केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार फील्ड में किसानों के बीच जाकर उनके साथ संवाद कर रहे हैं। इसके लिए ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ जैसी अभूतपूर्व पहल की गई। नकली खाद-बीज और कीटनाशकों की बिक्री के खिलाफ उन्होंने कड़ा रुख अपनाया है। साथ ही, खेती की बुनियादी चुनौतियों का हल निकालने के प्रयास किए जा रहे हैं। कृषि और किसानों से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर रूरल वर्ल्ड तथा रूरल वॉयस के एडिटर-इन-चीफ हरवीर सिंह ने केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान से खास बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश:
-विकसित कृषि संकल्प अभियान’ के तहत आप देश भर में किसानों के बीच गये। कैसा अनुभव रहा और आगे का क्या रास्ता है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन और नेतृत्व में पिछले वर्षों में कृषि क्षेत्र में अद्भुत काम हुआ है। खाद्यान्न उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई। देश में अन्न भंडार भरे हुए हैं। लेकिन कुछ चुनौतियां भी हैं। दलहन, तिलहन, कपास के उत्पादन को बढ़ाना है। प्राकृतिक खेती की दिशा में हमें मजबूती से कदम बढ़ाना है। उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ लागत घटाना भी उतना ही जरूरी है, ताकि खेती लाभकारी बन सके। इसलिए वैज्ञानिक शोध और अनुसंधान, जो लैब में होता है, उसको लैंड तक पहुँचाने का निर्णय लिया।
'विकसित कृषि संकल्प अभियान' के माध्यम से हमने वैज्ञानिकों को किसानों के बीच भेजा और लैब को लैंड से जोड़ने का काम किया। यह एक ऐतिहासिक पहल है। वैज्ञानिकों की 2100 से अधिक टीमों ने देश भर में गांव-गांव तक पहुंचकर 1.35 करोड़ से ज्यादा किसानों से सीधा संवाद किया। प्रधानमंत्री के ‘लैब टू लैंड’ से प्रेरणा लेकर 60 हजार से ज्यादा गांवों तक वैज्ञानिकों की टीमें पहुंचीं।
इस अभियान के जरिए हमें 500 ऐसे विषय मिले हैं जिन पर आज शोध की जरूरत है। अब वैज्ञानिक लैब में, किसानों की जो समस्याएं हैं, उसके आधार पर शोध करेंगे। 300 नवाचार किसानों ने भी किए हैं। उन नवाचारों को भी वैज्ञानिक रूप दिया जाएगा। इस अभियान का उद्देश्य बहुत उपयोगी और व्यापक है। अभियान के जरिए प्राप्त जानकारी से किसानों की जिंदगी बदलेगी, साथ ही देश में अन्न, फल और सब्जियों के भंडार भी भरेंगे।
अभियान के दौरान कई महत्वपूर्ण बातें हमें पता चलीं, जो अब आगे का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं। यह अभियान थमेगा नहीं। हम लगातार किसानों के बीच जाकर खेती को उन्नत और किसानों को समृद्ध बनाने का प्रयत्न करते रहेंगे। महत्वपूर्ण बात यह है कि कृषि अनुसंधान की दिशा अब किसानों की आवश्यकता के आधार पर तय होगी। खेती की वर्तमान जरूरत के अनुसार ही वैज्ञानिकों को अनुसंधान करने के निर्देश दिए गए हैं। साथ ही फसलवार और क्षेत्रवार सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं।
-रबी सीजन के लिए विकसित कृषि संकल्प अभियान की क्या तैयारियां हैं?
रबी की फसल के लिए भी ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ के तहत वैज्ञानिकों की टीम किसानों के गांव-गांव जाएगी और उन्हें खेती व शोध की सही जानकारी देगी। किसान भाइयों से संवाद का क्रम लगातार जारी है।
प्रधानमंत्री ने कहा है कि सरकार फाइल में नहीं, लोगों की लाइफ में दिखनी चाहिए। इसके लिए हम फिर से ग्राउंड पर निकलने वाले हैं। रबी फसल के लिए ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ की दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस नई दिल्ली में 15 और 16 सितंबर को आयोजित होगी और अभियान की औपचारिक शुरुआत 3 अक्टूबर, 2025 को विजय पर्व के साथ होगी। अभियान 3 अक्टूबर से 18 अक्टूबर धनतेरस के दिन तक चलेगा। इस संबंध में हम राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी औपचारिक रूप से पत्र लिखेंगे और यह सुनिश्चित करने के लिए कहेंगे कि इस कॉन्फ्रेंस में राज्यों के कृषि मंत्रियों सहित कृषि विभाग के उच्च वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहें।
अभियान के दौरान किसानों को नए बीज, नई कृषि पद्धतियां, मैकेनाइजेशन के नए सिस्टम, जलवायु के अनुरूप वहां कौन-सी फसल ठीक होगी, मिट्टी में जो पोषक तत्व हैं, उसके हिसाब से कौन-सी फसल, फसल की कौन-सी किस्म वहां पैदा होगी, उसके बारे में एजुकेट करने का प्रयास किया जाएगा।
हमारे हजारों वैज्ञानिक, एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के कर्मचारी, अधिकारी, हमारे प्रगतिशील किसान और खुद कृषि मंत्रीगण फिर किसानों के बीच जाएंगे, ताकि रबी की फसल में हम लोग बेहतर तकनीक अपना सकें। यह सरकार खेतों से चलेगी, खलिहानों से चलेगी और किसानों के साथ बात करके चलेगी।
-नकली खाद, बीज और पेस्टीसाइड एक बड़ा मुद्दा है। इस पर कैसे अंकुश लगेगा?
सरकार किसानों को नकली खाद और कीटनाशकों से बचाने के लिए सख्त कदम उठा रही है। जिन कंपनियों के उत्पाद से फसल को नुकसान हुआ है, उनके लाइसेंस रद्द किए जा रहे हैं और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी। नकली खाद-बीज व कीटनाशक के नाम पर किसान लुटते रहे और हम देखते रहे, अब ऐसा बिल्कुल नहीं होगा! किसानों को धोखा देने वालों को छोड़ेंगे नहीं, पूरे देश में इसके विरुद्ध अभियान चलाएंगे।
नकली खाद और उर्वरक बनाने वालों के खिलाफ सरकार जल्द ही नया कानून लाकर सख्त कार्रवाई करेगी। राज्यों के साथ मिलकर हम अपने सिस्टम को इतना मजबूत बनाएंगे कि नकली उत्पाद बेचने वालों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई हो। अगर कहीं कुछ गलत हो रहा हो तो किसानों के हित में कड़ी कार्रवाई करना हमारा धर्म है। राज्य सरकारों से इस संबंध में सख्त कार्रवाई करने के लिए कहा गया है। साथ ही किसानों के बीच भी जागरूकता फैलाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
नकली खाद, बीज और पेस्टीसाइड पर अंकुश लगाने के लिए कड़ा कानून बनाने की प्रक्रिया पर तेजी से काम चल रहा है। जल्द ही ठोस कानून बनाकर ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी और दोषियों को जेल भेजा जाएगा।
-मध्य प्रदेश में घटिया हर्बिसाइड से सोयाबीन की फसल खराब होने की शिकायतें आई थीं। इसमें क्या कार्रवाई हुई?
मध्य प्रदेश में विदिशा, देवास और धार से सोयाबीन की फसल को एक खरपतवार नाशक से नुकसान होने की शिकायतें प्राप्त हुई थीं। मैंने खुद किसानों के खेतों में जाकर नुकसान का जायजा लिया और अधिकारियों को जांच कर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए। जांच में 20 में से 6 नमूने घटिया पाए गए। डिफॉल्टर कंपनी एचपीएम कैमिकल एंड फर्टिलाइजर्स लि. के विरुद्ध तीन जिलों में एफआईआर दर्ज की गई। विदिशा और देवास जिले के 9 डीलरों के लाइसेंस रद्द किए गए। साथ ही देवास में कंपनी के गोदाम का लाइसेंस भी रद्द किया गया। कृषि मंत्रालय की सिफारिश पर, राजस्थान के लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने भी उक्त कंपनी का विनिर्माण लाइसेंस निलंबित कर दिया है।
-आपने बायोस्टिमुलेंट को लेकर भी कड़ा रुख अख्तियार किया है। इन्हें लेकर क्या कदम उठाए गये हैं?
बायोस्टिमुलेंट के नाम पर, 30 हजार उत्पाद बिक रहे थे। किसान को पता ही नहीं कि इसका फायदा है या नहीं! इनकी गुणवत्ता क्या है। कई बार ये भी कह दिया कि एक-दो बोरी डीएपी चाहिए तो दो बोतल ये भी लो।
अब यह सुनिश्चित किया जाएगा कि प्रमाणित बायोस्टिमुलेंट ही किसानों तक पहुंचे। यदि कोई खाद के साथ कुछ और दवाई जबर्दस्ती बेचता है, तो यह भी गलत है। जिसके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होगी। राज्यों से भी इस संबंध में कठोर कदम उठाने के लिए कहा गया है।
किसानों के व्यापक हित में बायोस्टिमुलेंट का पंजीकरण 16 जून 2025 के बाद आगे नहीं बढ़ाने का निर्णय लिया है। 17 जून 2025 से सभी अनंतिम पंजीकरण अमान्य हो गए हैं। अब केवल 146 जैव-उत्तेजक उत्पाद ही अनुसूची-VI एफसीओ, 1985 में अधिसूचित किए गए हैं और शेष निर्माताओं/आयातकों को पूरी तरह से गुणवत्ता मानकों का पालन करना होगा। अन्यथा, कोई जैव-उत्तेजक उत्पाद बिक नहीं सकेंगे। इस संबंध में सभी सूचनाएं एवं अधिसूचनाएं कृषि विभाग की वेबसाइट पर “Biostimulants” सेक्शन में पूरी पारदर्शिता के साथ उपलब्ध कराई गई हैं।
हम किसी भी हालत में ऐसी चीजें बिकने नहीं देंगे, जिससे किसानों को कोई फायदा नहीं हो। जब तक आईसीएआर के संस्थान या कृषि विश्वविद्यालय तीन जगह परीक्षण करके यह सिद्ध नहीं कर देते कि उस उत्पाद से किसानों को वास्तविक लाभ होगा, तब तक ऐसे किसी भी उत्पाद की बिक्री की अनुमति नहीं दी जाएगी। तीन स्तर पर आईसीएआर से प्रमाणित हुए बिना, कोई भी बायोस्टिमुलेंट ना बिक पाए इसका प्रावधान किया गया है।
-किसानों के साथ संवाद बढ़ने के साथ-साथ उनकी शिकायतें भी आ रही हैं। उनका समाधान कैसे किया जाएगा?
किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए किसान कॉल सेंटर टोल-फ्री नंबर 1800-180-1551 जारी किया है। किसान से अनुरोध है कि नकली खाद, बीज या कीटनाशक की तुरंत शिकायत करें। सभी शिकायतों को तत्काल संबंधित राज्यों और विभागों को भेजकर कार्रवाई की जाती है। सरकार किसानों की हर समस्या पर त्वरित और प्रभावी कार्यवाही हेतु पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।
वैज्ञानिक, कृषि विभाग के अधिकारी, किसान एक टीम के रूप में कार्य करें और लगातार खेतों में जाकर किसानों से संपर्क करें।
-कृषि क्षेत्र के लिए आप मुख्य तौर पर किन लक्ष्यों को लेकर चल रहे हैं?
हमारा लक्ष्य किसानों की आय बढ़ाना, देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और हिंदुस्तान को विश्व का फूड बास्केट बनाना है। साथ ही पोषणयुक्त अनाज, फल-सब्जियां, पर्याप्त मात्रा में लोगों के लिए उपलब्ध कराना है। धरती को आने वाली पीढ़ियों के लिए भी उपजाऊ बनाए रखना है।
प्रधानमंत्री जी ने लाल किले से कहा कि सरकार फाइल में नहीं, लाइफ में दिखनी चाहिए। हम इसी दिशा में आगे बढ़ने के लिए संकल्पित हैं। प्रगतिशील किसानों, विशेषज्ञों एवं अन्य उपयोगी सुझावों को जोड़ते हुए राज्य सरकारों के साथ मिलकर अगले 5 साल की कृषि का रोडमैप तैयार किया जा रहा है। आशा है कि साझा प्रयासों से कृषि और अधिक उन्नति की ओर अग्रसर होगी।
बीते 10-11 वर्षों में गेहूं का उत्पादन 86.5 मिलियन टन से बढ़कर 117.5 मिलियन टन हो गया है, जो लगभग 44 प्रतिशत की वृद्धि है। यह उपलब्धि उल्लेखनीय है, लेकिन अभी भी हमें प्रति हेक्टेयर उत्पादन को वैश्विक औसत के बराबर लाने की दिशा में काम करना होगा। अब दलहन और तिलहन की उत्पादकता बढ़ाना समय की मांग है ताकि आयात पर निर्भरता घटे।
छोटे और सीमांत किसानों के लिए एकीकृत खेती ही लाभकारी रास्ता है, जिसमें खेती के साथ पशुपालन, मधुमक्खी पालन, मत्स्य पालन और बागवानी को जोड़ना होगा।
-किसानों की शिकायतों के समाधान के लिए क्या व्यवस्था बनाई जा रही है?
किसानों की जो भी समस्याएं विभिन्न माध्यम से प्राप्त हो रही हैं, उनका उचित निराकरण समय पर करने की व्यवस्था होनी चाहिए। व्यवस्था इतनी मजबूत होनी चाहिए कि जब किसान भाई-बहन हमसे संपर्क करें, तब उन्हें भरोसा हो कि उनकी समस्याओं का निराकरण जरूर हो जाएगा।
पी.एम. किसान पोर्टल, किसान ई-मित्र, किसान कॉल सेंटर सहित विभिन्न प्लेटफार्म के जरिए मिल रही किसानों की समस्याओं और निवारण की क्या व्यवस्था है, उसकी समीक्षा की जा रही है। समय-समय पर किसानों से भी बात करके जानेंगे कि उनकी समस्याओं का समाधान हुआ है या नहीं, ताकि वे पूरी तरह से संतुष्ट हो।
फसलों पर वायरस अटैक की स्थिति में यदि किसानों द्वारा जानकारी साझा की जाएगी या मात्र एक फोटो के जरिए भी सूचना दी जाएगी, तो मदद के लिए वैज्ञानिकों की टीम तुरंत किसानों के पास गांव पहुंचेगी।
-उर्वरकों की उपलब्धता और यूरिया की अतिरिक्त मांग को कैसे सुनिश्चित किया जा रहा है?
यूरिया की अतिरिक्त मांग की दो मुख्य वजह हो सकती हैं, पहला – अच्छी बारिश के कारण चावल और मक्के सहित बुआई में बढ़ोतरी और दूसरा कारण हो सकता है यूरिया का गैर खेती के कामों में अनुचित इस्तेमाल। यदि खेती की आवश्यकता के लिए यूरिया की मांग है तो निश्चित रूप से यूरिया उपलब्ध करवाया जाएगा, जिसके लिए तत्परता से मंत्रालय में काम चल रहा है। लेकिन यदि यूरिया के गलत इस्तेमाल की आशंका है तो यह एक गंभीर विषय है, जिस संबंध में सख्त कदम उठाए जाएंगे। राज्य के कृषि मंत्रियों से भी आग्रह किया है कि वह यह सुनिश्चित करें कि यूरिया का सही इस्तेमाल ही हो। इस संबंध में निगरानी समितियों का गठन करते हुए तंत्र मजबूत करें।
-अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक समझौतों में किसानों के हितों की रक्षा को लेकर सरकार की क्या रणनीति है?
राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हुए प्रधानमंत्री ने साफ कर दिया है कि देश के किसानों के हितों से समझौता नहीं किया जाएगा। इस फैसले ने दुनिया के सामने भारत की मजबूत छवि स्थापित की है। किसान भाई-बहनों के साथ पशुपालकों और मछुआरों के हित भी सुरक्षित रखे जाएंगे। साथ ही प्रधानमंत्री ने स्वदेशी का आह्वान भी किया है।
यूके से हमने समझौता किया है। बिना ड्यूटी के हमारे कृषि उत्पाद अब इंग्लैंड जाएंगे। यह बराबरी का समझौता है। लेकिन कोई यह कहे कि समझौता ऐसा हो जाए जिससे उनके देश का सामान हमारे यहां भर जाए। मक्का आ जाए, सोयाबीन आ जाए, गेहूं आ जाए तो हमारा और उनका कोई मुकाबला नहीं है। ऐसा कोई समझौता हो जाता तो भारत का किसान मर जाता, सस्ती चीजों की बाढ़ लग जाती। कृषि विभाग ने ताकत के साथ अपनी बात रखी कि कोई ऐसा समझौता नहीं हो जो हमारे किसान के हितों को प्रभावित करे। हमारे किसान, हमारे पशुपालक, भैंस, गाय पालने वाले, हमारे मछुआरे उनके हित सुरक्षित रखे जाएंगे।
भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। हमारा देश 144 करोड़ की आबादी वाला बड़ा बाज़ार है। स्वदेशी ही भारत की असली शक्ति है। प्रधानमंत्री ने स्वदेशी अपनाओ का आह्वान किया है। अगर हम ठान लें कि अपने ही प्रदेश-देश में बनी चीज खरीदेंगे तो हमारे लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा। उनकी आमदनी बढ़ेगी तो हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।
-किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम दिलाने के लिए सरकार क्या उपाय कर रही है?
सरकार द्वारा एमएसपी बढ़ाने का काम किया गया है। किसानों की लागत में 50 प्रतिशत लाभ जोड़कर ही एमएसपी तय करने का निर्णय लिया गया। अब-तक गेहूं और धान की खरीद के जरिये किसानों के खातों में 43 लाख 87 हजार करोड़ रुपये डाले गए हैं। पीएम-आशा और बाजार हस्तक्षेप योजना (MIP) के तहत भी किसानों की उपज की खरीद हो रही और बेहतर दाम दिलाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
-किसानों को मौसम की मार से बचाने के लिए फसल बीमा योजना शुरू की गई थी। इसे बेहतर और प्रभावी बनाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
पहले की सरकार द्वारा फसल बीमा की राशि पूरी तहसील या ब्लॉक की फसल बर्बाद होने के बाद ही दी जाती थी लेकिन प्रधानमंत्री ने पुरानी सारी योजनाओं को निरस्त करते हुए ऐसी बीमा योजना बनाई जिसके अंतर्गत एक गांव क्या एक किसान की भी अगर फसल बर्बाद हुई तो बीमा की राशि दी जाएगी।
केंद्र सरकार ने किसानों के हित में एक नया, आसान क्लेम सेटलमेंट सिस्टम लागू किया है। इसके तहत राज्य के प्रीमियम अंशदान की प्रतीक्षा किए बिना, केवल केंद्रीय अंशदान के आधार पर दावों का आनुपातिक भुगतान किया जाएगा। यदि बीमा कंपनियां निर्धारित समय में क्लेम का भुगतान नहीं करतीं, तो उन्हें 12% ब्याज सहित राशि जमा करनी होगी। इसी तरह, यदि राज्य सरकारें अपना अंश समय पर जमा नहीं करतीं, तो उन्हें भी 12% ब्याज देना होगा, जो सीधे किसानों के खातों में जाएगा।
सरकार इस योजना को पूरी पारदर्शिता के साथ संचालित करने में जुटी है। डिजिटल भुगतान के माध्यम से किसानों तक बीमा की राशि पहुंचे, यह सुनिश्चित हो रहा है। गत 11 अगस्त को 30 लाख से अधिक किसानों को 3,200 करोड़ रुपए से अधिक की फसल बीमा दावा राशि डिजिटल रूप से सीधे उनके बैंक खातों में भेजी गई।
प्राकृतिक आपदा में फसल नष्ट होने से न केवल फसल बर्बाद होती है, बल्कि किसान का जीवन भी प्रभावित होता है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ऐसी परिस्थितियों में किसानों के लिए वरदान साबित हुई है। मात्र एक योजना ही नहीं बल्कि विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सरकार किसानों की जिंदगी सुखद बनाने का कार्य कर रही है। पौने चार लाख करोड़ रुपये की धनराशि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत सीधे किसानों के खातों में वितरित की जा चुकी है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की 2016 में शुरुआत से अब-तक 2 लाख 12 हजार करोड़ रुपये किसानों को दिए जा चुके हैं। यह सरकार की किसान-हितैषी नीति का प्रतीक है।