कृषि निर्यात में कई बाधाओं के बावजूद व्यापक संभावनाएं
भारत के कृषि निर्यात में हाल के वर्षों में उतार-चढ़ाव रहा है। यह वैश्विक बाजार के डायनामिक्स और घरेलू नीतिगत निर्णय, दोनों को प्रतिबिंबित करता है। वर्ष 2023-24 में 2022-23 की तुलना में 8.2% की गिरावट घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मुख्य रूप से चावल, गेहूं और चीनी जैसी प्रमुख वस्तुओं पर लगाए गए निर्यात प्रतिबंधों के कारण हुई।

भारत वैश्विक कृषि महाशक्ति बन चुका है और विश्व कृषि उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। लेकिन इसका वैश्विक कृषि निर्यात में हिस्सा मात्र 2.4% है। वर्ष 2023-24 में भारत का कृषि निर्यात 48.9 अरब डॉलर रहा, जो 2022-23 के 53.2 अरब डॉलर से कम है। भारत के सामने अवसर और चुनौतियां दोनों हैं। इस लेख में भारत के कृषि निर्यात की वर्तमान स्थिति का मूल्यांकन किया गया है, और प्रमुख परफॉर्मेंस इंडिकेटर के विश्लेषण के साथ सतत विकास के लिए रणनीतिक संभावनाओं पर विचार किया गया है।
भारत के कृषि निर्यात में हाल के वर्षों में उतार-चढ़ाव रहा है। यह वैश्विक बाजार के डायनामिक्स और घरेलू नीतिगत निर्णय, दोनों को प्रतिबिंबित करता है। वर्ष 2023-24 में 2022-23 की तुलना में 8.2% की गिरावट घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मुख्य रूप से चावल, गेहूं और चीनी जैसी प्रमुख वस्तुओं पर लगाए गए निर्यात प्रतिबंधों के कारण हुई।
साल-दर-साल प्रदर्शन का विश्लेषणः
• 2023-24: 48.9 अरब डॉलर (पिछले साल से 8.2% गिरावट)
• 2022-23: 53.2 अरब डॉलर
• 2021-22: 50.24 अरब डॉलर (21.8% वृद्धि)
• 2020-21: 41.25 अरब डॉलर
वित्त वर्ष 2024-25 (अप्रैल-दिसंबर) में कुल कृषि निर्यात 3,18,509 करोड़ रुपये (36.95 अरब डॉलर) का रहा। विशेष वस्तुओं का मजबूत प्रदर्शन बाजार में सुधार के संकेत देता है।
क्षेत्रवार विवरण: भारत मुख्य रूप से इन उत्पादों का निर्यात करता है: कृषि एवं संबंधित उत्पाद, समुद्री उत्पाद (शीर्ष श्रेणी), बागान उत्पाद (चाय, कॉफी, मसाले), वस्त्र एवं संबंधित उत्पाद।
वृद्धि के रुझान: कृषि निर्यात में पिछले पांच वर्षों में औसतन सकारात्मक वृद्धि हुई है। हाल की गिरावट मुख्य रूप से घरेलू खाद्य सुरक्षा के लिए नीतिगत हस्तक्षेपों के कारण हुई है। लेकिन चावल जैसे प्रमुख कृषि उत्पादों पर निर्यात प्रतिबंध हटाने से चालू वित्त वर्ष में सकारात्मक परिणाम दिखने लगे हैं।
वैश्विक बाजार में स्थिति: वैश्विक कृषि व्यापार में भारत का 2.5% हिस्सा है और यह दुनिया का आठवां सबसे बड़ा कृषि निर्यातक बना हुआ है। भारत वैश्विक कृषि उत्पादन में दूसरे स्थान पर है, फिर भी वैश्विक कृषि निर्यात में हिस्सा कम है (स्रोत: डब्लूटीओ का ट्रेड स्टैटिस्टिकल रिव्यू, 2022)। उत्पादन क्षमता और निर्यात प्रदर्शन के बीच यह अंतर इस क्षेत्र में छिपी संभावनाओं को दर्शाता है।
प्रमुख परफॉर्मेंस इंडिकेटरः चावल कुल कृषि निर्यात में 20% से अधिक योगदान देता है। शीर्ष 5 जिंस (बासमती चावल, गैर-बासमती चावल, चीनी, मसाले, तिलहन) कुल कृषि निर्यात में 51.5% योगदान करते हैं। कृषि और संबंधित क्षेत्र के कुल निर्यात में समुद्री उत्पाद का हिस्सा सबसे अधिक रहता है। कॉफी निर्यात में 12.3% की मजबूत वृद्धि देखी गई। चाय निर्यात में 10 वर्षों में अधिकतम 10% वृद्धि हुई। फल और सब्जियों का निर्यात 14% बढ़ा। मांस, डेयरी और पोल्ट्री का निर्यात 12.4% बढ़ा।
निर्यात प्रतिबंधों का प्रभावः 2023-24 में चावल, गेहूं और चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध लगे। इन प्रतिबंधों के कारण कृषि निर्यात में 8.2% की गिरावट आई। घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लागू नीतिगत उपायों ने निर्यात प्रदर्शन को प्रभावित किया।
प्रमुख निर्यात कमोडिटी
समुद्री उत्पाद: श्रेष्ठ प्रदर्शन
मरीन प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट्स डेवलपमेंट अथॉरिटी के अनुसार 2023-24 में भारत से समुद्री उत्पादों का निर्यात रिकॉर्ड 17,81,602 टन तक पहुंच गया। इसका मूल्य 60,524 करोड़ रुपये (7.38 अरब डॉलर) से अधिक था। हालांकि रेड सी में भू-राजनैतिक चुनौतियों और अमेरिका, यूरोपीय संघ और इंग्लैंड जैसे बड़े बाजारों में महंगाई से उपभोक्ता मांग में कमी के चलते निर्यात मूल्य में 5.39% गिरावट आई (2022-23 के 63,969 करोड़ रुपये के मुकाबले 2023-24 में 60,524 करोड़ रुपये), लेकिन निर्यात मात्रा में 2.67% की बढ़ोतरी हुई। यह भारत सरकार की विभिन्न पहलों, जैसे प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना और मत्स्य विभाग की ब्रांडिंग, इनोवेशन और इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास का परिणाम है।
भारत ने 2023-24 में 132 देशों को समुद्री उत्पाद निर्यात किए, जिनमें 6 नए बाजार भी शामिल हैं- सूरीनाम, चाड, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, मायोत्ते, सिएरा लियोन और ग्वाडेलूप। वर्ष 2024-25 में समुद्री उत्पाद निर्यात में वृद्धि जारी रही। फरवरी 2024 में 0.49 अरब डॉलर की तुलना में फरवरी 2025 में इनका निर्यात 0.51 अरब डॉलर हो गया। कुल निर्यात 7.2 अरब डॉलर का रहा, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार में जारी भू-राजनैतिक चुनौतियों के बावजूद मजबूत प्रदर्शन को दर्शाता है।
चावल: कृषि निर्यात का दिग्गज
चावल भारत का सबसे बड़ा कृषि निर्यात उत्पाद है और कुल कृषि निर्यात में इसका 20% से अधिक हिस्सा है। 2022-23 में भारत से 11.14 अरब डॉलर का चावल निर्यात हुआ जो 2021-22 में 9.67 अरब डॉलर से 15.22% अधिक था। 2023-24 में भारत ने दुनिया में सबसे अधिक, 165 लाख टन चावल निर्यात किया। सरकार द्वारा 16 मई 2025 को जारी नए आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 में भारत ने चावल निर्यात में रिकॉर्ड 12.5 अरब डॉलर की उपलब्धि हासिल की, जो 2023-24 के 10.4 अरब डॉलर से काफी ज्यादा है।
अन्य प्रमुख वस्तुएं
मसाले: मसालों का निर्यात थोड़ा बढ़कर 2024-25 में 4.45 अरब डॉलर का रहा, जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह 4.25 अरब डॉलर था।
कॉफी: 2024-25 में कॉफी का निर्यात 1.81 अरब डॉलर रहा, जो 2023-24 में 1.29 अरब अमेरिकी डॉलर था। भारत से कॉफी का निर्यात 2023 में 12.3% बढ़कर 114.62 करोड़ किलो हो गया।
चाय: भारत के चाय निर्यात ने भी 10 वर्षों के उच्चतम स्तर को छू लिया। वैश्विक भू-राजनीतिक तनावों के बावजूद यह 2024 में 25.5 करोड़ किलोग्राम तक पहुंच गया। टी बोर्ड ऑफ इंडिया के अनुसार यह पिछले वर्ष के 23.16 करोड़ किलोग्राम से 10 प्रतिशत ज्यादा है। वैल्यू के लिहाज से देखें तो निर्यात 2023-24 के 0.83 अरब डॉलर से बढ़कर 2024-25 में 0.92 अरब डॉलर हो गया।
भेड़ और बकरी का मांस: भारत विश्व में भेड़ और बकरी के मांस के सबसे बड़े निर्यातकों में है। 2022-23 में इसका 6.9 करोड़ डॉलर से अधिक का निर्यात हुआ था। एक साल पहले की तुलना में इसमें अच्छी वृद्धि हुई। वर्ष 2022-23 के दौरान भारत ने वैश्विक बाजारों में 9,592.31 टन भेड़-बकरी का मांस निर्यात किया, जिसकी भारतीय मुद्रा में कीमत 537.18 करोड़ रुपये थी। प्रमुख निर्यात गंतव्य संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत, मालदीव और ओमान थे। 2022 और 2023 के बीच सबसे तेजी से बढ़ते निर्यात बाजार संयुक्त अरब अमीरात (82.9 लाख डॉलर), बहरीन (6.63 लाख डॉलर) और कुवैत (4.53 लाख डॉलर) थे।
कृषि निर्यात की चुनौतियां
नीति संबंधी चुनौतियां
बार-बार निर्यात प्रतिबंध: चावल और चीनी के निर्यात पर बार-बार प्रतिबंध ने वैश्विक बाजारों में भारत की विश्वसनीयता प्रभावित की, जिससे खरीदारों का विश्वास घटा है। प्रतिबंध लगाना न केवल ग्लोबल साउथ के कम समृद्ध देशों की खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करता है, बल्कि एक भरोसेमंद खाद्य आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की छवि को भी कमजोर करता है।
सीमित निर्यात उत्पादः भारत के कृषि निर्यात का आधार मुख्य रूप से पांच वस्तुओं पर निर्भर है, जिससे यह क्षेत्र वैश्विक कीमतों और मांग में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
प्रसंस्कृत उत्पादों का कम हिस्सा: प्रसंस्कृत कृषि निर्यात का हिस्सा अपेक्षाकृत कम है। यह कुल कृषि निर्यात का लगभग 17% है। यह अमेरिका (लगभग 25%) और चीन (लगभग 50%) की तुलना में काफी कम है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर और गुणवत्ता की समस्याएं
इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी: कोल्डचेन इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी और अपर्याप्त लॉजिस्टिक्स बड़ी बाधाएं हैं। फार्मगेट पैकहाउस (कोल्ड रूम वाले प्री-कूलिंग यूनिट्स) या अन्य कोल्डचेन घटकों की जरूरत के प्रति जागरूकता बहुत कम है। एपीडा के अनुसार देश के लगभग 40% खाद्य पदार्थ खराब हो जाते हैं, जिससे किसानों की आय पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
गुणवत्ता और मानक: कीटों-बीमारियों के प्रभाव और जागरूकता की कमी के कारण भारतीय कृषि निर्यात के लिए निरंतर गुणवत्ता सुनिश्चित करना और अंतरराष्ट्रीय सैनिटरी तथा फाइटो-सैनिटरी मानकों का पालन करना एक बड़ी चुनौती है।
संरचनात्मक चुनौतियां
छोटी जोतः छोटी और सीमांत जोत के साथ कर्ज मिलने में कठिनाई कमर्शियल उत्पादन की ओर जाने में लगातार चुनौतियां उत्पन्न करती है। भारत में दो हेक्टेयर से कम जमीन वाले छोटे और सीमांत किसान 86.2% हैं। छोटी जोत और कम मैकेनाइजेशन इकोनॉमी ऑफ स्केल हासिल करने में बाधक हैं।
सरकार की पहल और नीतिगत रूपरेखा
कृषि निर्यात नीति 2018ः सरकार ने दिसंबर 2018 में व्यापक कृषि निर्यात नीति पेश की। इसका उद्देश्य उचित नीतिगत उपायों से निर्यात संभावनाओं का दोहन करना, भारत को कृषि क्षेत्र में वैश्विक शक्ति बनाना और किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य में मदद करना था। प्रमुख उद्देश्यों में एक दशक में कृषि निर्यात को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाना और वैश्विक मूल्य श्रृंखला के साथ एकीकरण को प्राथमिकता देकर विश्व कृषि निर्यात में भारत का हिस्सा दोगुना करना शामिल हैं।
राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड: एक परिवर्तनकारी पहल
भारत के कृषि निर्यात में हाल की सबसे महत्वपूर्ण पहल राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड के गठन के रूप में हुई है। एनसीईएल को 25 जनवरी 2023 को बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत किया गया।
संरचना और प्रमोटरः एनसीईएल एक बहुराज्यीय सहकारी समिति है, जिसे देश की कुछ प्रमुख सहकारी समितियों ने संयुक्त रूप से प्रमोट किया है। इनमें अमूल, इफको, कृभको, नाफेड और राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) शामिल हैं। एनसीईएल की अधिकृत शेयर पूंजी 2,000 करोड़ रुपये है। प्राथमिक से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की सभी सहकारी समितियां इसका सदस्य बनने के लिए पात्र हैं।
कैसे एनसीईएल कृषि निर्यात को बढ़ावा दे रहा हैः
1. शीर्ष संगठन: एनसीईएल सहकारी क्षेत्र से निर्यात के लिए एक अंब्रेला संगठन के रूप में कार्य करता है तथा हर स्तर और क्षेत्र में निर्यात को बढ़ावा देता है। इससे सहकारी समितियों की विदेशी बाजारों में निर्यात क्षमता बढ़ती है।
2. समग्र निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र: एनसीईएल कृषि वस्तुओं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करता है। इसमें खरीद, भंडारण, प्रसंस्करण, मार्केटिंग, ब्रांडिंग, लेबलिंग, पैकेजिंग, सर्टिफकेशन, अनुसंधान एवं विकास और व्यापार शामिल हैं।
3. मूल्य संवर्धन और गुणवत्ता सुधार: एनसीईएल सहकारी समितियों को वैल्यू एडिशन और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार उत्पाद की गुणवत्ता सुधारने में सहायता करता है ताकि सहकारी निर्यात अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बन सके।
4. निर्यात समर्थन सेवाएं: इसकी सेवाएं हैं- निर्यात सर्टिफिकेशन और लॉजिस्टिक्स में सहायता, वित्तीय सहायता और तकनीकी मार्गदर्शन देना, प्रशिक्षण और क्षमता विकास, अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय बाजार के लिए रिसर्च करना, बाजार इंटेलिजेंस सिस्टम बनाना, निर्यात से संबंधित परामर्श सेवाएं, सहकारी निर्यात के लिए नॉलेज रिपॉजिटरी बनाना और उसका रखरखाव, ब्रांडिंग, लेबलिंग और पैकेजिंग में समर्थन।
5. किसान-केंद्रित दृष्टिकोण
6. बाजार पहुंच और मूल्य प्राप्ति: एनसीईएल किसानों को विदेशी बाजारों में उनके उत्पादों के लिए अधिक मूल्य प्राप्त करने में सहायता करता है।
रणनीतिक महत्व
एनसीईएल कृषि निर्यात में कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करता है:
• निर्यात बाजार की समस्याओं का समाधान: सघन प्रतिस्पर्धा, एकाधिकार, कुप्रथाएं, इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी और मानकीकरण जैसी समस्याओं से निपटना।
• सहकारिता की ताकत का उपयोग: कृषि पर निर्भर भारत की 60% आबादी के लिए व्यापक सहकारी नेटवर्क का लाभ उठाना।
• समग्र सरकारी दृष्टिकोण: निर्यात से जुड़ी विभिन्न मंत्रालयों की योजनाओं और नीतियों के लाभ सहकारी समितियों तक प्रभावी तरीके से पहुंचाना।
• समावेशी विकास मॉडल: सरकार के "सहकार से समृद्धि" के उद्देश्य को पूरा करने की दिशा में काम करना।
भविष्य की संभावनाएं और सुझाव
निर्यात वृद्धि के लिए एनसीईएल का उपयोगः एनसीईएल भारत के कृषि निर्यात के दृष्टिकोण में एक क्रांतिकारी बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। सहकारी समितियों की सामूहिक शक्ति का उपयोग करके एनसीईएल 100 अरब डॉलर के कृषि निर्यात लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
सहकारी भागीदारी का विस्तार: 10,000 से अधिक सहकारी समितियों को सदस्य के रूप में जोड़ने और इसके व्यापक विस्तार की संभावना के साथ, एनसीईएल देश भर के लाखों छोटे किसानों के उत्पादन को एग्रीगेट कर सकता है।
गुणवत्ता और मानकीकरण: तकनीकी मार्गदर्शन और गुणवत्ता सुधार में सहायता प्रदान करके, एनसीईएल सुनिश्चित कर सकता है कि सहकारी उत्पाद अंतरराष्ट्रीय मानकों को निरंतर पूरा करें।
ब्रांड निर्माण: सामूहिक ब्रांडिंग और मार्केटिंग प्रयासों के माध्यम से एनसीईएल भारतीय कृषि उत्पादों के लिए वैश्विक बाजारों में मजबूत ब्रांड की पहचान बना सकता है।
जोखिम कम करनाः इसका अंब्रेला स्ट्रक्चर छोटी सहकारी समितियों को कम जोखिम के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचने में मदद करता है।
प्रौद्योगिकी और नवाचार
कृषि निर्यात को बड़ा बूस्ट नई तकनीक और बिजनेस मॉडल में नए विचारों और इनोवेशन से आएगा। इस संदर्भ में स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन और उनकी समृद्धि के लिए नीतियां अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकती हैं। प्रौद्योगिकी और इनोवेशन भारतीय कृषि को पूरी तरह बदल रहे हैं, और दक्षता व सस्टेनेबिलिटी के नए युग की शुरुआत कर रहे हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म और एग्रीटेक समाधान किसानों को वास्तविक समय के डेटा, प्रिसीजन खेती की तकनीक और स्वचालित सिंचाई प्रणालियों से सशक्त बनाते हैं। एआई-संचालित उपकरण फसल प्रबंधन, रोगों का शीघ्र पता लगाने और उर्वरक प्रयोग के ऑप्टिमाइजेन में मदद करते हैं, जिससे अपव्यय कम होता है और उपज बढ़ती है।
मोबाइल एप्लिकेशन, सेंसर नेटवर्क और ड्रोन निगरानी जैसे इनोवेशन सूचना की खामियों को दूर कर किसानों को बाजारों और वित्तीय सेवाओं से जोड़ते हैं। यह तकनीकी क्रांति उत्पादकता बढ़ाने के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाती है। एनसीईएल उन्नत कृषि तकनीक, प्रिसीजन खेती और सक्षम सिंचाई को बढ़ावा देने के साथ कृषि स्टार्टअप और इनोवेटिव समाधानों को सशक्त बनाने का प्रयास कर रहा है ताकि उत्पादकता और निर्यात दक्षता को बढ़ाया जा सके।
मूल्य संवर्धन और प्रसंस्करण
कृषि उपज का मूल्य संवर्धन और प्रसंस्करण भारत की निर्यात संभावनाओं को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्नत प्रसंस्करण तकनीक उत्पाद की शेल्फ लाइफ और पोषकता बढ़ाती हैं। इससे वैश्विक उपभोक्ताओं को आकर्षित किया जा सकता है। जल्दी नष्ट होने वाली वस्तुओं को प्रसंस्कृत उत्पादों में परिवर्तित करने से कटाई के बाद होने वाले नुकसान कम होते हैं और खाद्य सुरक्षा मजबूत होती है। इसके अतिरिक्त मूल्य संवर्धन से उत्पाद की ब्रांडिंग होती है और प्रीमियम बाजारों तक पहुंच संभव होती है। आधुनिक प्रोसेसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश और नई तकनीक अपनाकर भारत कृषि निर्यात काफी बढ़ा सकता है, जिससे किसानों को अधिक लाभ मिलेगा और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी।
बाजार विविधीकरण
निर्यात बढ़ाने के लिए सरकार ने विकसित देशों में उच्च निर्यात संभावना वाले 20 कृषि उत्पादों की पहचान की है। इनमें केले, आम, काजू, भैंस का मांस और शराब भी शामिल हैं। 2022 में ऐसे उत्पादों के 400 अरब डॉलर के वैश्विक बाजार में भारत का हिस्सा केवल 2.23 प्रतिशत था, जो 9 अरब डॉलर के बराबर है। लक्ष्य अगले कुछ वर्षों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में 4 से 5 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करना है।
नीतिगत सुझाव
सुसंगत व्यापार नीतियां: अर्थशास्त्रियों का सुझाव है कि अस्थायी शुल्क जैसे नियम-आधारित और पूर्वानुमान योग्य नीतियां अपनाई जाएं ताकि निर्यात में अचानक बाधा न आए।
इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास: सरकार को आवश्यक कमोडिटी का बफर स्टॉक रखना चाहिए ताकि मूल्यों में अस्थिरता को कम किया जा सके और बाजार में स्थिरता सुनिश्चित हो।
गुणवत्ता में वृद्धि: अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने और गुणवत्ता सुनिश्चित करने का तंत्र विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए ताकि वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़े।
एनसीईएल का संचालन: एनसीईएल की पहुंच को अधिक सहकारी समितियों तक बढ़ाना, इसकी तकनीकी क्षमताओं को विस्तार देना ताकि संचालन का स्तर ऊंचा हो सके।
भारत का कृषि निर्यात एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी, छोटी जोत और नीतियों में अस्थिरता जैसी चुनौतियां मौजूद हैं। लेकिन इस क्षेत्र की संभावनाएं विशाल हैं। प्रौद्योगिकी अपनाने, मूल्य संवर्धन, इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास और नीतिगत स्थिरता पर केंद्रित कदमों के साथ भारत कृषि निर्यात में 100 अरब डॉलर के लक्ष्य को साकार कर सकता है। इस प्रयास की सफलता से न केवल विदेशी मुद्रा और किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि भारत को वैश्विक कृषि बाजार में एक विश्वसनीय और प्रतिस्पर्धी खिलाड़ी के रूप में स्थापित करेगी। आगे का सफर सरकार, निजी क्षेत्र और कृषि समुदायों के समन्वित प्रयासों की मांग करता है।
(लेखक राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं)