गुजरात की आलू बेल्ट में मिट्टी संरक्षण को बढ़ावा दे रहा हायफार्म
क्षेत्र के मिट्टी वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों के अनुसार इस गिरावट के पीछे कई कारण हैं — लगातार केवल आलू की खेती (मोनोकल्चर), अत्यधिक सिंचाई, और रासायनिक खाद पर भारी निर्भरता। समय के साथ, इन तरीकों ने मिट्टी के प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया है, जिससे खारापन बढ़ गया है और पौधों की वृद्धि के लिए ज़रूरी जैविक कार्बन और सूक्ष्म जीवों की सक्रियता में भारी कमी आई है

गुजरात के प्रसिद्ध आलू बेल्ट में किसान एक धीमा लेकिन चिंताजनक बदलाव महसूस करने लगे हैं। पैदावार घट रही है, औसत आलू का आकार छोटा हो गया है, और जो खेत कभी एक समान व उच्च गुणवत्ता वाले आलू के लिए जाने जाते थे, अब वहां आकार और गुणवत्ता में असमानता दिख रही है। प्रोसेसिंग यूनिट्स में भी अब रिजेक्शन बढ़ने लगे हैं — खराब स्किन फिनिश, असमान फ्राई रंग और आंतरिक दोषों के कारण। इन दिखने वाले संकेतों के पीछे असली समस्या छुपी है — “मिट्टी में।”
क्षेत्र के मिट्टी वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों के अनुसार इस गिरावट के पीछे कई कारण हैं — लगातार केवल आलू की खेती (मोनोकल्चर), अत्यधिक सिंचाई, और रासायनिक खाद पर भारी निर्भरता।
समय के साथ, इन तरीकों ने मिट्टी के प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया है, जिससे खारापन बढ़ गया है और पौधों की वृद्धि के लिए ज़रूरी जैविक कार्बन और सूक्ष्म जीवों की सक्रियता में भारी कमी आई है।
इस साल की शुरुआत में, कंपनी ने उत्तर गुजरात के 17 सूक्ष्म क्षेत्रों (माइक्रो-पॉकेट्स) से 500 से अधिक मिट्टी के नमूने एकत्र कर उनका विश्लेषण किया।
अध्ययन में पाया गया कि कई क्षेत्रों में मिट्टी का pH स्तर 8.0 से ऊपर चला गया है — जो कि आलू की अच्छी फसल के लिए आवश्यक 6.5 से 7.5 के आदर्श स्तर से काफी अधिक है।
इसके अलावा, बढ़ती क्षारीयता (alkalinity) मिट्टी में फॉस्फोरस, जिंक और आयरन जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित करती है।
किसान अक्सर इसे संतुलित करने के लिए ज्यादा खाद डालते हैं, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा पौधों द्वारा उपयोग नहीं हो पाता।
इन निष्कर्षों के आधार पर, हायफार्म की तकनीकी टीम किसानों के साथ मिलकर बड़े बदलावों की बजाय छोटे और व्यावहारिक सुधार लागू कर रही है। किसानों को ph स्तर कम करने और जड़ों के आस-पास का क्षेत्र स्वस्थ बनाने के लिए मापी गई मात्रा में फॉस्फोरिक एसिड या गंधक (सल्फर) के उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
राकेशभाई पटेल, विजापुर के एक किसान, ने बताया कि मिट्टी की जांच के बाद उन्हें अपने खेत में पोटाश की मात्रा अधिक, लेकिन जिंक की मात्रा कम पाई गई। “हमने खाद योजना में बदलाव किया और सिर्फ दो हफ्तों में साफ़ सुधार देखने को मिला,” उन्होंने कहा।
विश्लेषण से यह भी सामने आया कि कई स्थानों पर मिट्टी में जैविक कार्बन — जिसे अक्सर मिट्टी की 'जीवन ऊर्जा' कहा जाता है — 0.3 प्रतिशत से भी नीचे गिर गया है। इसके बिना मिट्टी की पानी और पोषक तत्वों को संजोने की क्षमता घट जाती है।
इस प्राकृतिक संतुलन को दोबारा बनाने के लिए विशेषज्ञ गोबर की खाद, कम्पोस्ट और हरी खाद वाली फसल चक्र प्रणाली (crop rotation) अपनाने की सलाह दे रहे हैं।
इस तरह के उपाय मिट्टी को समृद्ध बनाने के साथ-साथ लंबे समय में उर्वरक की लागत भी घटाते हैं। एक और अहम पहल पोटाश के प्रकार को लेकर की जा रही है।
एमओपी (म्यूरिएट ऑफ पोटाश), जिसमें क्लोराइड होता है, को धीरे-धीरे एसओपी (सल्फेट ऑफ पोटाश) से बदला जा रहा है।
एसओपी मिट्टी में नमक के जमाव को कम करता है और आलू के आकार, रंग और फ्राय क्वालिटी को बेहतर बनाता है — जो प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।
फील्ड ट्रायल्स से यह भी साबित हुआ है कि कैल्शियम नाइट्रेट को अगर फसल के बढ़ने के दौरान तीन छोटी खुराकों में दिया जाए, तो इससे आलू की त्वचा मजबूत होती है और फसल कटाई के बाद नुकसान में कमी आती है।
एस. सौंदरराजन, सीईओ, हायफार्म, कहते हैं, “हायफार्म की पहल एक सरल सिद्धांत पर आधारित है — बीज बोने से पहले मिट्टी को जानो। जैसे इंसानों की नियमित जांच से स्वास्थ्य ठीक रहता है, वैसे ही मिट्टी की जांच खेतों को स्वस्थ रखती है। जब किसान समझ जाते हैं कि उनकी मिट्टी को वास्तव में क्या चाहिए, तो वे सही और संतुलित इनपुट्स का इस्तेमाल कर बेहतर नतीजे पा सकते हैं।”
"सॉइल स्टूर्डशिप ड्राइव" अभी अपनी शुरुआती अवस्था में है, लेकिन इसकी दिशा स्पष्ट है —
आधुनिक, वैज्ञानिक और डेटा-आधारित ‘मिट्टी पहले’ दृष्टिकोण की ओर।
इसका उद्देश्य है कि मिट्टी की जांच को बुवाई जितना ही नियमित और जरूरी हिस्सा बना दिया जाए लैब एनालिसिस, फील्ड डेमो और डिजिटल टूल्स के साथ मिलाकर, ताकि नतीजों पर निगरानी और सुधार लगातार होते रहें।
ग्लोबल आलू विशेषज्ञ एंगेल लुवेस, जिन्होंने गुजरात में लंबे समय तक काम किया है, मानते हैं कि इस तरह के प्रयास गुजरात को प्रोसेसिंग-ग्रेड आलू क्षेत्र में भारत की अग्रणी स्थिति बनाए रखने में मदद कर सकते हैं।
वह कहते हैं, “गुजरात में जो कुछ हो रहा है, वह रिएक्टिव खेती से जानकार खेती की ओर एक बदलाव है। यह सुधार एक दिन में नहीं होगा, लेकिन किसानों की प्रतिबद्धता और हायफार्म की सॉइल स्टूवर्डशिप ड्राइव उम्मीद जगाती है।”
हायफार्म की ‘सॉइल स्टूवर्डशिप ड्राइव’ एक साधारण लेकिन ताक़तवर संदेश देती है — जब किसान अपनी मिट्टी का ध्यान रखते हैं, तो मिट्टी उनकी फसल का ध्यान रखती है। और गुजरात चुपचाप, लेकिन मज़बूती से के आलू क्षेत्र में यह जुड़ाव एक बार फिर जड़ें जमा रहा है ।