केंद्र सरकार देश की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में व्यापक बदलाव के लिए नया कानून लाने जा रही है, जिससे यह योजना पूरी तरह बदल जाएगी।
कैबिनेट की मंजूरी के बाद 'विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक 2025' (VB-G RAM G बिल) संसद में पेश किया जाएगा, जिसे आम बोलचाल में 'जी राम जी' योजना कहा जा रहा है। नए विधेयक में ग्रामीण परिवारों को सालाना 100 की जगह 125 दिनों की रोजगार गारंटी देने का प्रावधान है। लेकिन मुख्य कृषि सीजन यानी कटाई-बुवाई के चरम दिनों में 60 दिनों का 'पॉज' रहेगा, जिससे खेतों में मजदूरों की कमी न हो।
योजना में सबसे अहम बदलाव यह है कि इसे केंद्र और राज्यों के बीच खर्च की हिस्सेदारी से जोड़ दिया गया है और अब केवल केंद्र द्वारा पूरा खर्च नहीं उठाया जाएगा। यह प्रावधान प्रस्तावित कानून की सबसे कमजोर कड़ी साबित हो सकता है।
मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटाने को लेकर राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। कांग्रेस ने इसकी कड़ी आलोचना करते हुए कहा मनरेगा से गांधीजी का नाम हटाना अनावश्यक और योजना को कमजोर करने की साजिश है। विपक्षी दल योजना को मांग की बजाय आपूर्ति आधारित बनाने को गरीब व मजदूर विरोध कदम बता रहे हैं।
आलोचकों का आरोप है कि नया बिल मांग आधारित सिद्धांत को खत्म कर देगा, यानी अब मजदूरों को मांग करने पर काम नहीं मिलेगा, बल्कि सरकार तय करेगी कि कब और कितना काम उपलब्ध कराना है। यह ग्रामीणों के लिए रोजगार का कानूनी अधिकार खत्म करने जैसा है।
राज्यों पर बढ़ेगा वित्तीय बोझ
नई योजना के फंडिंग पैटर्न (60:40) से राज्यों पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा, जबकि केंद्र सरकार की जिम्मेदारी कम होगी। राज्यों पर वित्तीय बोझ बढ़ने से नई योजना का क्रियान्वयन प्रभावित हो सकता है। अभी तक मनरेगा की मजदूरी का पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाती थी और ग्रामीण रोजगार एक गारंटी के तौर पर लागू किया जा रहा था। अब यह केंद्रीय योजना के तौर पर लागू होगा, जिसका 40 फीसदी खर्च राज्यों को उठाना पड़ेगा। हालांकि, पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों की हिस्सेदारी 10 फीसदी होगी।
संसद में पेश होने की संभावना
विधेयक की कॉपी लोकसभा सदस्यों में वितरित की जा चुकी है और चालू सत्र में इसे संसद में पेश किया जा सकता है। सरकार का दावा है कि यह बदलाव ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा और विकसित भारत के विजन को साकार करेगा। कहा जा रहा है कि यह विधेयक मनरेगा की कमियों को दूर करेगा और इसे केवल एक 'राहत योजना' की बजाय 'विकास मिशन' के रूप में स्थापित करेगा।
आजीविका पर जोर
नए कानून को ग्रामीण परिवारों की आजीविका तथा 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य से जोड़ा गया है। जिसमें चार प्रमुख क्षेत्रों—जल संरक्षण, सड़कें, ग्रामीण आवास और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस रहेगा। सरकार का तर्क है कि मनरेगा 2005 की परिस्थितियों के लिए बनी थी और तब से अब तक ग्रामीण भारत काफी बदल चुका है।
नई योजना में कृषि-आधारित कार्यों, आजीविका के स्थायी स्रोतों और ग्रामीण बुनियादी ढांचे का विकास शामिल करने का प्रस्ताव है। नए विधेयक में यह भी बताया गया है कि योजना को केवल 'काम देने' तक सीमित न रख कर ग्रामीण समुदाय की आजीविका सुरक्षा और विकास से जोड़ा जाएगा।
मनरेगा देश की प्रमुख कल्याणकारी योजना रही है, जिसने कोविड-19 जैसे संकट के समय करोड़ों परिवारों को संकट के समय सहारा दिया। वित्त वर्ष 2025-26 में मनरेगा के लिए 86 हजार करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया है।
सरकार का दावा है कि मनरेगा गरीबी को कम करने के मकसद से चलाई गई थी लेकिन ताजा आंकड़ों में राज्यों मेंं गरीबी का स्तर काफी घट गया है। इसलिए अब इस योजना को नये उद्देश्य के साथ चलाया जाएगा। मनरेगा के जरिये ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक बड़ी राशि जाती थी जिसकी नये कानून में संभावना कम रह जाएगी।
वहीं केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय हिस्सेदारी से चलने वाली योजनाओं की सफलता को लेकर भी सवाल खड़े होते रहे हैं। ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का जो फायदा देश के गरीब लोगों और पिछड़े व आदिवासी इलाकों में पहुंचा, उसका ही असर है कि सरकार ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी में कमी आने के आंकड़े पेश करने की स्थिति में है।