100 अरब डॉलर का निर्यात लक्ष्यः विश्व बाजार में कैसे जगह बनाएंगे भारतीय कृषि उत्पाद

सालों से भारत खाद्य तेलों और दालों के आयात पर निर्भर रहा है, और इनके मूल्य में वृद्धि भारत के कृषि व्यापार संतुलन पर काफी नकारात्मक प्रभाव डालती है। वर्ष 2024 में भारत के कृषि निर्यात में 6.5% वृद्धि हुई, जबकि आयात में 18.7% बढ़ोतरी दर्ज की गई। इससे भारत का कृषि व्यापार घाटा बढ़ गया। वर्ष 2024 में भारत के प्रमुख कृषि निर्यात जैसे समुद्री उत्पाद, गैर-बासमती चावल, चीनी, बासमती चावल और मसाले कुल कृषि निर्यात का 50% से अधिक थे।

100 अरब डॉलर का निर्यात लक्ष्यः विश्व बाजार में कैसे जगह बनाएंगे भारतीय कृषि उत्पाद

कृषि निर्यात भारत की आजीविका और रोजगार की चुनौतियों के समाधान की कुंजी हैं। यहां कृषि लोगों की आजीविका के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह देश की 45% से अधिक आबादी को रोजगार प्रदान करती है। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 18% का योगदान करती है। भारत 142 करोड़ आबादी के साथ विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। इसके लिए खाद्य सुरक्षा और आत्मनिर्भरता अत्यावश्यक है। भारत के अधिकांश कृषि उत्पादन की देश के भीतर ही खपत हो जाती है, जबकि विकसित देशों में कृषि उत्पादन का बड़ा हिस्सा अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेचा जाता है। भारतीय कृषि की विशेषताएं बिखरी हुई जोत, जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता, कम उत्पादकता और विपणन अक्षमताएं हैं। इन तमाम चुनौतियों के बावजूद, भारत कई कृषि कमोडिटी का सबसे बड़ा उत्पादक देश बनकर उभरा है। दूध, दालें, जूट, चावल, गन्ना, गेहूं, कपास जैसे अनेक कृषि उपज के मामले में यह विश्व में अग्रणी है।

भारत ने कृषि क्षेत्र में लंबा सफर तय किया है। एक समय खाद्यान्न का आयातक रहा भारत आज विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक बन चुका है। यह वैश्विक चावल व्यापार में लगभग 40% हिस्सेदारी रखता है। भारत का कृषि निर्यात 2000-01 में 7.5 अरब डॉलर से बढ़कर 2022-23 में 53.1 अरब डॉलर हो गया, जो 8% सालाना वार्षिक वृद्धि को दर्शाता है। यह वृद्धि इस तथ्य के बावजूद हुई कि समय-समय पर चावल, चीनी, गेहूं आदि जैसे उत्पादों पर निर्यात की मात्रा या न्यूनतम निर्यात मूल्य के अंकुश लगाए गए।

हालांकि सालों से भारत खाद्य तेलों और दालों के आयात पर निर्भर रहा है, और इनके मूल्य में वृद्धि भारत के कृषि व्यापार संतुलन पर काफी नकारात्मक प्रभाव डालती है। वर्ष 2024 में भारत के कृषि निर्यात में 6.5% वृद्धि हुई, जबकि आयात में 18.7% बढ़ोतरी दर्ज की गई। इससे भारत का कृषि व्यापार घाटा बढ़ गया। वर्ष 2024 में भारत के प्रमुख कृषि निर्यात जैसे समुद्री उत्पाद, गैर-बासमती चावल, चीनी, बासमती चावल और मसाले कुल कृषि निर्यात का 50% से अधिक थे।

कृषि निर्यात की प्रमुख चुनौतियां
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के कृषि जिंस की कीमतों के सूचकांक और वर्ल्ड बैंक के कमोडिटी प्राइस इंडेक्स से संकेत मिलता है कि कृषि जिंसों की कीमतों में गिरावट का रुझान है। वर्ल्ड बैंक ने 2025 में वैश्विक खाद्य कीमतों में लगभग 7% गिरावट और 2026 में अतिरिक्त 1% गिरावट का अनुमान लगाया है। इस परिदृश्य में यह आवश्यक हो गया है कि हमारी कृषि उत्पादन प्रणाली को मूल्य श्रृंखला के हर चरण में प्रतिस्पर्धी बनाया जाए, ताकि भारतीय कृषि उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजारों में मुकाबला कर सकें।

कृषि और खाद्य उत्पादों की नष्ट होने की प्रकृति के कारण आपूर्ति श्रृंखला में अनेक चुनौतियां उत्पन्न होती हैं, विशेषकर कोल्डचेन, भंडारण, परिवहन और प्रसंस्करण से संबंधित। भारतीय कृषि प्रणाली में संरचनात्मक समस्याएं हैं जिन्हें समग्र दृष्टिकोण से हल करने की आवश्यकता है। भंडारण और परिवहन की अक्षमता के कारण आपूर्ति श्रृंखला बाधित होती है, जिससे कटाई के बाद 15-20% फसल का नुकसान होता है। विकसित देश अब कृषि व्यापार में अधिक से अधिक संरक्षणवादी रुख अपना रहे हैं, जहां गुणवत्ता मानकों, उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग तथा टिकाऊ कृषि पद्धतियों के बहाने गैर-शुल्क बाधाएं खड़ी की जा रही हैं।

व्यापक रणनीति और सटीक कार्यान्वयन की आवश्यकता
भारत को अपने कृषि निर्यात की पूरी क्षमता का दोहन करने के लिए खेतों और आपूर्ति शृंखला में व्याप्त अक्षमताओं को दूर करना होगा। इसके साथ ही केवल प्राथमिक वस्तुओं के बजाय वैल्यू एडिशन और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात पर विशेष ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। तेजी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए नए बाजारों की पहचान करना और वैकल्पिक बाजारों तक पहुंचना भारत की कृषि निर्यात रणनीति का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए।

भारत को उत्पादकता में महत्वपूर्ण सुधार की दिशा में आगे बढ़ते हुए कृषि रसायनों के उपयोग में चरणबद्ध रूप से कमी लाने, जैविक उत्पादन को बढ़ावा देने और जल का कुशल उपयोग सुनिश्चित करते हुए उत्पादन और उत्पादकता में बढ़ोतरी करने की जरूरत है। इसके लिए चौथी पीढ़ी की कृषि तकनीकों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) जैसी उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों का एकीकृत और कुशल उपयोग आवश्यक है, विशेषकर उत्पादन और जल संचय की दिशा में।

भारत को खाद्यान्न और प्राथमिक वस्तुओं के उत्पादन व निर्यात से हटकर बागवानी और अधिक शेल्फ लाइफ वाले मूल्य वर्धित उत्पादों की ओर जाने की जरूरत है, जहां मुनाफे की संभावनाएं कहीं अधिक होती हैं। एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) रणनीति को प्रभावी रूप से लागू करने की आवश्यकता है, ताकि इसमें निहित संभावनाओं का पूरा लाभ उठाया जा सके।

राज्य और केंद्र सरकार, दोनों को खेतों के स्तर पर और संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला में विभिन्न एजेंसियों को जोड़ते हुए ऐसी योजनाएं विकसित करनी चाहिए जो उपरोक्त उद्देश्यों को पूरा करने में सहायक हों। केंद्र और राज्यों के विभागों को समन्वित और समग्र निर्यात प्रोत्साहन रणनीति के तहत एकजुट होकर कार्य करना चाहिए, न कि अलग-अलग जिनमें आपसी समन्वय की कमी हो।

भारत को नए व्यापार समझौतों में प्रवेश करते समय सावधानी बरतनी चाहिए ताकि देश को शुल्क-मुक्त या रियायती शुल्क के रूप में बाजार पहुंच का लाभ मिल सके। साथ ही गैर-शुल्क बाधाओं की स्पष्टता भी हो। गुणवत्ता में सुधार के लिए काफी प्रयासों की आवश्यकता है ताकि गुणवत्ता संबंधी उभरती व्यापार बाधाओं का समाधान किया जा सके और निर्यात गंतव्य पर कनसाइनमेंट अस्वीकार किए जाने को न्यूनतम किया जा सके।

हमें अत्यधिक सतर्क रहने की भी आवश्यकता है क्योंकि अमेरिका, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे कई विकसित देश भारत के 142 करोड़ के विशाल उपभोक्ता बाजार पर नजर गड़ाए हुए हैं।
हाल ही अमेरिका ने अप्रत्याशित टैरिफ नीति के तहत भारत पर 26% शुल्क और अन्य कई देशों पर भिन्न-भिन्न रेसिप्रोकल टैरिफ लगाए। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में व्यापार का विश्लेषण कहीं अधिक जटिल हो गया। इस नीति के तहत वियतनाम और थाईलैंड पर अधिक शुल्क लगाए गए, जिससे भारतीय चावल थोड़ा अधिक प्रतिस्पर्धी हो गया था, लेकिन बाद में सभी देशों पर लगाए गए टैरिफ को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया गया।

अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति तेजी से जटिल और अस्पष्ट होती जा रही है, विशेष रूप से चीन पर लगाए गए उच्च शुल्कों के कारण (हाल में समझौते के बाद अमेरिका और चीन ने एक-दूसरे के खिलाफ शुल्क में कमी की है)। संभावना है कि चीन, अमेरिका से कृषि आयात पर अपनी निर्भरता कम करेगा। तब अमेरिका के किसान वैकल्पिक बाजारों की तलाश करेंगे। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि विशेष रूप से प्रतिस्पर्धी देशों और प्रमुख बाजारों पर लागू आयात शुल्क की निरंतर निगरानी की जाए। सरकारों, निर्यात संवर्धन एजेंसियों और निर्यातकों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों पर सतर्क दृष्टि बनाए रखनी चाहिए और लचीली एवं समयानुकूल व्यापार रणनीति अपनानी चाहिए। 

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