राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025: सहकार से विकसित भारत का लक्ष्य
सहकारिता मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय सहकारी नीति 2025 का लक्ष्य देश की 8.5 लाख सहकारी समितियों को आधुनिक, पारदर्शी और सशक्त बनाना है। “सहकार से समृद्धि” के दृष्टिकोण के साथ यह नीति 2034 तक जीडीपी में सहकारिता क्षेत्र का योगदान तीन गुना करने, प्रत्येक गांव में एक सहकारी इकाई स्थापित करने और 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को साकार करने पर केंद्रित है।
देश में संगठित सहकारिता आंदोलन का लगभग सवा सौ वर्षों का सफर उपलब्धियों से भरा है। भारत में इस आंदोलन का सबसे बड़ा उदाहरण अमूल पूरी दुनिया के लिए केस स्टडी बन चुका है। लेकिन समय के साथ सहकारिता में अनेक खामियां पनपीं और नित नई चुनौतियां भी सामने आ रही हैं। अनेक सहकारी समितियों में चुनाव में देरी ने भ्रष्टाचार को जन्म दिया। कुछ समितियों के तो उपनियम ही कामकाज में बाधक बन गए। हम जानते हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मुकाबला सहकारी क्षेत्र ही कर सकता है। इसी सहकारी क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए 2021 में नया सहकारिता मंत्रालय गठित किया गया और 23 साल बाद नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025 जारी की गई। यह नीति सहकारी क्षेत्र को पेशेवर और सशक्त बनाने का खाका प्रस्तुत करती है।
राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025 जारी करते हुए केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सहकार से समृद्धि’ के विजन को पूरा करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है। सरकार का लक्ष्य वर्ष 2027 तक भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना है। शाह के अनुसार, “बीते चार साल में कोऑपरेटिव सेक्टर के लिए कई बड़े कदम उठाए गये हैं। वर्ष 2020 से पहले सहकारिता को मृतप्राय बताने वाले लोग ही आज सहकारिता को भविष्य बताते हैं।”
नई नीति ‘सहकार से समृद्धि’ के जरिए 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सहकारी क्षेत्र के विकास पर केंद्रित है। शाह का कहना है, “140 करोड़ लोगों को साथ रखकर देश के आर्थिक विकास की क्षमता केवल और केवल सहकारिता क्षेत्र में है। इसलिए नई सहकारी नीति बनाते समय यह ध्यान रखा गया कि नीति का केन्द्र बिंदु 140 करोड़ लोग हों। गांव, किसान, युवा, ग्रामीण महिलाएं, दलित और आदिवासी हों।”
सहकारी उर्वरक कंपनी कृषक भारती कोऑपरेटिव लिमिटेड (कृभको) और इंटरनेशनल कोऑपरेटिव अलायंस (एशिया पैसिफिक के प्रेसिडेंट डॉ.चंद्रपाल सिंह ने रूरल वर्ल्ड के साथ खास बातचीत (आगे पढ़ें पूरा इंटरव्यू) में इसका थोड़ा और विस्तार किया, “हमारा मुख्य उद्देश्य है ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना, किसान को खुशहाल बनाना, किसान के खेत का उत्पादन बढ़ाना, बैंकों के माध्यम से कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराना, सही मात्रा, सही कीमत और सही समय पर खाद-बीज उपलब्ध कराना।”
हर गांव में एक सहकारी समिति का लक्ष्य
वर्ष 2021 में सहकारिता मंत्रालय बनने के बाद सितंबर, 2022 में नई सहकारिता नीति बनाने की पहल शुरू हुई थी। इसके लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु के नेतृत्व में 48 सदस्यीय समिति गठित की गई। समिति ने हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद वर्तमान नीति का मसौदा तैयार करने के लिए कुल 648 सुझाव एकत्र किए।
राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025 सहकारी क्षेत्र को पेशेवर, सशक्त और नवाचार की दिशा में आगे बढ़ाने का खाका प्रस्तुत करती है। सहकारी उद्यमों को पेशेवर, पारदर्शी, तकनीक-सक्षम और जिम्मेदार आर्थिक इकाइयों के तौर पर बढ़ावा देने और प्रत्येक गांव में कम से कम एक सहकारी इकाई स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। पर्यटन, टैक्सी, बीमा और हरित ऊर्जा जैसे नए क्षेत्रों में उनके कार्यक्षेत्र के विस्तार का सुझाव दिया गया है। सहकार टैक्सी इस दिशा में कदम है। निर्यात, बीज और ऑर्गेनिक उत्पादों की मार्केटिंग को बढ़ावा देने के लिए तीन राष्ट्रीय सहकारी संस्थाओं की भी स्थापना गई है।

डॉ. चंद्रपाल कहते हैं, “हमारा हमेशा प्रयास है कि कोऑपरेटिव की पहुंच एक-एक गांव में हो। देश में आठ लाख कोऑपरेटिव सोसाइटी हैं, और उनके माध्यम से हमारी पहुंच 90-95% गांवों तक है। लेकिन हमें इतनी जागरूकता पैदा करनी है कि उसकी पहुंच एक-एक व्यक्ति तक हो जाए।”
सहकारिता मंत्रालय के मुताबिक, देश में फिलहाल 8.50 लाख से सहकारी समितियां हैं, जिनमें 2 लाख ऋण सहकारी समितियां और 6 लाख गैर-ऋण सहकारी समितियां शामिल हैं जो आवास, डेयरी, मत्स्य पालन आदि क्षेत्रों में फैली हुई हैं। 30 करोड़ से ज़्यादा सदस्यों वाली ये समितियां, खासतौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार देती हैं। फिर भी इनका योगदान जीडीपी में अपेक्षाकृत कम है। नई नीति इसी अंतर को पाटने का रोडमैप सुझाती है। सहकारिता क्षेत्र के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए छह मिशन स्तंभ और 16 उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं।
जीडीपी में योगदान एक दशक में तीन गुना बढ़ाने का लक्ष्य
केंद्र सरकार ने वर्ष 2034 तक सहकारी क्षेत्र का देश की जीडीपी में योगदान तीन गुना बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। देश के 50 करोड़ नागरिक, जो वर्तमान में सहकारी क्षेत्र के सक्रिय सदस्य नहीं हैं या सदस्य ही नहीं हैं, उन्हें सक्रिय सदस्य बनाया जाएगा। सहकारी समितियों की संख्या भी 30 प्रतिशत बढ़ाने का लक्ष्य है। प्रत्येक पंचायत में कम से कम एक प्राथमिक सहकारी इकाई होगी, जो प्राथमिक कृषि ऋण समिति (PACS), प्राथमिक डेयरी, प्राथमिक मत्स्य पालन समिति, प्राथमिक बहुउद्देश्यीय पैक्स या अन्य प्राथमिक इकाई हो सकती है। इनके माध्यम से युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ाए जाएंगे। पारदर्शिता, वित्तीय स्थिरता और संस्थागत विश्वास बढ़ाने के लिए एक क्लस्टर और निगरानी तंत्र भी विकसित किया जाएगा।
कोऑपरेटिव इलेक्शन अथॉरिटी के चेयरपर्सन और पूर्व सहकारिता सचिव देवेंद्र कुमार सिंह (आगे पढ़ें उनका आलेख) बताते हैं, “सरकार की पहल समावेशी रही है और सहकारी समितियों के समूचे पारिस्थितिकी तंत्र को इसमें शामिल किया गया है। इसमें पैक्स (PACS) के लिए आदर्श उपनियम (मॉडल बायलॉज) बनाना भी शामिल है ताकि पारिस्थितिकी तंत्र का आधार मजबूत किया जा सके। यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है कि इन आदर्श उपनियमों को सभी राज्य सरकारों ने अपनाया है। इन सुधारों ने पैक्स को बहुद्देश्यीय व्यावसायिक संस्थाओं में बदलने की एक व्यवस्था प्रदान की।”
अब तक 45 हज़ार नई पैक्स बनाने और उनके कम्प्यूटरीकरण का काम लगभग समाप्त हो चुका है। पैक्स के साथ जोड़े गए 25 नए कामों में से हर काम में कुछ न कुछ प्रगति हुई है। पीएम जनऔषधि केन्द्र के लिए अब तक 4108 पैक्स को स्वीकृति मिल चुकी है। पेट्रोल और डीजल के रिटेल आउटलेट के लिए 393 पैक्स आवेदन कर चुके हैं। एलपीजी वितरण के लिए 100 से अधिक पैक्स ने आवेदन किया है। हर घर नल से जल का प्रबंधन और पीएम सूर्य घर योजना आदि के लिए भी पैक्स काम कर रहे हैं।
सहकारिता नीति में राज्यों को प्रत्येक ज़िले में कम से कम एक आदर्श सहकारी गांव विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया गया है, जो बहुउद्देशीय पैक्स पर केंद्रित होगा। ज़िले के अन्य गांवों को पहले आदर्श गांव के साथ तालमेल बिठाने और फिर राज्य के सर्वश्रेष्ठ गांवों में से एक बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। मॉडल सहकारी गांव नाबार्ड की पहल है जिसकी शुरुआत सबसे पहले गांधीनगर में हुई थी। सहकारिता को आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य से जोड़ते हुए केंद्रीय सहकारिता मंत्री का कहना है, “ग्रामीण, कृषि इकोसिस्टम और गरीबों को अर्थतंत्र का विश्वसनीय हिस्सा बनाने का काम इस सहकारिता नीति के माध्यम से करेंगे। हमने हर राज्य में संतुलित सहकारी विकास का भी रोडमैप तैयार किया है। यह सहकारिता नीति दूरदृष्टिपूर्ण, व्यावहारिक और परिणामोन्मुखी है। सहकारिता आंदोलन इस नीति के आधार पर 2047 में देश की आज़ादी की शताब्दी तक आगे बढ़ेगा।”
कैसे लागू होगी नई नीति
पहली राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2002 में बनी थी। तब इंटरनेट भी गांवों तक पूरी तरह नहीं पहुंचा था। अब डिजिटल इंडिया है, ई-कॉमर्स है और बाजार से जुड़ने के अवसर खुल रहे हैं। वैश्वीकरण, डिजिटलीकरण और सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के चलते सहकारी क्षेत्र को नए सिरे से मजबूती देने की जरूरत है। इसके अलावा, सहकारी संस्थाओं की खराब वित्तीय स्थिति, लचर प्रशासन, पारदर्शिता की कमी और राजनीतिक दबाव जैसी कई खामियां सहकारी क्षेत्र के विकास को अवरुद्ध कर रही हैं। इसलिए नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति की आवश्यकता महसूस की जा रही थी।
सहकारिता नीति पर प्रभावी अमल के लिए एक बहु-स्तरीय व्यवस्था प्रस्तावित की गई है। इसके लिए सहकारिता मंत्रालय में एक 'कार्यान्वयन प्रकोष्ठ' बनाया जाएगा। केंद्रीय सहकारिता मंत्री की अध्यक्षता में सहकारिता नीति पर राष्ट्रीय संचालन समिति बनाई जाएगी। राज्यों के साथ समन्वय, कार्यान्वयन संबंधी बाधाओं का समाधान, समय-समय पर निगरानी और मूल्यांकन आदि के लिए केंद्रीय सहकारिता सचिव की अध्यक्षता में नीति कार्यान्वयन और निगरानी समिति गठित की जाएगी।
युवा, सहकार और नवाचार
नई नीति के तहत युवाओं को सहकारिता के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए सहकारिता से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में पेशेवर शिक्षा और प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाएगी। युवाओं को सहकारी प्रणाली से जोड़ने और उनके प्रशिक्षण के लिए एक राष्ट्रीय शीर्ष संस्था की स्थापना की जाएगी, जो राज्य स्तरीय सहकारी शिक्षण और प्रशिक्षण संस्थानों के साथ समन्वय कर भविष्य के लिए नेतृत्व तैयार करेगी। त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी की स्थापना इसी दिशा में उठाया गया कदम है।
युवाओं को सहकारिता से जोड़ने के महत्व पर डॉ. चंद्रपाल कहते हैं, “कोऑपरेटिव मूवमेंट जवान रहे, इसके लिए आने वाली नई पीढ़ी को हमें जोड़ना है। युवाओं को जोड़ने के लिए त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय बनाने का बहुत अच्छा काम हुआ है। वहां से पढ़-लिखकर युवा आएंगे तो कोऑपरेटिव के प्रति उनमें ज्ञान होगा, जागरूकता होगी तो निश्चित रूप से उसका लाभ मिलेगा।”
सहकारी समितियों में पारदर्शी चुनाव
नई नीति में सहकारी समितियों में समय पर चुनाव कराने पर खास जोर दिया गया है। चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की भी कोशिश की गई है। जिला कलेक्टर चुनाव की सूचना जारी करते हैं, जिसे संबंधित समिति के कार्यक्षेत्र के समाचार पत्रों में भी प्रकाशित किया जाता है, ताकि सदस्यों को जानकारी मिल सके। चुनाव संबंधी सभी जानकारी समिति को अपनी वेबसाइट पर भी उपलब्ध करानी होती है। मल्टी-स्टेट सोसायटी के सदस्य दो या तीन अलग-अलग राज्यों से संबंधित होते हैं, इसलिए पहले उन्हें अक्सर यह भी पता नहीं होता था कि चुनाव कब हो रहे हैं।
कोऑपरेटिव इलेक्शन अथॉरिटी के चेयरपर्सन देवेंद्र कुमार सिंह कहते हैं, “मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटी एक्ट की धारा 45 के अंतर्गत एक सहकारी चुनाव प्राधिकरण (सीईए) की स्थापना गवर्नेंस में सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन है। पहले समितियां स्वयं चुनाव कराती थीं, जिनमें अक्सर पारदर्शिता का अभाव होता था। इस प्राधिकरण की शुरुआत के साथ यह प्रक्रिया कहीं अधिक पारदर्शी हो गई है।”
सहकारिता को मजबूत बनाने के लिए नई नीति में और कई प्रावधान किए गए हैं। इस क्षेत्र में कार्यरत लोगों के प्रशिक्षण और कौशल विकास के लिए एक संगठित तंत्र विकसित किया जाएगा। सहकारी शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार के लिए उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना की जाएगी। नए और उभरते क्षेत्रों में सामाजिक उद्यम इनक्यूबेटर स्थापित किए जाएंगे जो ग्रामीण और सामुदायिक स्तर पर उद्यमशीलता को बढ़ावा देंगे।
राष्ट्रीय डिजिटल सहकारी रोजगार एक्सचेंज की स्थापना का सुझाव दिया गया है, जो योग्य उम्मीदवारों और सहकारी संस्थाओं के बीच सीधा और पारदर्शी संपर्क सुनिश्चित करेगा। एक राष्ट्रीय शिक्षक और प्रशिक्षक डेटाबेस भी तैयार किया जाएगा, जिससे नियुक्ति की प्रक्रिया अधिक सुव्यवस्थित हो सकेगी। इसके अलावा, रेफ्रिजरेशन, एक्वाकल्चर, फार्म प्रबंधन जैसे बाजार-उन्मुख कौशलों में प्रशिक्षण कार्यक्रमों की शुरुआत की योजना है। अब जरूरत बस सही नीयत से नीति पर अमल की है।

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