डीएपी संकट की असली वजह: अप्रैल-जून में आयात 12.9% घटा, बिक्री में आई 19.4% की गिरावट  

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में कुल 9.74 लाख टन डीएपी का आयात किया गया, जो पिछले साल इन तीन महीनों में हुए 11.18 लाख टन डीएपी आयात से 12.9 फीसदी कम है।

डीएपी संकट की असली वजह: अप्रैल-जून में आयात 12.9% घटा, बिक्री में आई 19.4% की गिरावट  
प्रतीकात्मक

खरीफ सीजन की बुवाई के दौरान देश के कई राज्यों में किसानों को डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) जैसे अहम उर्वरक मिलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। उर्वरकों को लेकर पैदा इन स्थितियों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों की कीमतों और आयात से जोड़कर देखा जा रहा है। क्योंकि उर्वरकों के मामले में देश की आयात पर अत्यधिक निर्भरता है।

रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में बताया कि अप्रैल में 2.89 लाख टन, मई में 2.36 लाख टन और जून में 4.49 लाख टन डीएपी  का आयात किया गया।

इस तरह चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में कुल 9.74 लाख टन डीएपी का आयात किया गया, जो पिछले साल इन तीन महीनों में हुए 11.18 लाख टन डीएपी आयात से 12.9 फीसदी कम है। इन तीन महीनों के दौरान देश में कुल 15.53 लाख टन डीएपी की बिक्री हुई जो पिछले साल इसी अवधि के मुकाबले 19.4 फीसदी कम है। यानी डीएपी के आयात में जितनी कमी आई, बिक्री में उससे भी अधिक गिरावट दर्ज की गई है।

राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बताया कि इस साल 1 अप्रैल को देश में डीएपी का ओपनिंग स्टॉक 9.15 लाख टन था। जबकि पिछले साल 1 अप्रैल, 2024 को डीएपी का ओपनिंग स्टॉक 17.75 लाख टन था। यानी अप्रैल से ही डीएपी का स्टॉक पिछले साल के मुकाबले काफी कम था। 

केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के अनुसार, “2025 के खरीफ सीजन के दौरान रासायनिक उर्वरकों की जरूरत पिछले साल की तुलना में थोड़ी ज़्यादा है, क्योंकि बुआई का दायरा बढ़ा है और मानसून अनुकूल है।" 

भारत में डीएपी की सालाना खपत लगभग 111 लाख टन है, जिसमें से आधे से अधिक हिस्से की पूर्ति आयात से की जाती है। अंतराष्ट्रीय बाजार में डीएपी की ऊंची कीमतों, भूराजनीतिक परिस्थितियों और व्यापारिक बाधाओं के चलते हाल के वर्षों में डीएपी का आयात प्रभावित हुआ है। 

पांच साल से उत्पादन स्थिर, आयात घटा

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020-21 के दौरान देश में 48.82 लाख टन डीएपी का आयात हुआ था, जबकि डीएपी का उत्पादन 37.74 लाख टन था। इसके बाद 2022-23 में डीएपी आयात बढ़कर 65.83 लाख टन और उत्पादन 43.51 लाख टन तक पहुंच गया था। लेकिन 2024-25 में डीएपी का आयात घटकर 45.69 लाख टन रह गया और घरेलू उत्पादन गिरकर 37.72 लाख टन पर आ गई। डीएपी को लेकर आ रही दिक्कतों को आयात और उत्पादन में आई कमी से समझा जा सकता है।

भारत डीएपी के आयात के लिए चीन, मोरक्को, सऊदी अरब और रूस जैसे देशों पर निर्भर रहा है। हालांकि, चीन से आपूर्ति में गिरावट के चलते भारत ने बीते दो वर्षों में चीन पर निर्भरता घटाई है। वर्ष 2023-24 में भारत का लगभग 40 फीसदी डीएपी आयात चीन से हुआ था, जो 2025 में घटकर 19 फीसदी रह गया है। 

डीएपी भंडार की स्थिति

इस साल 1 जून 2025 तक देश में डीएपी का कुल भंडार 12.4 लाख टन था, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के 21.6 लाख टन और 2023 के 33.2 लाख टन के मुकाबले काफी कम है। इससे खरीफ फसलों के दौरान संभावित आपूर्ति संकट की चिंता भी जताई जा रही है। इन आंकड़ों का सीधा मतलब है कि उर्वरक कंपनियां डीएपी और उसके कच्चे माल फॉस्फोरिक एसिड और रॉक फॉस्फोरस का कम आयात कर रही हैं। 

ऊंची आयात कीमतों का असर

देश में यूरिया के बाद सबसे अधिक खपत वाले उर्वरक डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की आयात कीमतें 810 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं। जिससे चलते उर्वरक कंपनियों ने पिछले साल के मुकाबले कम डीएपी आयात किया है। इससे किसानों को डीएपी की उपलब्धता में समस्या का सामना करना पड़ रहा है और कालाबाजारी भी बढ़ रही है। 

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