आयात भरोसे महंगाई नियंत्रण, लेकिन खामियाजा भुगत रहे किसान
कीमतों पर नियंत्रण का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि कई फसलों के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से भी नीचे रहे हैं—यहां तक कि उन फसलों के भी, जिनका हम आयात कर रहे हैं।

केंद्र सरकार द्वारा जारी मई 2025 के आंकड़ों के मुताबिक, खुदरा महंगाई दर (CPI) 2.82 प्रतिशत रही है। महंगाई दर में इस गिरावट के पीछे एक अहम वजह खाद्य महंगाई दर का घटकर 0.99 प्रतिशत पर आ जाना है। यानी मई 2024 की तुलना में मई 2025 में खाद्य उत्पादों की कीमतें केवल 0.99 प्रतिशत ही बढ़ीं। इसमें भी दालों, फल और सब्जियों की कीमतों में आई गिरावट प्रमुख कारण रही।
देखने में यह जितना सामान्य लगता है, वास्तव में उतना है नहीं। कीमतों पर नियंत्रण का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि कई फसलों के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से भी नीचे रहे हैं—यहां तक कि उन फसलों के भी, जिनका हम आयात कर रहे हैं।
अगर बात खाद्य तेलों और दालों की करें, तो उद्योग जगत के अनुसार पिछले एक माह में खाद्य तेलों के दाम लगभग 7% तक गिर गए हैं। यह गिरावट घरेलू उत्पादन बढ़ने से नहीं, बल्कि आयात में वृद्धि से आई है। इसके लिए सरकार ने मई के अंत में कच्चे खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क में 10 प्रतिशत की कटौती भी की थी। इसी दौरान पाम ऑयल का रिकॉर्ड आयात हुआ। दूसरी ओर, सोयाबीन के किसान MSP के लिए तरसते रहे। सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (एनएमईओ-ओपी) के तहत आत्मनिर्भरता की बात तो की है, लेकिन हकीकत यह है कि देश अपनी 61% खाद्य तेल आवश्यकता का आयात कर रहा है। वहीं, प्रमुख तिलहन फसल सरसों के किसानों को भी समर्थन मूल्य पर बिक्री में दिक्कतें आईं।
दालों की बात करें तो पिछले साल देश ने लगभग 77 लाख टन दालों का आयात किया। जबकि घरेलू उत्पादन 260 लाख टन रहा, जिसमें लगभग 40% हिस्सा केवल चना का था। मूंग का उत्पादन भले बढ़ा हो, पर मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में किसानों को MSP पर खरीद के लिए आंदोलन करने पड़े। नरसिंहपुर जिले के एक किसान ने रूरल वॉयस को बताया, "मैं तिलहन और दालों का उत्पादन करता हूं ताकि देश आत्मनिर्भर हो, लेकिन मुझे तो अपनी उपज का MSP भी नहीं मिल रहा है। मूंग की खरीद MSP पर नहीं हो रही।”
इसी बीच चना का 15 लाख टन आयात ऑस्ट्रेलिया और तंजानिया से हुआ, पीली मटर का 21 लाख टन कनाडा और ऑस्ट्रेलिया से आया। मसूर और अरहर का आयात 12-12 लाख टन और उड़द का 8 लाख टन रहा, जो अफ्रीकी देशों व म्यांमार से हुआ।
सरकार के महंगाई आंकड़ों से साफ है कि फल, सब्जियां, दालें और खाद्यान्न की कीमतों में गिरावट की वजह से खाद्य महंगाई दर नीचे आई है। यानी महंगाई नियंत्रण में आयात ने बड़ी भूमिका निभाई है, और सरकार इसे शुल्क में छूट के जरिए प्रोत्साहित कर रही है।
वहीं, रिकॉर्ड 11.75 करोड़ टन गेहूं उत्पादन के बावजूद सरकार ने 31 मार्च 2026 तक स्टॉक लिमिट लागू कर दी ताकि बाजार में दाम न बढ़ें। यह फैसला खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने लिया है। हैरानी की बात यह है कि कम कीमत पर गेहूं और चावल उपलब्ध कराने वाली ‘भारत आटा योजना’ को बंद कर दिया गया है। इससे लगता है कि सरकार को निजी क्षेत्र पर भरोसा हो गया है कि वह उचित कीमत पर आपूर्ति करेगा—या शायद बाजार को पूरी तरह निजी हाथों में देना ही लक्ष्य है।
इस तरह महंगाई नियंत्रण की नीतियां किसानों के लिए घाटे का सौदा बनती जा रही हैं। कई फसलों के भाव पिछले साल से भी कम मिल रहे हैं। प्याज और टमाटर जैसी सब्जियों के दाम गिरने से किसानों को भारी नुकसान हुआ है, लेकिन महंगाई घटाने की सफलता के आंकड़ों में इन समस्याओं की कोई जगह नहीं है।