उर्वरक संकट के लिए किसान सभा ने मोदी सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया, विरोध-प्रदर्शन की तैयारी

अखिल भारतीय किसान सभा ने अपनी सभी इकाइयों से आह्वान किया है कि वे गांव/तहसील केंद्रों पर विरोध-प्रदर्शन कर जिला कलेक्टरों को ज्ञापन सौंपे और उर्वरक संकट के तत्काल समाधान की मांग करें।

उर्वरक संकट के लिए किसान सभा ने मोदी सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया, विरोध-प्रदर्शन की तैयारी

अखिल भारतीय किसान सभा ने उर्वरक संकट के लिए केंद्र की मोदी सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। किसान सभा की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार, खरीफ की बुवाई का मौसम शुरू होते ही किसानों को विभिन्न उर्वरकों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। कई जगहों पर किसानों ने उर्वरकों की जमाखोरी व कालाबाजारी के आरोप लगाए हैं। किसान सभा का कहना है कि इस संकट के लिए मोदी सरकार की उर्वरक सब्सिडी में कटौती और मूल्य नियंत्रण-मुक्ति की नीतियां जिम्मेदार हैं। 

किसान सभा के अध्यक्ष अशोक ढ़वले और महासचिव विजू कृष्णन की ओर से जारी बयान के अनुसार, भारत अपनी उर्वरक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आयात निर्भर होता जा रहा है। उर्वरकों की कुल आपूर्ति में आयात का हिस्सा डीएपी के लिए 60% से लेकर एमओपी के लिए 100% तक है। इसने भारत के कृषि उत्पादन और खाद्य सुरक्षा को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों और भू-राजनीतिक स्थितियों की अनिश्चितताओं पर निर्भर बना दिया है। 

अखिल भारतीय किसान सभा ने अपनी सभी इकाइयों से आह्वान किया है कि वे गांव/तहसील केंद्रों पर विरोध-प्रदर्शन कर जिला कलेक्टरों को ज्ञापन सौंपे और उर्वरक संकट के तत्काल समाधान की मांग करें।

किसान सभा ने आरोप लगाया कि भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने पिछले तीन वर्षों के दौरान उर्वरक सब्सिडी में लगातार कटौती की है। उर्वरक सब्सिडी 2022-23 में 2.51 लाख करोड़ रुपये से घटकर 2023-24 में 1.88 लाख करोड़ रुपये और फिर 2024-25 में इससे भी ज्यादा घटकर 1.64 लाख करोड़ रुपये रह गई। आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के बजायमोदी सरकार उर्वरक की कमी की समस्या के समाधान के रूप में नैनो यूरिया और शून्य बजट खेती जैसी अप्रमाणित तकनीकों को बढ़ावा दे रही है। 

किसान सभा का कहना है कि पोषक तत्व आधारित सब्सिडी योजना (एनबीएससी) को 2010 में नव-उदारवादी नीति के रूप में पेश कर बाजार को अनियंत्रित किया गया और कंपनियों को लाभ-अधिकतम मूल्य निर्धारित करने की अनुमति दे दी गई। तब से यूरिया के अलावा अन्य उर्वरकों की कीमतें कई गुना बढ़ गईं। इससे किसानों की लागत बढ़ गई है। म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) की कीमत 2009-10 में 4455 रुपये प्रति टन से बढ़कर 2023 (अगस्त) में 34,644 रुपये प्रति टन हो गई। डीएपी की कीमत 2009-10 में 15085 रुपये से बढ़कर 2023 में 27000 रुपये हो गई।

किसान सभा ने केंद्र सरकार से किसानों को उचित मूल्य पर उर्वरक उपलब्ध कराने और उर्वरकों की जमाखोरी व कालाबाजारी पर कड़ी निगरानी रखने की मांग की है। साथ ही विनियमित मूल्य व्यवस्था को पूरी तरह से बहाल करने और सार्वजनिक क्षेत्र के उर्वरक उत्पादन में पूंजी निवेश को तुरंत बढ़ाने की मांग भी उठाई है।

 

 

 

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