एग्रोकेमिकल आयात में उछाल भारतीय उद्योग के लिए बनी चुनौती, सीसीएफआई ने की आयात शुल्क बढ़ाने की मांग
भारत का एग्रोकेमिकल क्षेत्र निर्यात के मोर्चे पर मजबूती दिखा रहा है, लेकिन चीन से हो रहे आयात में 53% की वृद्धि से घरेलू निर्माता गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं। उद्योग ने सरकार से आग्रह किया है कि वह ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल को बढ़ावा देने के लिए फॉर्मुलेशन और टेक्निकल-ग्रेड आयात पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाए।

भारतीय एग्रोकेमिकल उद्योग ने चीन से आयात में तेज उछाल को लेकर सरकार को चेताया है। क्रॉप केयर फेडरेशन ऑफ इंडिया (CCFI), जो देश के 50 से अधिक प्रमुख एग्रोकेमिकल निर्माताओं का शीर्ष संगठन है, ने सरकार के सामने इस संबंध में कई बार अपनी बात रखी है। संगठन ने एक बार फिर वित्त मंत्रालय से इस बारे में आग्रह किया है। फेडरेशन ने मंत्रालय को लिखे एक पत्र में कहा है कि वह आयातित एग्रोकेमिकल फॉर्मुलेशन और टेक्निकल-ग्रेड कीटनाशकों पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाकर घरेलू निर्माताओं को समान अवसर दे।
व्यापार अधिशेष, लेकिन उद्योग दबाव में
भारत के एग्रोकेमिकल क्षेत्र को निर्यात क्षमता और आत्मनिर्भरता के कारण चैंपियन सेक्टर घोषित किया गया है। वित्त वर्ष 2024-25 में इस क्षेत्र ने 22,147 करोड़ रुपये का व्यापार अधिशेष दर्ज किया, जो मुख्य रूप से जेनेरिक एग्रोकेमिकल्स के निर्यात से संभव हुआ है।
इसके बावजूद, सस्ते चाइनीज आयात से घरेलू उद्योग पर दबाव लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2019-20 से 2024-25 के बीच एग्रोकेमिकल्स का आयात 9,096 करोड़ से बढ़कर 13,998 करोड़ रुपये हो गया। यानी इसमें 53% की वृद्धि हुई है। कुल 80,000 करोड़ के एग्रोकेमिकल बाजार में घरेलू हिस्सा लगभग 36,000 करोड़ रुपये का है।
कस्टम ड्यूटी में वृद्धि की मांग
CCFI ने सरकार से मांग की है कि वह आयातित तैयार फॉर्मुलेशन पर 30% कस्टम ड्यूटी और टेक्निकल-ग्रेड कीटनाशकों पर 20% ड्यूटी तत्काल लगाए। इसके विकल्प के रूप में फॉर्मुलेशन और टेक्निकल के बीच कम से कम 10% का ड्यूटी अंतर तय किया जाए, जिससे रेडी-टू-यूज उत्पादों के आयात को हतोत्साहित किया जा सके।
संगठन के अनुसार यह अंतर बेहद आवश्यक है ताकि चीन से होने वाले अनियंत्रित डंपिंग पर रोक लग सके। चीन की डंपिंग ने देश में 40,000 करोड़ रुपये से अधिक निवेश करने वाले निर्माताओं को नुकसान पहुंचाया है।
इसका कहना है कि कस्टम ड्यूटी बढ़ाने से किसानों पर बोझ बढ़ने की आशंका को लेकर चिंता जताई जाती है। हालांकि, विशेषज्ञों और डॉ. अशोक दलवई (आईएएस) की रिपोर्ट के अनुसार, कीटनाशक फसल लागत का 1% से भी कम हिस्सा होते हैं। ऐसे में कस्टम ड्यूटी में तर्कसंगत वृद्धि से किसानों की लागत पर कोई बड़ा असर नहीं होगा।
मौजूदा आयात व्यवस्था की चुनौतियां
उद्योग ने मौजूदा आयात प्रणाली में कई खामियां बताई हैं। इसका कहना है कि आयातित टेक्निकल और फॉर्मुलेशन पर कम ड्यूटी होने के कारण घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन नहीं मिलता। आयातित उत्पादों पर सक्रिय तत्वों की शुद्धता और शेल्फ लाइफ जैसी कठोर नियामक जांच नहीं होती। कस्टम वर्गीकरण में 'अन्य श्रेणी का अत्यधिक दुरुपयोग हो रहा है क्योंकि केवल 57 उत्पादों के ही विशिष्ट HSN कोड हैं, जबकि 800 से अधिक उत्पाद प्रचलन में हैं। CCFI के अनुसार, इस तरह की अनियमितता से घटिया उत्पाद भारतीय बाजार में आ रहे हैं, जो फसलों की सुरक्षा और पर्यावरण के लिए खतरा बन सकते हैं।
भारत में एग्रोकेमिकल उत्पादन की 45% क्षमता का अब भी उपयोग नहीं हो रहा है। देश के पास आधुनिक फॉर्मुलेशन बनाने की तकनीक और क्षमता है, लेकिन आयात की मार से इनका लाभ नहीं उठाया जा पा रहा। आयातित उत्पाद भारत में बनने वाले समकक्ष उत्पादों की तुलना में 2 से 2.5 गुना महंगे होते हैं और विदेशी कंपनियों को 200% तक लाभ देते हैं। यदि स्थानीय निर्माण को बढ़ावा दिया जाए तो यह लाभ भारत में ही रह सकता है।
सीसीएफआई का कहना है कि भारत पहले ही एग्रोकेमिकल निर्यात में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बन चुका है। यह अमेरिका को भी पीछे छोड़ चुका है। यदि सरकार नीतिगत समर्थन दे, तो भारत इनका वैश्विक विनिर्माण हब बन सकता है।
उद्योग की मुख्य मांगें
उद्योग ने वित्त मंत्रालय के सामने कई मांगें रखी हैं। इसका कहना है कि सभी एग्रोकेमिकल उत्पादों के लिए विशेष HSN कोड बनाकर उचित वर्गीकरण और आयात पर निगरानी सुनिश्चित की जाए, आयातित फॉर्मुलेशन पर सब्सिडी और वित्तीय सहायता को वापस लिया जाए, फॉर्मुलेशन आयात से पहले टेक्निकल-ग्रेड कीटनाशकों का अनिवार्य पंजीकरण सुनिश्चित किया जाए, चीन की तरह ड्यूटी ड्रा-बैक या सब्सिडी (9-16%) जैसे प्रोत्साहन दिए जाएं, बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा ट्रांसफर प्राइसिंग पर रोक लगे।
उद्योग का कहना है कि यदि इन मांगों पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियान केवल नारे बनकर रह जाएंगे, और देश की विनिर्माण क्षमता एवं रोजगार के अवसर विदेशी उत्पादों की भेंट चढ़ जाएंगे।