रूरल वॉयस कॉन्क्लेवः कृषि मार्केटिंग में टेक्नोलॉजी के महत्व पर चर्चा, कोऑपरेटिव की भूमिका पर भी जोर

इस कॉन्क्लेव में पैनल चर्चा का एक विषय था नए जमाने की एग्रीकल्चर मार्केटिंग - फ्यूचर एवं ऑप्शन तथा इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग। इस थीम पर एनएफसीएसएफ लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर प्रकाश नायकनवरे ने कहा, दुनिया में रोजाना नई टेक्नोलॉजी का विकास हो रहा है, कृषि क्षेत्र इसकी अनदेखी कैसे कर सकता है

रूरल वॉयस कॉन्क्लेवः कृषि मार्केटिंग में टेक्नोलॉजी के महत्व पर चर्चा, कोऑपरेटिव की भूमिका पर भी जोर
रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव एंड नेकॉफ अवार्ड्स, 2022 के तीसरे सत्र के पैनलिस्ट

नई दिल्ली में आयोजित एक एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव में नए जमाने की एग्री मार्केटिंग पर गहन चर्चा हुई। इस चर्चा में विशेषज्ञों ने टेक्नोलॉजी के महत्व पर विशेष जोर दिया और कहा कि खेती को मुनाफे का काम बनाने के लिए इसमें रिसर्च की भूमिका महत्वपूर्ण है। कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समर्पित डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म रूरल वॉयस की दूसरी वर्षगांठ पर 23 दिसंबर, 2002  शुक्रवार को इस कॉन्क्लेव का आयोजन किया गया था। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के एक्सपर्टस और इंडस्ट्री के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने भाग लिया।

इस कॉन्क्लेव में पैनल चर्चा का एक विषय था नए जमाने की एग्रीकल्चर मार्केटिंग - फ्यूचर एवं ऑप्शन तथा इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग।  इस थीम पर एनएफसीएसएफ लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर प्रकाश नायकनवरे ने कहा, दुनिया में रोजाना नई टेक्नोलॉजी का विकास हो रहा है, कृषि क्षेत्र इसकी अनदेखी कैसे कर सकता है।

कोऑपरेटिव चीनी उद्योग के विशेषज्ञ के तौर पर उन्होंने कहा कि अब वे दिन गए जब लोग किराना दुकान से खुली चीनी खरीदते थे। अब चीनी आकर्षक पैकेट में रिफाइंड और सल्फरविहीन तथा क्यूब के रूप में उपलब्ध है। नायकनवरे ने कहा कि भारतीय चीनी अब दूसरे देशों में भी उपलब्ध है। उन्होंने विभिन्न सक्सेस स्टोरी में कोऑपरेटिव की भूमिका पर भी लोगों का ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि जमीनी स्तर पर जानकारी और जागरूकता फैलाने में कोऑपरेटिव महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

इसी विषय पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए इफको के चीफ मैनेजर (मार्केटिंग) रजनीश पांडे ने कहा कि निकट भविष्य में इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग रोज के कामकाज का हिस्सा बन जाएगा।  उन्होंने बताया कि इफको के साथ 36,000 किसान कोऑपरेटिव जुड़े हैं। हमारा प्रयास कृषि को मुनाफे का धंधा बनाने का है ताकि किसानों के बच्चे आजीविका के लिए खेती छोड़कर दूसरे व्यवसाय की ओर ना जाएं। देश की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान भले ही 14 से 15 फ़ीसदी हो देश की 55 फ़ीसदी आबादी आजीविका के लिए इस पर निर्भर है। लेकिन नई पीढ़ी के युवा प्रोफेशन के तौर पर खेती को अपनाने से बच रहे हैं।

पांडे ने कहा कि यूरिया का बेतहाशा इस्तेमाल मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर रहा है और इस प्रक्रिया में पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है। मिट्टी पर यूरिया के प्रभाव को कम करने के लिए वाराणसी स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट के जरिये हमने शोध कराया जिसमें बताया गया कि अगर हम यूरिया की खपत को आधा कर दें तो पर्यावरण को नुकसान करने वाले गैसों के एमिशन को कम किया जा सकता है। हमने वाटर सॉल्यूबल उर्वरक तैयार किये। समुद्री शैवाल के तत्वों का उपयोग कर सागरिका उर्वरक बनाया जो किसानों के लिए फायदेमंद साबित हुआ।

उन्होंने कहा कि दुनिया में सबसे नवीनतम टेक्नोलॉजी नैनो टेक्नोलॉजी है, इसका अंतरिक्ष से लेकर हमारे रोजमर्रा के जीवन में उपयोग हो रहा है। इफको ने पांच साल पर इस पर शोध किया और इस तकनीक का उपयोग कर नैनो यूरिया बनाया जो एक लंबे परीक्षण के बाद तैयार उत्पाद है। इसका परीक्षण 11 हजार किसानों के खेतों में अलग-अलग 94 फसलों में किया गया। इसके बाद 20 एसएयू में 43 फसलों पर इसका परीक्षण किया गया। नौ फीसदी उत्पादन बढ़ा। मिट्टी की सेहत बेहतर हुई। नैनो यूरिया की उपयोग क्षमता 80 फीसदी से अधिक है। हम नैनो उर्वरक के सात उत्पादन संंयंत्र लगा रहे हैं। इनमें 34 करोड़ बोतले बनेंगी। नैनो यूरिया आयात पर देश की निर्भरता कम करेगा जिससे बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत होगी।

आर्य.एजी के सह संस्थापक और सीईओ प्रसन्ना राव ने कहा कि उनका स्टार्टअप फसलों की कटाई-तुड़ाई के बाद की प्रक्रिया में संलग्न है। स्टार्टअप यह सुनिश्चित करता है कि किसानों को उनकी उपज का अधिकतम लाभ मिले। उन्होंने कहा, हमारी कोशिश रहती है कि किसानों का नुकसान कम से कम हो। हम एफपीओ के साथ मिलकर काम करते हैं, उन्हें यह बताते हैं कि उत्पाद को कब और कहां बेचना है जिससे उन्हें सर्वश्रेष्ठ कीमत मिले। लेकिन हम उन पर जबरदस्ती नहीं करते, बेचने या ना बेचने का फैसला उनका अपना होता है।

एमसीएक्स  इंडिया लिमिटेड के एवीपी, पीएमटी-एग्री बदरुद्दीन खान  ने कॉटन हेजिंग पर एक विस्तृत प्रजेंटेशन के जरिये कॉन्क्लेव में आये प्रतिभागियों को बताया कि किस तरह किसान यह निर्णय ले सकते हैं कि उनकी फसल बेचने का सबसे अच्छा समय कौन सा है और फसल की सबसे अच्छी कीमत कैसे उन्हें मिले। उन्होंने कहा, फ्यूचर प्रेजेंट ट्रेडिंग इसका जवाब है। इसमें विक्रेता एक निश्चित दर पर एडवांस कॉन्ट्रैक्ट करता है। अर्थात भविष्य की किसी तारीख के लिए आज ट्रेडिंग होती है। उन्होंने किसी भी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए बीमा के तौर पर हेजिंग की बात भी कही।

सभी वक्ताओं ने कॉन्क्लेव आयोजित करने और कृषि तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर विचार रखने का मौका देने के लिए रूरल वॉयस के एडिटर इन चीफ हरवीर सिंह की सराहना की। उन्होंने कहा कि एक डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म के रूप में रूरल वॉयस कृषिशास्त्रियों और सरकार के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी बन चुका है।

इस सत्र के मॉडरेटर और ज्वाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के प्रोफेसर डॉ. बिस्वजीत धर ने कहा कि कृषि क्षेत्र की दिक्कतों का हल निकालने के लिए तमाम कोशिशें हो रही हैं लेकिन यह अंधेरे में तीर चलाने जैसा काम हो रहा है। पिछले 75 साल में देश में तमाम तरह की नीतियां बनती रही हैं लेकिन कृषि क्षेत्र जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र के लिए अभी भी कोई नीति नहीं है। 

डॉ. धर ने कहा कि अमेरिका में केवल एक फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है लेकिन उसके बावजूद अमेरिका हर पांच साल में कृषि नीति में बदलाव करता है। यह नीति कम से कम 500 पेज का एक विस्तृत दस्तावेज होता है। इसी तरह यूरोपीय यूनियन भी अपने 27 सदस्य देशों के लिए एक कॉमन एग्रीकल्चर पॉलिसी बनाता है। जब नीतिश कुमार केंद्र में कृषि मंत्री बने उस समय एक ड्राफ्ट कृषि नीति बनाई गई थी। लेकिन यह ड्राफ्ट कभी एक नीति का रूप नहीं ले सका। जब तक एक कृषि नीति नहीं बनती है तब कृषि क्षेत्र एक कमरे में अंधे लोगों के बीच एक हाथी की तरह ही बनी रहेगी। 

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