डेयरी निर्यात में अग्रणी बनने के लिए भारत को क्या करने की जरूरत

पिछले वर्ष हमारे यहां दूध उत्पादन में केवल 3.8% वृद्धि हुई, जो पिछले वर्षों की 6% की वृद्धि दर से कम है। लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि विश्व स्तर पर यह वृद्धि दर 1% के आसपास है। इसके साथ विकसित देशों की समस्याओं को देखिए। उदाहरण के लिए मिट्टी में नाइट्रोजन का स्तर, मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें आदि। आप सोचिए, आने वाले समय में विश्व में अतिरिक्त दूध कहां से आएगा?

डेयरी निर्यात में अग्रणी बनने के लिए भारत को क्या करने की जरूरत

भारत एक अग्रणी दूध उत्पादक देश है। यहां उत्पादन प्रति वर्ष 240 अरब लीटर (24 करोड़ टन) तक पहुंच गया है। विश्व के कुल दूध उत्पादन का 24% से अधिक हिस्सा भारत में होता है। 50 वर्ष पहले हम दूध की कमी वाले देश थे। उस स्थिति से हम आत्मनिर्भर बने और अब दुनिया को दूध निर्यात करने की ओर बढ़ रहे हैं। यह कितना अद्भुत परिवर्तन है!

हम कह सकते हैं कि पिछले वर्ष हमारे यहां दूध उत्पादन में केवल 3.8% वृद्धि हुई, जो पिछले वर्षों की 6% की वृद्धि दर से कम है। लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि विश्व स्तर पर यह वृद्धि दर 1% के आसपास है। इसके साथ विकसित देशों की समस्याओं को देखिए। उदाहरण के लिए मिट्टी में नाइट्रोजन का स्तर, मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें आदि।  आप सोचिए, आने वाले समय में विश्व में अतिरिक्त दूध कहां से आएगा? भारत के पास 30 करोड़ से अधिक विशाल पशुधन है। इसके साथ डेयरी को अर्थव्यवस्था का प्रमुख अंग बनाए रखने और सरकार की अनेक सुधार एवं विकास पहलों के साथ भारत संभवतः इस चुनौती का एक श्रेष्ठ विकल्प प्रस्तुत करता है। लगभग आठ करोड़ लोग दूध उत्पादन क्षेत्र से जुड़े हैं, जिनमें 75% से अधिक महिलाएं हैं।

अब देखते हैं कि दूध उत्पादन के क्षेत्र में हम कहां ठहरते हैं-

उपरोक्त प्रमुख दूध निर्यातक देशों की तालिका से आप समझ सकते हैं कि जो भारत आज 240 अरब लीटर या 24 करोड़ टन दूध उत्पादन करता है, वह अगले तीन से पांच वर्षों में इन पांच मुख्य निर्यातक देशों/महाद्वीपों के बराबर दूध उत्पादन कर रहा होगा। क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं!

अनुमान है कि हम 2030 तक विश्व दूध उत्पादन में 30% (30 करोड़ टन) और संभवतः 2047 तक 45% का योगदान करेंगे। वर्तमान में घरेलू प्रति व्यक्ति खपत 470 ग्राम/दिन है (विश्व औसत 322 ग्राम/दिन)। तो यह पूछा जा सकता है कि हम और कितना खा सकते हैं? यदि आप इसकी तुलना विकसित देशों के औसत, मान लीजिए 750 ग्राम/दिन से करें, तो हां, उत्पादन बढ़ने के साथ हम अधिक खा भी सकते हैं। लेकिन संभवतः अगले तीन से पांच वर्षों में हम सरप्लस की स्थिति में पहुंच जाएंगे।

अगले 25 वर्षों में भारत में दूध उत्पादन 62.8 करोड़ टन पहुंच जाएगा, जबकि दूध और डेयरी प्रोडक्ट की मांग 51.7 करोड़ टन की होगी। 2047 तक भारत के पास 11.1 करोड़ टन का निर्यात योग्य सरप्लस होगा। ऐसी अपेक्षित अधिशेष की स्थिति में भविष्य के परिदृश्य के देखते हुए अभी से उचित कदम उठाना क्या बुद्धिमानी नहीं होगी? वर्ष 2023 में वैश्विक डेयरी उत्पादों का व्यापार 107 बिलियन डॉलर का हो गया था। ऐसे में भारत से डेयरी निर्यात स्वाभाविक रूप से सर्वोत्तम विकल्प बन जाता है। 

वर्तमान परिदृश्य और बाधाएं

एक सामान्य वर्ष में भारतीय डेयरी उद्योग लगभग 6 लाख टन स्किम्ड मिल्क पाउडर का उत्पादन करता है। इसमें से लगभग 3.5 लाख टन का उपयोग उद्योग दूध की कम उपलब्धता वाले मौसम में करता है। इसके अतिरिक्त 1.5 लाख टन अन्य खाद्य पदार्थों में प्रयोग हो जाता है। बाकी एक लाख टन स्टॉक के रूप में बचता है। लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों में कच्चे दूध की आकर्षक कीमतों, पशु संख्या में वृद्धि, बेहतर चारे की उपलब्धता और लीन सीजन छोटा होने के कारण हमारा स्टॉक 3 लाख टन से अधिक हो गया। स्टॉक अधिक होने का ही नतीजा है कि एसएमपी की कीमतें कई महीने तक निचले स्तर पर बनी रहीं।

चूंकि घरेलू खपत में रातों-रात कोई बड़ा बदलाव नहीं होने वाला था, इसलिए समाधान के रूप में निर्यात की ओर रुख करना जरूरी था। लेकिन यह तभी संभव है जब हमारी कीमतें अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में टिक सकें। दुर्भाग्यवश चीन और अन्य देशों से कम मांग के कारण एसएमपी की वैश्विक कीमतें लंबे समय से दबाव में हैं। तो अब आगे क्या किया जाए?

समाधान साधारण मीडियम-हीट एसएमपी के बजाय उन एसएमपी वेरिएंट्स की खोज में है, जिनकी वाकई में बहुत आवश्यकता है। उदाहरण के तौर पर, चीज बनाने के लिए लो-हीट एसएमपी चाहिए और इवैपोरेटेड मिल्क बनाने के लिए हाई-हीट एसएमपी। क्या कोई फैक्टरी ये वेरिएंट्स लगातार बना सकती है? तब तक नहीं जब तक आपके पास उच्च गुणवत्ता वाला कच्चा दूध न हो। इन्हें तैयार करने के लिए आवश्यक उपकरण/प्रौद्योगिकी भी चाहिए। इसका मतलब है एक अलग सोच, तकनीकी निवेश और आरएंडडी में प्रगति।

जब हम वैश्विक परिदृश्य में वास्तव में टिकाऊ और दीर्घकालिक समाधान के लिए कदम रखना चाहते हैं, तो हमें कहीं अधिक भरोसेमंद तंत्र और रणनीतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी। मेरा मानना है कि इसके लिए तीन “सी (C)” सबसे महत्वपूर्ण हैं:

• गुणवत्ता में निरंतरता (Consistency in Quality)
• आपूर्ति में निरंतरता (Consistency in Supplies)
• मूल्य प्रतिस्पर्धा में निरंतरता (Consistency in Price competitiveness)

हमारे लिए अच्छी बात यह रही कि हमने पिछले वर्ष मक्खन/मिल्क फैट का काफी निर्यात किया (कैलेंडर वर्ष 2024 में 55,000 टन) और अंतरराष्ट्रीय स्तर की तुलना में प्रतिस्पर्धी कीमतों पर बेचा। इससे डेयरी प्रसंस्करण संयंत्रों पर स्टॉक का बोझ कम हुआ, कार्यशील पूंजी मुक्त हुई और साथ ही देश के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित हुई। मैं कल्पना भी नहीं कर सकता कि यदि यह अवसर उपलब्ध नहीं होता तो हमारे डेयरी उद्योग की स्थिति क्या होती।

निर्यात में हम वर्तमान में कहां खड़े हैं?

मेरा मानना है कि वर्तमान में भारत से एसएमपी और मक्खन का निर्यात “अवसर का फायदा उठाना” ही कहा जा सकता है। जबकि हम मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया और पड़ोसी देशों में डेयरी उत्पादों का निर्यात कर रहे थे और कर रहे हैं, अमूल ने वास्तव में हमारी डेयरी की सीमाओं को विश्व मानचित्र पर फैला दिया है। अमेरिका में उनकी उपस्थिति है और यूरोपियन यूनियन में भी प्रवेश की चर्चा चल रही है। कर्नाटक मिल्क फेडरेशंस लिमिटेड (केएमएफ) ने भी हाल ही यूएई के दुबई में नंदिनी डेयरी पार्लर लॉन्च किए हैं। क्या इन लीडर्स से सीखने और उद्योग को और अधिक बढ़ाने का समय नहीं आ गया है?

शायद हमें अन्य डेयरी उत्पादक देशों की ओर भी देखने की जरूरत है जो उदाहरण पेश कर रहे हैं। जैसे न्यूज़ीलैंड, अमेरिका या यूरोपियन यूनियन। हमें उन देशों पर भी नजर रखनी चाहिए जो पारंपरिक रूप से डेयरी उत्पादक नहीं माने जाते, लेकिन उत्पाद विशेषज्ञता हासिल करके वर्षों से निर्यात कर रहे हैं। जैसे मलेशिया का इवैपोरेटेड/कंडेंस्ड दूध। हालांकि हमें किसी की नकल नहीं करनी है, लेकिन हम हमेशा दूसरों के अनुभवों से सीख सकते हैं। अपना एक अनूठा मॉडल/यूएसपी तैयार करना ही समय की जरूरत है।

हमें अवसरों को बढ़ाने के लिए नए क्षितिज तलाशने की आवश्यकता है। रूस, चीन, अफ्रीका, मेक्सिको जैसे प्रमुख आयातक देशों को निर्यात करना स्वाभाविक दिशा होगी। इनमें कुछ बाजार तो व्यापार के लिए खुले हैं, लेकिन बाकी देशों के लिए औपचारिक स्वीकृति की आवश्यकता होगी। इसके लिए सरकार से कहा जा सकता है।

जब हम लगातार भरोसेमंद, मानकीकृत और प्रतिस्पर्धी मूल्यों पर आपूर्ति करने की स्थिति में पहुंच जाएं, तब वैश्विक डेयरी निर्यात के लिए क्यों न एक समर्पित “भारतीय डेयरी उत्पाद नीलामी प्लेटफॉर्म” लांच किया जाए?

अवसर कहां और किसे लक्षित करें?

अब एसएमपी के अलावा अन्य डेयरी उत्पादों के लिए भी वैल्यू-एडेड प्रोडक्ट एवं वेरिएंट्स पर काम करने का समय है। यहां कुछ विचार हैं…

बी2सी उपभोक्ता उत्पाद
तरल दूध, फ्लेवर्ड मिल्क, ताज़ा क्रीम, आइसक्रीम मिक्स जैसे यूएचटी उत्पादों के लिए कुछ लक्षित बाज़ारों के करीब जाना एक आकर्षक विकल्प हो सकता है।

यूएसपी
भैंस के दूध के हम दुनिया में सबसे बड़े उत्पादक हैं। आने वाले दो दशकों में भैंसों की संख्या बढ़ने की संभावना है। इसे देखते हुए हम पास किसी भी श्वेत डेयरी उत्पाद - जैसे मोज़ारेला चीज़ या व्हाइट स्प्रेड चीज़ - के लिए एडवांटेज में हैं।

एनहाइड्रस मिल्क फैट (एएमएफ) 
मध्य-पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लक्षित बाज़ारों के लिए एएमएफ हमेशा एक खुला अवसर है।

इनोवेशन/उत्पाद विकास
अधिक शेल्फ-लाइफ वाली हमारी देसी मिठाइयां भारतीय प्रवासी समुदाय में काफी पसंद की जाती हैं। इन्हें विदेशी स्वादों के अनुरूप ढालकर वैश्विक उपभोक्ताओं तक पहुंचाना एक अच्छा विकल्प होगा।

उत्पाद अनुकूलन/विस्तार
वनस्पति वसा युक्त मिल्क पाउडर की घरेलू स्तर पर मांग उतनी नहीं है, लेकिन अफ्रीका, इराक, मध्य-पूर्व, दक्षिण-पूर्व एशिया और आसपास के देशों में इसे स्वीकार किया जा रहा है और इसकी मांग बढ़ रही है। यह हमारे लिए एक अनूठा निर्यात अवसर प्रदान करता है।

संक्षेप में कहें तो हमारे डेयरी उद्योग के लिए निर्यात एक मात्र दीर्घकालिक टिकाऊ समाधान होगा। हम आत्मनिर्भर बनने के लक्ष्य की दिशा में काफी आगे बढ़ चुके हैं, लेकिन वैश्विक बाज़ार में भागीदार बनने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है। तो आइए, इसका लाभ उठाते हुए अभी से तैयारियां शुरू कर दें।

(लेखक स्वतंत्र खाद्य सलाहकार और डेयरी इंडस्ट्री के एक्सपर्ट हैं)

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