संयुक्त राष्ट्र ने जैव विविधता प्रबंधन में स्थानीय समुदायों की भूमिका को दी मान्यता
जैव विविधता पर कन्वेंशन से संबंधित संयुक्त राष्ट्र की पहली बैठक में आदिवासी और स्थानीय समुदायों को औपचारिक भागीदारी दी गई। इस ऐतिहासिक पहल में पारंपरिक ज्ञान को वैश्विक नीति निर्माण में शामिल करने और जैव विविधता संरक्षण में समान अधिकार सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस दिशानिर्देश तैयार किए गए।
संयुक्त राष्ट्र ने जैव विविधता संरक्षण के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए आदिवासी और स्थानीय समुदायों को वैश्विक नीति-निर्माण में औपचारिक रूप से शामिल किया है। पनामा सिटी में 27 से 30 अक्टूबर तक आयोजित सम्मेलन में जैव विविधता पर कन्वेंशन (Convention on Biological Diversity - CBD) से संबंधित सब्सिडियरी बॉडी की पहली बैठक संपन्न हुई। यह पहली बार है जब किसी बहुपक्षीय पर्यावरण संधि के तहत आदिवासी समुदायों को एक सहायक निकाय में औपचारिक भागीदारी का अधिकार दिया गया है।
बैठक का उद्घाटन कोलंबिया की पर्यावरण मंत्री और जैव विविधता सम्मेलन की अध्यक्ष इरीन वेल्ज़ टोरेस ने किया। उन्होंने कहा कि इस निकाय की स्थापना “पर्यावरणीय लोकतंत्र की दिशा में एक अभूतपूर्व कदम” है, जो कुन्मिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा (Kunming-Montreal Global Biodiversity Framework) के कार्यान्वयन में आदिवासी समुदायों की पूर्ण और प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करेगा।
आधुनिक विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान का संगम
पनामा के पर्यावरण मंत्री जुआन कार्लोस नवारो ने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि “संरक्षण अधिकारों के बिना संभव नहीं है, और न्याय के बिना स्थिरता संभव नहीं।” उन्होंने कहा कि यह नया निकाय आधुनिक विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान के बीच सेतु का कार्य करेगा तथा आदिवासी समुदायों को संसाधन प्रबंधन के निर्णयों में समान भागीदार के रूप में मान्यता देगा।
सीबीडी की कार्यकारी सचिव एस्ट्रिड शूमाकर ने इस बैठक को “ऐतिहासिक क्षण” बताया और दान देने वाले देशों व आदिवासी प्रतिनिधियों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि “सफलता का मापदंड केवल सिफारिशें नहीं होंगी, बल्कि यह होगा कि धरातल पर समुदाय कितने सशक्त होते हैं और पारिस्थितिक तंत्र कितना बहाल होता है।”
बैठक में टोगो के जोनास कोमी अंते को रिपोर्टर चुना गया। सात क्षेत्रीय समूहों — अफ्रीका, आर्कटिक, एशिया, प्रशांत और अन्य — से आदिवासी प्रतिनिधियों को ब्यूरो के “मित्र” के रूप में नामित किया गया। नॉर्वे की सामी परिषद की गुन-ब्रिट रेटर को सह-अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उन्होंने सामी कवि निल्स-आस्लक वाल्कियापाया की पंक्तियों का उद्धरण देते हुए कहा, “भूमि तब अलग हो जातती है जब आप जानते हैं कि यहां आपकी जड़ें और पूर्वज हैं।”
कार्यसूची और नीतिगत मसौदे
प्रतिनिधियों ने कई प्रमुख विषयों पर चर्चा की। इनमें पारंपरिक भूमि उपयोग और संसाधन प्रबंधन को पर्यावरणीय प्रभाव आकलन तथा स्थानिक नियोजन प्रक्रियाओं में शामिल करने के दिशा-निर्देश तैयार करना प्रमुख था। साथ ही, निकाय के काम करने तरीके पर भी विस्तृत विमर्श हुआ, जो आगे के निर्णयों का आधार बनेगा।
बैठक में इस बात पर भी जोर दिया गया कि आदिवासी समुदायों, विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं के लिए जैव विविधता वित्त तक समान पहुंच सुनिश्चित की जाए। वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के विशेषज्ञों ने प्रत्यक्ष वित्तपोषण के ऐसे तंत्र की सिफारिश की जो स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाए।
प्रतिभागियों ने माना कि इस उप-संस्थागत निकाय की स्थापना केवल एक प्रक्रियात्मक कदम नहीं, बल्कि एक परिवर्तनकारी पहल है। इसने आदिवासी समुदायों को वैश्विक निर्णय-प्रक्रिया में समान स्थान देकर “पर्यावरणीय बहुपक्षवाद” का नया मॉडल प्रस्तुत किया है। बैठक की ड्राफ्ट रिपोर्ट, जिसमें वित्तीय तंत्र और भागीदारी शासन से संबंधित सिफारिशें शामिल हैं, अब 2026 में होने वाले सीओपी-17 (COP17) सम्मेलन में प्रस्तुत की जाएगी।

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