ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (TAAS) के चेयरमैन डॉ.आर.एस. परोदा ने छोटी जोत वाले किसानों के हिसाब से नीतियों और रिसर्च की जरूरत बताई है। मीडिया प्लेटफॉर्म 'रूरल वॉयस' के पांच वर्ष पूरे होने पर नई दिल्ली में आयोजित 'रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव एंड अवार्ड्स 2025' को संबोधित करते हुए कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग (DARE) के पूर्व सचिव एवं ICAR के पूर्व डायरेक्टर जनरल पद्म भूषण डॉ. परोदा ने कहा कि आत्मनिर्भरता के लिए किसानों को भी विकल्प तलाशना पड़ेगा। डॉ. परोदा इस वर्ष रूरल वॉयस अवार्ड्स के लिए बनी जूरी के भी चेयरमैन थे।
उन्होंने कहा कि कृषि से जुड़े मंत्रालयों की संख्या सात हो गई है, लेकिन उनमें आपस में मिलकर काम करने का अभाव है। भारत की कृषि और किसान कल्याण के लिए एक नीति होनी चाहिए। उन्होंने सब्सिडी की जगह इन्सेंटिव की व्यवस्था लाने और पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप को मजबूत करने का सुझाव दिया। साथ ही, एक्सटेंशन सिस्टम को मजबूत बनाने की भी जरूरत बताई।
डॉ. परोदा के अनुसार, किसानों की बात सुनने का भी एक माध्यम होना चाहिए। जरूरी नहीं कि जब किसान सड़क पर आएं तभी उनकी बात सुनी जाए। कृषि राज्य के अधिकार में भी आता है, इसलिए ऐसे मामलों में आपसी समन्वय की जरूरत है। उन्होंने जीएसटी काउंसिल की तर्ज पर कृषि के लिए भी एक काउंसिल गठित करने का सुझाव दिया।
कॉन्क्लेव को भारतीय कृषि जगत से जुड़ी कई शख्सीयतों ने संबोधित किया। नीति आयोग के सदस्य और कृषि अर्थशास्त्री प्रो. रमेश चंद ने किसानों से बिना न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) वाली फसलों की ओर जाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि एमएसपी वाली फसलों की ग्रोथ रेट पिछले एक दशक में 1.8 प्रतिशत रही जबकि बिना एमएसपी वाली फसलों की ग्रोथ 4 प्रतिशत के आसपास है।
उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र के विकास में सरकार की भूमिका अवश्य है, लेकिन क्या किसान अपने स्तर पर कुछ ऐसे कदम उठा सकते हैं जिनके लिए अभी उन्हें सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसा करने पर ही किसान आत्मनिर्भर हो सकेंगे।
प्रो. रमेश चंद ने कहा कि एक दशक में कृषि विकास दर 4.6 प्रतिशत रही, लेकिन घरेलू मांग दो फीसदी के आसपास बढ़ रही है। ऐसे में सरप्लस उत्पादन का क्या किया जाए। देश में एक संपन्न वर्ग बढ़ रहा है, जिसकी क्रय क्षमता अच्छी है। उनकी मांग के हिसाब से फसल उपजाने पर किसानों को कई गुना कीमत मिल सकती है। इसके लिए पूरी वैल्यू चेन विकसित करने की जरूरत है।
कृषि योजना में समग्र खाद्य प्रणाली को महत्व देने की बात कहते हुए उन्होंने कहा कि आज दुनिया में कृषि योजना का आधार फूड सिस्टम की ओर बढ़ रहा है। इसमें बीज से लेकर मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन समेत पूरी वैल्यू चेन को शामिल किया जाता है। वैल्यू चेन से जुड़ने पर आमदनी भी बढ़ती है।
कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग (DARE) के सचिव और आईसीएआर (ICAR) के डायरेक्टर जनरल डॉ.एम.एल. जाट ने कहा कि विकसित भारत की कल्पना में आत्मनिर्भर किसान अहम हैं। उन्होंने इनोवेशन, स्पेशलाइज्ड फार्मिंग, स्किल डेवलपमेंट, मार्केट लिंकेज, सब्सिडी की जगह इन्सेंटिव और टेक्नोलॉजी तथा मार्केट ड्रिवन कृषि को बढ़ावा देने की बात कही। उन्होंने कहा कि इनोवेशन किसान की उत्पादकता बढ़ाने और खर्च घटाने में मदद करेगा।
डॉ. जाट ने सब्सिडी की जगह इन्सेंटिव की व्यवस्था अपनाने की जरूरत बताई, क्योंकि सब्सिडी से किसानों की फसल चुनने की क्षमता कम होती है। उन्होंने कहा कि जिन किसानों की आय बढ़ रही है, वे डाइवर्सिफिकेशन कर रहे हैं या मार्केट से जुड़े हैं। हमें मार्केट ड्रिवन कृषि की ओर जाने की जरूरत है। स्पेशलाइज्ड फार्मिंग जोन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि फसल और क्षेत्र के हिसाब से जोन विकसित किए जाएं, वहीं फैक्ट्रियां और रिसर्च संस्थान हों तो किसानों को उनकी उपज की अच्छी कीमत मिलेगी। तब उन्हें एमएसपी की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।
आईसीएआर प्रमुख ने रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करने के लिए जैव-उर्वरकों को अपनाने के साथ मिट्टी, जैव-विविधता, पर्यावरण को संजोने की बात भी कही। टेक्नोलॉजी तो है लेकिन किसान तक नहीं पहुंच रहा है। इसलिए टेक्नोलॉजी टार्गेटिंग और स्किल डेवलपमेंट अहम है।