कृषि भूमि से पेड़ काटने के मॉडल नियम जारी, किसानों पर पड़ सकता है लाइसेंस राज का बोझ
कृषि वानिकी को बढ़ाने देने के मकसद से तैयार किए गये मॉडल रूल्स में सत्यापन एजेंसियों सरीखे प्रावधान किसानों पर लाइसेंस राज का बोझ बढ़ा सकते हैं।

केंद्र सरकार ने कृषि भूमि पर पेड़ों की कटाई के लिए मॉडल नियम जारी किए हैं। इसके पीछे सरकार का मकसद एग्रो-फॉरेस्ट्री यानी कृषि-वानिकी को बढ़ावा देकर किसानों की आय और वृक्ष आवरण को बढ़ाना बताया जा रहा है। लेकिन इसमें कई प्रावधान ऐसे हैं जो किसानों पर प्रक्रियाओं और लाइसेंस राज का बोझ बढ़ा सकते हैं। साथ ही भ्रष्टाचार के नए रास्ते खोल सकते हैं। अगर ये नियम लागू होते हैं तो वृक्षारोपण से लेकर पेड़ काटने तक हर कदम पर किसानों को सरकारी निगरानी का सामना करना पड़ेगा।
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से “कृषि भूमि पर पेड़ों की कटाई के लिए मॉडल नियम” जारी किए गये हैं। मंत्रालय का कहना है कि इन नियमों का उद्देश्य कृषि वानिकी भूमि के पंजीकरण और पेड़ों की कटाई व परिवहन संबंधी प्रक्रियाओं को सरल बनाना है। ताकि किसानों को कृषि वानिकी के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। सरकार एग्रो-फॉरेस्ट्री के माध्यम से टिंबर उत्पादन बढ़ाना चाहती है, जिससे टिंबर आयात पर निर्भरता कम हो। पर्यावरण की दृष्टि से भी एग्रो-फॉरेस्ट्री फायदेमंद है।
केंद्र की ओर से जारी मॉडल नियमों को लागू करने का निर्णय अंतत: राज्य सरकारों को लेना है। केंद्रीय वन मंत्रालय ने राज्य सरकारों से मॉडल नियमों पर विचार कर इन्हें लागू करने का आग्रह किया है।
राज्य स्तरीय समिति करेगी निगरानी
मॉडल नियमों के अनुसार, वुड-बेस्ड इंडस्ट्रीज (स्थापना और विनियमन) दिशानिर्देश, 2016 के तहत गठित राज्य स्तरीय समिति (SLC) ही इन नियमों को लागू करने के लिए जिम्मेदार होगी। अब इस समिति में राजस्व और कृषि विभाग के अधिकारी भी शामिल होंगे। जिस तरह की नियामक व्यवस्था वुड-बेस्ड इंडस्ट्रीज के लिए लागू है, वही एग्रो-फॉरेस्ट्री करने वाले किसानों पर भी लागू होगी। इससे किसानों पर रेगुलेशन का झंझट बढ़ सकता है।
प्लांटेशन का कराना होगा रजिस्ट्रेशन
मॉडल नियमों के अनुसार, किसानों को अपने प्लांटेशन का रजिस्ट्रेशन नेशनल टिंबर मैनेजमेंट सिस्टम (NTMS) पोर्टल पर कराना आवश्यक होगा। इसमें भूमि के स्वामित्व और जमीन की लोकेशन आदि जानकारियां देनी होंगी।
अभी तक एग्रो-फॉरेस्ट्री के लिए इस प्रकार के किसी रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं है। ग्राम स्तर पर पटवारी, लेखपाल और कृषि विभाग के अधिकारी फसल और भूमि-उपयोग का ब्यौरा जुटाते हैं। लेकिन नए नियमों के बाद एग्रो-फॉरेस्ट्री का न सिर्फ रजिस्ट्रेशन कराना होगा, बल्कि यह वन विभाग के अधिकारियों की निगरानी में आ जाएगी।
किसानों को देनी होंगी ये जानकारी
मॉडल नियमों के अनुसार, किसानों को प्लांटेशन का पूरा ब्यौरा नेशनल टिंबर मैनेजमेंट सिस्टम पोर्टल पर दर्ज करना होगा। इसमें भूमि स्वामित्व की जानकारी, खेत की लोकेशन, पेड़ों की प्रजाति, पेड़ों की संख्या, वृक्षारोपण की तिथि और पौध की औसत ऊंचाई की जानकारी शामिल है। समय-समय पर प्लांटेशन की जानकारी भी अपडेट करनी होगी।
इतना ही नहीं, किसानों को हरके पेड़ की फोटो जियो टैगिंग के साथ KML फाइल फॉर्मेट में उपलब्ध करानी होगी, ताकी ट्रेसबिलिटी सुनिश्चित की जा सके। प्लांटेशन के ब्यौरे की निगरानी कृषि विभाग और पंचायत राज विभाग के अलावा वन विभाग के अधिकारियों द्वारा भी की जाएगी। देश में छोटे किसानों की बड़ी तादाद और डिजिटल डिवाइड को देखते हुए, इस तरह के प्रावधानों पर सवाल खड़े हो सकते हैं।
सत्यापन एजेंसियों की नियुक्ति
कृषि भूमि से पेड़ों की कटाई के आवेदनों की जांच के लिए सत्यापन एजेंसियों को एम्पैनल किया जाएगा। पेड़ काटने का परमिट जारी करने में इनकी अहम भूमिका होगी। इन एजेंसियों के पास वन प्रबंधन और एग्रो-फॉरेस्ट्री की विशेषज्ञता होनी चाहिए। फिलहाल स्पष्ट नहीं है कि ये एजेंसियां सरकारी होगी या प्राइवेट? लेकिन एग्रो-फॉरेस्ट्री में सत्यापन एजेंसियों के दखल से किसानों का झंझट और भ्रष्टाचार बढ़ सकता है।
कैसे जारी होगा पेड़ काटने का परमिट
पंजीकृत प्लांटेशन से पेड़ों की कटाई के लिए किसानों को नेशनल टिंबर मैनेजमेंट सिस्टम (NTMS) पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। इसके बाद सत्यापन एजेंसियां खेत का निरीक्षण करेंगी और उनकी रिपोर्ट के आधार पर, पेड़ काटने के परमिट जारी किए जाएंगे। इन एजेंसियों के कामकाज की निगरानी संबंधित डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO) करेंगे।
10 से कम पेड़ वाली कृषि भूमि से पेड़ काटने के लिए किसानों को पेड़ की फोटो एनटीएमएस पोर्टल पर अपलोड करनी होगी और पेड़ कटाई की तिथि बतानी होगी। ऐसे मामलों में पेड़ काटने के लिए एनओसी पोर्टल के जरिए जारी की जाएगी। पेड़ों की कटाई के बाद ठूंठ की तस्वीरें भी पोर्टल पर अपलोड करनी होंगी।
आशंकाएं
नए नियमों से भले ही कृषि वानिकी को बढ़ावा देने और पेड़ों की कटाई की प्रक्रिया को आसान बनाने के दावे किए जा रहे हैं। लेकिन ये नियम किसानों के लिए नई मुश्किलें पैदा कर सकते हैं और भ्रष्टाचार के नए रास्ते खोल सकते हैं। किसान पहले से ही तहसील और पटवारी स्तर के भ्रष्टाचार से परेशान हैं।
एग्रो-फॉरेस्ट्री पर वन विभाग और सत्यापन एजेंसियों की निगरानी एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि ये नियम एग्रो-फॉरेस्ट्री से जुड़ी बड़ी कंपनियों को ध्यान में रखकर तैयार किए गये हैं। तीन विवादित कृषि कानूनों की तरह इन नियमों को तैयार करने में भी किसानों के साथ व्यापक विचार-विमर्श का कमी दिखाई पड़ती है।