पर्यावरण अनुकूल खेती और अधिक उत्पादकता सुनिश्चित करने में मददगार बायोस्टिमुलेंट

बायोस्टिमुलेंट कोई नई बात नहीं है। इनके उपयोग का एक लंबा और समृद्ध इतिहास है। मध्यकालीन आयरलैंड, नॉरमैंडी और चैनल द्वीप समूह में 12वीं शताब्दी से ही सूखे समुद्री शैवाल, जिसे अक्सर "रैक" कहा जाता है, के उपयोग का वर्णन मिलता है। इसका उपयोग खेतों में मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए किया जाता था, खासकर पोषक तत्वों की कमी वाली मिट्टी पर।

पर्यावरण अनुकूल खेती और अधिक उत्पादकता सुनिश्चित करने में मददगार बायोस्टिमुलेंट

बायोस्टिमुलेंट इन दिनों गलत कारणों से चर्चा में हैं। नियामक के बढ़ते दबाव और फंडिंग में कमी ने किसानों, कंपनियों और नीति निर्माताओं के सामने जवाबों से ज्यादा सवाल खड़े कर दिए हैं। कुछ के लिए ये चमत्कारी इलाज हैं, तो कुछ के लिए मार्केटिंग का दिखावा। फिर भी इस शोर के पीछे एक साधारण सी सच्चाई छिपी है- बायोस्टिमुलेंट कोई रामबाण इलाज नहीं हैं। ये व्यावहारिक, विज्ञान-आधारित टूल हैं जो किसानों की क्षमता बढ़ाने, पोषक तत्वों के उपयोग की दक्षता में सुधार लाने और उत्पादों के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद कर सकते हैं।

इस लेख में यह समझाने का प्रयास किया गया है कि बायोस्टिमुलेंट क्या हैं, उनकी श्रेणियां, सक्रिय तत्व, नवाचार, भारत में उनका उपयोग, बाजार की संभावनाएं क्या हैं। यह सभी को स्वयं उत्तर खोजने के लिए कुछ दिशा प्रदान करता है।

बायोस्टिमुलेंट क्या हैं?

बायोस्टिमुलेंट कोई नई बात नहीं है। इनके उपयोग का एक लंबा और समृद्ध इतिहास है। मध्यकालीन आयरलैंड, नॉरमैंडी और चैनल द्वीप समूह में 12वीं शताब्दी से ही सूखे समुद्री शैवाल, जिसे अक्सर "रैक" कहा जाता है, के उपयोग का वर्णन मिलता है। इसका उपयोग खेतों में मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए किया जाता था, खासकर पोषक तत्वों की कमी वाली मिट्टी पर। आधुनिक समय में 1947 में मैक्सीक्रॉप कंपनी ने पहला औद्योगिक तरल समुद्री शैवाल उर्वरक पेश किया, जिससे कृषि में समुद्री शैवाल-आधारित बायोस्टिमुलेंट की औपचारिक शुरुआत हुई।

पौधों और मृदा स्वास्थ्य में सुधार के लिए पंचगव्य, जीवामृत, बीजामृत जैसे पादप और सूक्ष्मजीवी मिश्रणों का उपयोग भारत में कोई नई बात नहीं है। सुरपाल (लगभग 10वीं शताब्दी ई.) द्वारा रचित वृक्षायुर्वेद बीज के चयन, मृदा की तैयारी, सिंचाई और पोषण सहित पादप जीवन का एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है। इसमें फसल स्वास्थ्य, "मृदा को जागृत करने" और "बीज शक्ति" में सुधार के लिए कुणापजला का वर्णन किया गया है।

उर्वरक नियंत्रण आदेश (एफसीओ) गाइडलाइंस (2021) बायोस्टिमुलेंट को ऐसे पदार्थ या सूक्ष्मजीवों के रूप में परिभाषित करते हैं, जिनमें पोषक तत्व और कीटनाशक शामिल नहीं हैं, जो पोषक तत्वों के अवशोषण, पोषक तत्वों के उपयोग की दक्षता, अजैविक (एबायोटिक) स्ट्रेस के प्रति सहनशीलता और फसल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्राकृतिक पादप प्रक्रियाओं को स्टिमुलेट करते हैं। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि ये सीधे कीटों को नियंत्रित नहीं करते या उर्वरक के रूप में कार्य नहीं करते हैं। इसके बजाय ये बेहतर प्रदर्शन के लिए पादप और मृदा विज्ञान के साथ मिलकर काम करते हैं।

एआई (सक्रिय तत्व) आज और कल

जैविक उत्पाद तेजी से बढ़ रहे हैं और बायोस्टिमुलेंट सबसे तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में से एक हैं। जैसे-जैसे पौधों और मृदा स्वास्थ्य का महत्व बढ़ रहा है, वैश्विक स्तर पर इनोवेशन में तेजी आ रही है। हालांकि विशिष्ट बायोस्टिमुलेंट पेटेंट के आंकड़े सीमित हैं, फिर भी एग्रीटेक पेटेंट एक मजबूत परिदृश्य प्रस्तुत करता है। अमेरिका अब भी इसमें अग्रणी बना हुआ है, लेकिन वहां वृद्धि दर धीमी होने लगी है, जबकि भारत और चीन में इनका तेजी से विकास हो रहा है। (डब्ल्यूआईपीओ एग्रीफूड टेक पेटेंट लैंडस्केप रिपोर्ट)।

वर्तमान प्रमुख सक्रिय तत्व

-समुद्री शैवाल के अर्क से पॉलीसैकेराइड और हार्मोन

-प्रोटीन हाइड्रोलाइजेट से अमीनो एसिड और पेप्टाइड

-मृदा कार्बनिक पदार्थों से ह्यूमिक और फुल्विक एसिड

-सूक्ष्मजीव इनोक्युलेंट (जैसे बैसिलस, ट्राइकोडर्मा, स्यूडोमोनास)

-पौधों की प्रतिरक्षा के लिए चिटोसन

उभरती अगली पीढ़ी के सक्रिय तत्व

-टारगेटेड सिग्नलिंग के साथ सेकंडरी मेटाबोलाइट्स (फेनोलिक्स, एल्कलॉइड, टेरपेनॉइड)

-विशिष्ट पादप रक्षा तरीकों को सक्रिय करने वाले पेप्टाइड

-मल्टी स्ट्रेस रेजिलिएंस के लिए डिजाइन किए गए इंजीनियर्ड माइक्रोबियल कंसोर्टिया

-उपज में वृद्धि के लिए फसल-विशिष्ट सिग्नलिंग मॉलीक्यूल

यह क्यों महत्वपूर्ण है: परिभाषित सक्रिय तत्वों की ओर बढ़ने से यांत्रिक स्पष्टता, अधिक सुसंगत परिणाम और नियामक स्वीकृति में आसानी होती है।

भारत में बायोस्टिमुलेंट्स की वृद्धि दर बेहद अच्छी है। जलवायु संबंधी मुद्दों, कार्बन फुटप्रिंट और स्वच्छ एवं पौष्टिक भोजन की उपभोक्ता मांग के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण इस वृद्धि को और बल मिलने की उम्मीद है। उच्च-मूल्य वाली बागवानी फसलों के उत्पादक, जो अच्छी-गुणवत्ता वाली फसलें चाहते हैं, इन्हें सबसे तेजी से अपना रहे हैं। अन्य लोग पोषक तत्व-उपयोग दक्षता (एनयूई) में सुधार की आवश्यकता को देखते हुए इसे अपना रहे हैं।

इनोवेशन के अवसर क्या हैं?

इनोवेशन-केंद्रित कंपनियां सक्रिय अवयवों के साथ-साथ फॉर्मूलेशन की रीइमेजिंग पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। हम फिलहाल कम "बड़े दावों" और अधिक सटीकता की उम्मीद कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, "अम्लीय मिट्टी में फॉस्फोरस अवशोषण में 20% की वृद्धि" बनाम "पौधों की वृद्धि में सुधार"।

1. परिभाषित सक्रिय तत्व: कार्य के स्पष्ट तरीकों के साथ मानकीकृत मेटाबोलाइट-आधारित बायोस्टिमुलेंट

2. हाइब्रिड उत्पाद: सूक्ष्मजीवी और बायोकेमिकल सक्रिय तत्वों का संयोजन।

3. फसल और मृदा-विशिष्ट फॉर्मूलेशन: मृदा स्वास्थ्य पर आधारित डेटा-संचालित पर्सनलाइजेशन

4. डिजिटल कृषि के साथ एकीकरण: सटीक खुराक के लिए बायोस्टिमुलेंट के उपयोग को उपग्रह/आईओटी आधारित निगरानी से जोड़ना।

किसानों और उपभोक्ताओं को क्या जानने की जरूरत है?

किसानों के लिए: बायोस्टिमुलेंट अच्छे कृषि-विज्ञान का विकल्प नहीं हैं, वे केवल संवर्द्धक हैं। न ही वे उर्वरकों या कीटनाशकों की जगह लेने के लिए हैं। किसानों को प्रमाणित आंकड़ों के आधार पर उत्पादों का चयन करना चाहिए। बायोस्टिमुलेंट के प्रकार को फसल और समस्या (स्ट्रेस, पोषक तत्वों का अवरोध, गुणवत्ता) के अनुसार चुनने की जरूरत है।

उपभोक्ताओं के लिए: बायोस्टिमुलेंट सिंथेटिक इनपुट लोड को कम कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से खाद्य पदार्थों के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है। वे डिफॉल्ट रूप से "ऑर्गेनिक" नहीं होते, वे "बायोलॉजिकल" या "बायो-आधारित" होते हैं। ये दो अलग अवधारणाएं हैं।

उद्योग के लिए क्या?

परिभाषित सक्रिय तत्वों के लिए यांत्रिक अनुसंधान एवं विकास में निवेश करें। अतिरेक दावों से बचें और मापने योग्य परिणामों पर ध्यान केंद्रित करें। बाजार और जलवायु परिवर्तनों से हेजिंग के लिए पोर्टफोलियो में विविधता लाएं। कृषि वैज्ञानिकों और डीलरों को मिट्टी और फसल की स्थिति के आधार पर बायोस्टिमुलेंट की सिफारिश करने के लिए प्रशिक्षित करें। किसानों में विश्वास बनाने के लिए प्रमुख कृषि-क्लस्टर में प्रदर्शनी लगाएं।

निष्कर्षः बायोस्टिमुलेंट कोई हाइप नहीं, ये किसानों के लिए एक जरूरी औजार हैं। आने वाले समय में वैश्विक स्तर पर नियामकीय जरूरतें कड़ी होंगी, लेकिन यह कोई मौत की घंटी नहीं है। यह क्षेत्र धीरे-धीरे जेनरिक, "मी-टू" उत्पादों से आगे बढ़कर लक्षित, परिभाषित और उच्च-प्रभाव वाले समाधानों की ओर बढ़ेगा। किसानों के लिए ये कम लागत में उच्च उत्पादकता का मार्ग प्रस्तुत करते हैं। कृषि-इनपुट उद्योग के लिए ये ऊंचे ग्रोथ वाला विविधीकरण हैं। नीति निर्माताओं के लिए ये जलवायु, खाद्य सुरक्षा और सस्टेनेबिलिटी के लक्ष्यों को प्राप्त करने का आवश्यक साधन हैं।

(डॉ. रेणुका दीवान बायोप्राइम की सह-संस्थापक और सीईओ हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)

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