कैलाश पर्वत के दक्षिणी छोर से बर्फ गायब, मौसम पैटर्न में बदलाव पर वैज्ञानिकों की नजर
पांच साल बाद शुरू हुई कैलाश मानसरोवर यात्रा से लौटे पहले यात्री दल ने बताया कि कैलाश पर्वत के दक्षिणी छोर से बर्फ गायब है। जहां पहले बर्फ की चादर दिखती थी, वहां अब चट्टानें नजर आ रही हैं। इसे मौसम के बदलते पैटर्न और जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखा जा रहा है।

भारत-चीन के बीच मई 2020 में हुई गलवान झड़प के बाद, इस बार उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से पवित्र कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर शुरू हो गई है। यात्रियों का पहला दल कैलाश मानसरोवर के दर्शन कर वापस लौट आया है। लेकिन यात्री दल ने एक बुरी खबर सुनाई है कि कैलाश पर्वत के दक्षिण छोर पर इस बार बर्फ नजर नहीं आ रही है। वैज्ञानिक समुदाय के मुताबिक, समूचे हिमालयी क्षेत्र में मौसम के पैटर्न में कई बदलाव नजर आ रहे हैं। कैलाश पर्वत से बर्फ गायब होना इसी का संकेत है। पिछले साल ओम पर्वत से भी कुछ दिन के लिए बर्फ गायब होने की खबर चर्चाओं में रही थी।
कैलाश पर्वत हिंदू, बौद्ध, जैन और बोन धर्मावलंबियों के लिए आध्यात्मिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। 6,638 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह पर्वत हिंदुओं के लिए भगवान शिव का निवास है, जहां प्रसिद्ध ओम पर्वत स्थित है। कैलाश पर्वत बौद्धों के लिए डेमचोक का प्रतीक और जैनियों के लिए आदिनाथ का तीर्थस्थल है। इसके निकट ही पवित्र मानसरोवर झील है।
कैलाश पर्वत हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र का भी आधार है। यहां से सिंधु, सतलुज, ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियां निकलती हैं, जो दक्षिण एशिया के बड़े भू-भाग पर जल, कृषि और आजीविका का आधार बनती हैं। लेकिन कैलाश पर्वत पर अब बर्फ कम होने की सूचनाएं आने लगी है। इस बार इसका खुलासा खुद पहले यात्री दल ने किया है।
पांच साल बाद शुरू हुई कैलाश मानसरोवर यात्रा का पहला दल, यात्रा पूरी करने के बाद 18 जुलाई को ही उत्तराखंड के पिथौरागढ़ लौटा है। इसी दल में शामिल जयपुर के यात्री राजेश नागपाल ने बताया कि कैलाश पर्वत के दक्षिणी हिस्से में बर्फ का नामोनिशान तक नहीं बचा है। पूरा कैलाश पर्वत काला नजर आ रहा है। पिछले साल इन्हीं दिनों ओम पर्वत से भी बर्फ पिघलने की सूचनाएं आई थी, हालांकि इसके दो-तीन दिन बाद ही बर्फबारी हुई और फिर से ओम की आकृति उभर आई थी।
इस साल कैलाश पर्वत के दक्षिणी छोर से बर्फ गायब होने से उच्च हिमालयी क्षेत्र में क्लाइमेंट चेंज को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। कैलाश क्षेत्र कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने और ग्लोबल वॉर्मिंग को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बर्फ के गायब होने से यह क्षमता कमजोर पड़ सकती है।
मौसम बदलाव अहम कारण
देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (WIHG) के वैज्ञानिकों के मुताबिक, पूरे हिमालयी क्षेत्र में लगातार मौसमी बदलाव हो रहे हैं। साल दर साल ठंडे दिनों की संख्या कम हो रही है, जबकि गरम दिनों की संख्या बढ़ रही है। इसी अनुपात में बर्फबारी घटने से स्नोलाइन पीछे खिसक रही है। अब कैलाश मनसरोवर में बर्फ कम होना जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरे का संकेत हैं।
देहरादून स्थित मौसम केंद्र के निदेशक विक्रम सिंह के मुताबिक, आमतौर छह किमी की ऊंचाई तक मानसून काल में बर्फ गायब हो जाती है। हालांकि, उन्होंने बताया कि कैलाश जैसे उच्च हिमालयी क्षेत्र में बर्फ या बारिश के आंकड़े मौसम विभाग नहीं जुटाता है, इसलिए इस बारे में अंतिम तौर पर कुछ कहना मुश्किल होगा।