसाद कुकसाल का कहना है कि उत्तराखंड की जैविक उत्पाद प्रमाणन संस्था पर केंद्र सरकार द्वारा जुर्माना और प्रतिबंध लगाना उत्तराखंड में कृषि और शासन व्यवस्था की हालत को उजागर करता है। उन्होंने सवाल उठाया कि जिन एजेंसी को अन्य राज्यों में प्रमाणीकरण हेतु प्रतिबंधित किया है, उत्तराखंड में उन्हीं एजेंसियों से जैविक प्रमाणीकरण का कार्य करवाया जा रहा है। इस तरह तो फर्जी प्रमाणीकरण जारी रहेगा।
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता पंकज सिंह क्षेत्री ने उत्तराखंड की जैविक प्रमाणीकरण एजेंसी पर हुई कार्रवाई के लिए राज्य सरकार और कृषि विभाग की भूमिका पर भी सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में जैविक प्रमाणीकरण में फर्जीवाड़ा व गड़बड़ी की लगातार शिकायतों के बाद भी राज्य सरकार आंख मूंदे बैठी है। राज्य की एजेंसी पर जुर्माना लगने से उत्तराखंड को जैविक प्रदेश बनाने के दावों की पोल खुल गई है।