महंगाई का छह साल का निचला स्तर किसानों पर कितना भारी?

सस्ते आयात के जरिए खाद्य महंगाई को कम करने की रणनीति किसानों के लिए घाटे का सबब बन रही है। खासतौर पर दलहन और तिलहन के मामले में किसानों का मोहभंग होना स्वाभाविक है। चालू खरीफ सीजन की बुवाई के आंकडे इस तरफ संकेत करते हैं।   

महंगाई का छह साल का निचला स्तर किसानों पर कितना भारी?

जून माह में खुदरा महंगाई दर (सीपीआई) छह साल के निचले स्तर 2.1 फीसदी पर आ गई। भारतीय रिजर्व बैंक और इकोनॉमी के गैर-कृषि क्षेत्र के लिए बेहतर खबर है क्योंकि इससे ब्याज दरों में कटौती का माहौल बन गया, जिसे इकोनॉमी की ग्रोथ के लिए बेहतर स्थिति माना जाता रहा है। लेकिन इसके दूसरे पहलू पर गौर नहीं किया गया है। असल में, महंगाई दर में यह कमी खाद्य महंगाई दर के घटकर 1.1 फीसदी निगेटिव हो जाने के चलते आई है। इसका कारण खाद्य वस्तुओं की कीमतों में आई भारी गिरावट है। उन खाद्य उत्पादों की कीमतें भी गिरी हैं जिनके लिए हम आयात पर निर्भर हैं। क्योंकि सरकार ने सस्ते आयात को बढ़ावा दिया। लेकिन दाल और तिलहन जैसे उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे जाना चिंता का कारण है। इससे इन उत्पादों में किसानों की दिलचस्पी कम हो रही है। चालू खरीफ सीजन की बुवाई के आंकडे इस तरफ संकेत करते हैं।  चालू खरीफ सीजन में 11 जुलाई तक अरहर का बुलाई रकबा 25.42 लाख हैक्टेयर पर पहुंचा है जो पिछले साल इसी समय 27.18 लाख हैक्टेयर पर था। इसी तरह सोयाबीन का रकबा 11 जुलाई, 2025 को 99.03 लाख हैक्टेयर रहा जो पिछले साल इसी समय 107.78 लाख हैक्टेयर पर पहुंच गया था। 

सरकार लगातार दावा करती रही है कि वह किसानों की आय बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रही है, लेकिन सामान्य से बेहतर मानसून और बढ़ते आयात के बावजूद अरहर, सोयाबीन, कपास और गन्ने का क्षेत्रफल घटना सामान्य स्थिति नहीं हैं। वहीं खाद्यान्न फसलों का बढ़ता रकबा, केंद्रीय पूल में गेहूं के स्टॉक का चार साल के उच्चतम स्तर पर होना और चावल का स्टॉक पिछले साल से भी अधिक होना, सुनिश्चित करता है कि इन उत्पादों की महंगाई नियंत्रण में रहेगी। हालांकि, जनरल महंगाई दर अभी भी चार फीसदी से आसपास बनी हुई है। यानी लोगों को स्वास्थ्य, परिवहन और शिक्षा जैसे सेवाओं के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है। सस्ते में उपज बेचे रहे किसानों पर यह दोहरी मार है। 

इस साल अच्छे मानसून की उम्मीद है। मानसून सीजन में 1 जून से 20 जुलाई तक दीर्घकालिक औसत (एलपीए) से 7.1 फीसदी अधिक बारिश हुई है। बेहतर रबी उत्पादन के चलते सरकार ने 300.35 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद की जो चाल साल का उच्चतम स्तर है। वहीं 1 जुलाई, 2025 को केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक 358.78 लाख टन रहा जो पिछले साल इसी समय 16 साल के निम्नतम स्तर पर आ गया था। गेहूं के पर्याप्त भंडार के कारण सरकार ने एमएसपी से थोड़ी अधिक कीमत पर ही ओपन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस) के तहत खुले बाजार में गेहूं बिक्री की घोषणा की है। 

उधर, सोयाबीन और अरहर की कीमत मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की मंडियों में 4300 रुपये और 6500 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास चल रही है। जबकि चालू खरीफ सीजन (2025-26) के लिए सोयाबीन का एमएसपी 5328 रुपये प्रति क्विंटल और अरहर का एमएसपी 8000 रुपये प्रति क्विंटल है। सोयाबीन और अरहर का यह हाल तब है जबकि देश में दलहन व तिलहन की कमी है और हम इनके आयात पर निर्भर हैं। 

पिछले वित्त वर्ष (2024-25) के दौरान देश में 72.56 लाख टन दालों और 164.13 लाख टन खाद्य तेलों का आयात किया गया था। यह आयात शून्य सीमा शुल्क या आयात शुल्क घटाकर सस्ती कीमतों पर किया गया। सरकार ने 31 मार्च, 2026 तक अरहर, उड़द और पीली मटर का  शुल्क मुक्त आयात करने की अनुमति दे रखी है। वहीं, मसूर और चना पर केवल 10 फीसदी का सीमा शुल्क है। इसके चलते अफ्रीकी देशों से अरहर का आयात 4600 से 5100 रुपये प्रति क्विंटल हो रहा है जबकि कनाडा और रूस से आयातित पीली मटर की कीमत केवल 3100 रुपये प्रति क्विंटल चल रही है। 31 मई, 2025 से सरकार ने क्रूड सोयाबीन, क्रूड पॉम और सूरजमुखी तेल पर सीमा शुल्क को 27.5 फीसदी से घटाकर 16.5 फीसदी कर दिया है। इससे खाद्य तेलों के सस्ते आयात का रास्ता खुल गया है। 

ये सब उपाय खाद्य महंगाई कम करने की सरकार की रणनीति का हिस्सा हैं जो किसानों पर भारी पड़ रहे हैं। जून के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल के मुकाबले इस माह में सब्जियों की कीमतों में 19 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। जबकि टमाटर की कीमतें 31.5 फीसदी, प्याज की कीमतें 26.6 फीसदी और दालों की कीमतें 25.1 फीसदी कम हुई। इस तरह महंगाई को छह साल के निचले स्तर पर लाना संभव हुआ है। लेकिन इसके लिए जरूरी नहीं है कि उत्पादन अधिक हुआ हो। जहां उत्पादन कम है और आयात पर निर्भरता है, वहां सस्ते आयात को माध्यम बनाया गया है।

महंगाई तो काबू में हुई है लेकिन इसका असर किसानों की आय भी कम हो गई है। तमाम आर्थिक सिद्धांतों में कहा गया है कि उत्पादक को बढ़ती कीमतों का इंसेंटिव उसे प्राेत्साहित करता है। इसलिए जब कई फसलों की कीमतें एमएसपी से नीचे चल रही हैं तो किसान मायूस है। बेहतर मानसून के बावजूद कई फसलों का रकबा होने का सीधा अर्थ है कि उनमें किसानों की दिलचस्पी घट रही है। यही स्थिति तिलहन के मामले में भी है। 

सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक की रणनीति कृषि उपज की कीमतों में कमी लाकर महंगाई रोकने में है। इसके लिए सस्ते आयात से लेकर निर्यात प्रतिबंधों का सहारा लिया जाता है। ऐसे में गैर-कृषि क्षेत्रों और उपभोक्ताओं का पलड़ा किसानों के मुकाबले भारी है और नीतिगत फैसलों में उनको किसानों के मुकाबले अधिक प्राथमिकता दी जाती है। इसलिए महंगाई दर का छह साल के निचले स्तर पर होना इन वर्गों के लिए तो बेहतर संकेत है, लेकिन किसानों के लिए यह मुश्किल स्थिति है। वैसे दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं अमेरिका और ब्रिटेन में जून की महंगाई दर 2.7 फीसदी और 3.6 फीसदी रही। वहीं इन देशों में खाद्य महंगाई दर तीन फीसदी और 4.5 फीसदी रही जबकि भारत में यह 1.1 फीसदी के निगेटिव स्तर पर रही है। 

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