भेड़-बकरियों में फैल रही फुट रॉट बीमारी, लुवास ने जारी की एडवाइजरी

फुट रॉट (पैर सड़न) रोग विशेष रूप से हरियाणा के हिसार, भिवानी, जींद और राजस्थान के सीमावर्ती जिलों चूरू व हनुमानगढ़ में अधिक पाया गया है ।

भेड़-बकरियों में फैल रही फुट रॉट बीमारी, लुवास ने जारी की एडवाइजरी
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हरियाणा के कई जिलों में भेड़ और बकरियों में फुट रॉट (पैर सड़न) नामक संक्रामक बीमारी फैल रही है। रोग के बढ़ते मामलों को देखते हुए लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास), हिसार ने पशुपालकों के लिए महत्वपूर्ण सलाह जारी की है।

विश्वविद्यालय के पशु जन-स्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजेश खुराना ने बताया कि विश्वविद्यालय की विशेषज्ञ टीमें लगातार फील्ड में सक्रिय हैं और प्रभावित पशुओं की जांच व उपचार कर रही हैं। हाल के मानसून सीजन में गीले व कीचड़युक्त वातावरण के कारण फुट रॉट बीमारी के तेजी से फैलने की आशंका बढ़ गई है।

यह रोग मुख्यतः Dichelobacter nodosus और Fusobacterium necrophorum नामक जीवाणुओं के संक्रमण से उत्पन्न होता है, जो पशुओं के खुरों (हूफ़) की ऊपरी सतह तथा इंटरडिजिटल (ऊँगली-के बीच का हिस्सा) त्वचा को प्रभावित करते हैं। यदि समय पर इसका उपचार न किया जाए, तो इससे पशुओं में लंगड़ापन, तेज दर्द और दूध व ऊन उत्पादन में भारी गिरावट हो सकती है।

रोग के लक्षण

फुट रॉट के प्रमुख लक्षणों में चलने-फिरने में कठिनाई, खुरों के आसपास सूजन व लालिमा, दुर्गंधयुक्त सड़न, खुर की ऊपरी सतह का अलग होना और कभी-कभी बुखार व बेचैनी देखी जाती है।

हरियाणा सरकार की ओर जारी विज्ञप्ति के अनुसार, फुट रॉट (पैर सड़न) रोग विशेष रूप से हरियाणा के हिसार, भिवानी, जींद और राजस्थान के सीमावर्ती जिलों चूरू व हनुमानगढ़ में अधिक पाया गया है ।

पशुपालकों को सलाह

लुवास द्वारा पशुपालकों को सलाह दी गई है कि

  • पशुओं के रहने-स्थान को नियमित रूप से साफ और सूखा रखें।
  • नियमित फुट-बाथ: जिसमें 10% जिंक सल्फेट, 4 % फॉर्मेलिन या 5 % लाल दवा के घोल से खुरों की सफाई करें
  • संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें, खुरों की नियमित सफाई करें और घावों को मक्खियों-कीटों से सुरक्षित रखें
  • बीमारी के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करें

डॉ. खुराना ने यह भी बताया कि विश्वविद्यालय की टीमें पी.पी.आर., चिचड़ी जनित रोग और आंतरिक परजीवियों से होने वाले अन्य संक्रामक रोगों की भी पहचान कर रहीं हैं और पशुपालकों को समय पर रोकथाम व बचाव संबंधी जानकारी प्रदान की जा रही है। फुट रॉट बीमारी से संबंधित लुवास के वैज्ञानिक डॉ रमेश और डॉ पल्लवी ने पशुपालकों से अपील की है कि वे इस बीमारी को फैलने से रोकने हेतु स्वच्छता, जैव-सुरक्षा एवं आवश्यक सतर्कता बरतें।

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