किसान, खाद्य सुरक्षा और द्विपक्षीय व्यापार पर गतिरोध, क्या भारत ट्रंप को ना कह सकता है?

अमेरिका और भारत 1 अगस्त की समयसीमा से पहले एक सीमित व्यापार समझौते के लिए बात कर रहे हैं। भारत कृषि बाजार में पहुंच की अमेरिकी मांग का विरोध कर रहा है। भारत की चिंता डेयरी और जीएम खाद्य पदार्थों को लेकर है, जिससे भारतीय किसानों को 12.3 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है।

किसान, खाद्य सुरक्षा और द्विपक्षीय व्यापार पर गतिरोध, क्या भारत ट्रंप को ना कह सकता है?

1 अगस्त की समयसीमा नजदीक आ रही है और भारत-अमेरिका एक सीमित व्यापार समझौते के लिए अंतिम दौर की बातचीत कर रहे हैं। इस विवादास्पद वार्ता के केंद्र में भारत के विशाल कृषि और डेयरी क्षेत्र का भविष्य है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जहां एक ओर जल्द समझौता होने की बात कर रहे हैं, वहीं भारत अपने करोड़ों किसानों को आर्थिक रूप से नुकसानदायक रियायतों से बचाने के लिए दृढ़ लग रहा है।

माना जा रहा है कि अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर प्रस्तावित टैरिफ को 20% से कम करने की पेशकश की है। ट्रंप ने शुरू में 26% टैरिफ लगाया था। इससे भारत को कुछ प्रतिद्वंद्वियों पर प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिल सकती है, लेकिन मुख्य अड़चन भारत के अत्यधिक संवेदनशील कृषि बाजारों तक पहुंच की अमेरिकी मांग है।

भारत के डेयरी किसान संकट में
इन वार्ताओं में भारत की मुख्य "रेड लाइन" उसका डेयरी क्षेत्र है। अमेरिका टैरिफ में कमी और गैर-टैरिफ बाधाओं, विशेष रूप से पशु आहार से संबंधित प्रमाणन आवश्यकताओं को कम करने के लिए पुरजोर प्रयास कर रहा है। भारत ने आर्थिक, सांस्कृतिक व धार्मिक संवेदनशीलताओं का हवाला देते हुए कड़ा रुख अपनाया है।

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) का अनुमान है कि डेयरी क्षेत्र को अमेरिकी आयात के लिए खोलने से भारतीय डेयरी किसानों को लगभग 12.3 अरब डॉलर (1.03 लाख करोड़ रुपये) का वार्षिक नुकसान हो सकता है। यह क्षेत्र करीब 8 करोड़ लोगों, जिनमें से अधिकांश छोटे और सीमांत किसान हैं, को सीधे रोजगार देता है। यह भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। एसबीआई के अनुमान के अनुसार घरेलू बाजार में दूध की कीमतों में 15% गिरावट इनके लिए काफी नुकसानदायक होगा।

आर्थिक प्रभाव के अलावा भारत की यह भी आपत्ति है कि आयातित दूध उत्पाद उन गायों से आते हैं जिन्हें पशु-आधारित उत्पाद (जैसे मांस या रक्त) खिलाए जाते। यह सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ है।

जीएम फसलों पर भारत का रुख
कृषि क्षेत्र में यह लड़ाई आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों से जुड़ी है। अमेरिका, जीएम खाद्य पदार्थों पर भारत के नियमों को अस्पष्ट और अवैज्ञानिक मानता है, जिससे अमेरिकी निर्यात में बाधा आ रही है। भारत ने इस पर भी सतर्क रुख अपना रखा है। भारत 24 तरह के उत्पादों के लिए गैर-जीएम और जीएम-मुक्त प्रमाणपत्रों पर जोर देता है, ताकि पता लगाने की क्षमता सुनिश्चित हो सके और उपभोक्ता का विश्वास बना रहे।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अजय श्रीवास्तव जैसे विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अमेरिकी कृषि उत्पादों पर स्थायी टैरिफ कटौती भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर सकती है। चावल, डेयरी और जीएम सोया सहित भारी सब्सिडी वाले अमेरिकी कृषि निर्यात "भारतीय बाजारों को प्रभावित कर सकते हैं और कीमतों को विकृत कर सकते हैं," जिससे भारत के 70 करोड़ से ज़्यादा किसानों की आजीविका तबाह हो सकती है

श्रीवास्तव जोर देकर कहते हैं, "भारत को खाद्य भंडार का प्रबंधन करने, ग्रामीण आय को सहारा देने और वैश्विक झटकों का सामना करने के लिए नीतिगत गुंजाइश बनाए रखनी चाहिए।" वे इस बात पर जोर देते हैं कि आज की भू-राजनीतिक रूप से अस्थिर दुनिया में खाद्य सुरक्षा संप्रभु बनी रहनी चाहिए।

इन कृषि-केंद्रित वार्ताओं की पृष्ठभूमि राष्ट्रपति ट्रंप की आक्रामक और अक्सर एकतरफा बातचीत की रणनीति है। श्रीवास्तव इंडोनेशिया और वियतनाम के साथ हाल के समझौतों की ओर इशारा करते हैं, जहां ट्रंप ने उन देशों के नेताओं के साथ फोन कॉल के बाद व्यापक रियायतों की घोषणा की। हालांकि उनकी घोषणा और आधिकारिक वार्ताकारों द्वारा तय टैरिफ में अंतर दिखा है। उदाहरण के लिए, ट्रंप ने वियतनाम को लेकर दावा किया कि अमेरिका को उसके निर्यात पर 20% टैरिफ लगेगा। वियतनामी अधिकारियों ने तुरंत इसे गलत ठहराते हुए कहा कि समझौता 11% पर हुआ है।

इससे यह चिंता पैदा होती है कि भारत के वार्ताकार जिन शर्तों पर राजी होते हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीधे बातचीत के बाद ट्रंप अमेरिका के लिए कहीं अधिक लाभकारी शर्तों की घोषणा कर सकते हैं। इसलिए भारत को लिखित और संयुक्त रूप से हस्ताक्षरित समझौते पर जोर देना चाहिए।

अभी कृषि और डेयरी पर गहन ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। यह अंतरिम समझौता व्यापक अमेरिका-भारत पहल की दिशा में एक कदम भी है, जिसका लक्ष्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 बिलियन डॉलर तक पहुंचाना है। भारत अपने स्टील, एल्युमीनियम और ऑटो निर्यात पर रियायतों के लिए भी दबाव बना रहा है, जबकि अमेरिका अखरोट और बादाम जैसे उत्पादों पर कम टैरिफ चाहता है।

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