10 प्रमुख कृषि वैज्ञानिकों ने जीएम सरसों पर लगी रोक हटवाने के लिए पीएम मोदी को पत्र लिखा
डॉ. आर.एस. परोदा, डॉ. जी. पद्मनाभन, प्रो. आर.बी. सिंह और डॉ. बी.एस. ढिल्लों जैसे प्रमुख वैज्ञानिकों ने चिंता जताई कि 2022 से जीएम सरसों को मंजूरी मिलने के बाद से देश ने दो महत्वपूर्ण वर्ष गंवा दिए, जिससे किसान देशी तकनीक के लाभ से वंचित रह गये।

देश के 10 जाने-माने कृषि वैज्ञानिकों (जिनमें तीन पद्मभूषण और दो पद्मश्री सम्मानित शामिल हैं) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर आनुवंशिक रूप से परिवर्तित (जीएम) सरसों पर लगी रोक को तत्काल हटाने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने 25 अक्टूबर 2022 को जीएम सरसों (जिसमें पहला हाइब्रिड DMH-11 भी शामिल है) के एनवॉयरनमेंट रिलीज को मंजूरी दी थी, जिसके बाद आईसीएआर द्वारा परीक्षण और अध्ययन होने थे। लेकिन एक जनहित याचिका के बाद 3 नवंबर 2022 को सर्वोच्च न्यायालय की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने मौखिक आदेश के माध्यम से इन परीक्षणों पर रोक लगा दी। अगस्त 2024 में अदालत ने विभाजित निर्णय दिया, जिससे इस मामले पर अनिश्चितता और स्थगन आदेश जारी रहा।
डॉ. आर.एस. परोदा, डॉ. जी. पद्मनाभन, प्रो. आर.बी. सिंह और डॉ. बी.एस. ढिल्लों जैसे प्रमुख वैज्ञानिकों ने चिंता जताई कि 2022 से जीएम सरसों को मंजूरी मिलने के बाद से देश ने दो महत्वपूर्ण वर्ष गंवा दिए, जिससे किसान देशी तकनीक के लाभ से वंचित रह गये। उन्होंने आगाह किया कि यदि 2025 का बुवाई सीजन भी निकल गया तो जीएम सरसों से जुड़े महत्वपूर्ण आंकड़े, नए संकरण विकास और किसानों के लिए कमर्शियल रिलीज का एक और सीजन व्यर्थ चला जाएगा।
अपने पत्र में वैज्ञानिकों ने उल्लेख किया कि भारत कृषि जैव प्रौद्योगिकी में वैश्विक उपलब्धियां हासिल कर चुका है। आईसीएआर द्वारा विश्व में पहली बार जीनोम-संपादित चावल की दो किस्में जारी की गई हैं। लेकिन अक्टूबर 2022 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी के बावजूद जीएम सरसों पर प्रगति रुकी हुई है।
वरिष्ठ वैज्ञानिकों का कहना है कि जीएम सरसों में प्रयुक्त जीन को कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में दशकों से रेपसीड में सुरक्षित रूप से अपनाया गया है। भारत में सरसों पर किए गए सभी जैव-सुरक्षा परीक्षणों में भी कोई नकारात्मक असर नहीं पाया गया।
उन्होंने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि जीएम सरसों पर लगे स्टे हो हटवाने के लिए कानूनी टीम और संबंधित मंत्रालयों को समन्वित प्रयास करने चाहिए। जीएम फसलों के लिए नीतिगत ढांचा पहले से मौजूद है, और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के फैसले को लागू कराना देश में सरसों की उत्पादकता बढ़ाने और भारत को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए आवश्यक है।
अपील पर हस्ताक्षर करने वाले प्रमुख वैज्ञानिक हैं:
- डॉ. आर.एस. परोदा, पूर्व महानिदेशक, आईसीएआर एवं अध्यक्ष, ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (TAAS)
- डॉ. जी. पद्मनाभन, पूर्व निदेशक, आईआईएससी बेंगलुरु
- प्रो. आर.बी. सिंह, पूर्व निदेशक, आईएआरआई एवं पूर्व एडीजी, एफएओ एशिया-प्रशांत
- डॉ. बी.एस. ढिल्लों, पूर्व कुलपति, पीएयू लुधियाना
- डॉ. सी.डी. माई, पूर्व अध्यक्ष, एएसआरबी
- डॉ. सुधीर सोपोऱी, पूर्व कुलपति, जेएनयू
- डॉ. एन.के. सिंह, राष्ट्रीय प्रोफेसर, बी.पी. पाल चेयर (आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन)
- डॉ. अशोक के. सिंह, पूर्व निदेशक, आईसीएआर-आईएआरआई, नई दिल्ली
- डॉ. अनुपम वर्मा, पूर्व अध्यक्ष, वर्ल्ड सोसाइटी फॉर वायरोलॉजी एवं पूर्व राष्ट्रीय प्रोफेसर, आईसीएआर
- डॉ. जे.एल. करिहलू, पूर्व निदेशक, आईसीएआर-एनबीपीजीआर, नई दिल्ली