सोयाबीन उत्पादन में 16 फीसदी गिरावट, फिर भी एमएसपी को तरसते किसान
उत्पादन में गिरावट के बावजूद, सोयाबीन की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,328 रुपये प्रति क्विंटल से काफी नीचे हैं। किसानों को मजबूरन 3,500 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल तक के भाव पर अपनी उपज बेचनी पड़ रही है।
देश में इस साल सोयाबीन उत्पादन में करीब 16 प्रतिशत की भारी गिरावट देखने को मिल सकती है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के अनुसार, चालू खरीफ सीजन 2025-26 में उत्पादन लगभग 20.5 लाख टन घटकर 105.36 लाख टन रहने का अनुमान है।
उत्पादन में गिरावट के बावजूद, सोयाबीन की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,328 रुपये प्रति क्विंटल से काफी नीचे हैं। किसानों को मजबूरन 3,500 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल तक के भाव पर अपनी उपज बेचनी पड़ रही है।
सोपा ने रकबे में कमी, उत्पादकता में गिरावट और प्रतिकूल मौसम को उत्पादन में गिरावट के मुख्य कारण बताया है। सोपा के आंकड़ों के अनुसार, चालू खरीफ सीजन (2025) में देश में सोयाबीन की बुवाई 114.56 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हुई और औसत उत्पादकता 920 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रही। जबकि पिछले साल (2024) सोयाबीन 118.32 लाख हेक्टेयर में बोई गई थी और उत्पादन 125.82 लाख टन के साथ औसत उत्पादकता 1,063 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी।
इस बार मौसम की मार से सोयाबीन की फसल को भारी नुकसान हुआ है। राजस्थान और मध्यप्रदेश में भारी बारिश के कारण उत्पादन पर असर पड़ा है, जबकि पीला मोज़ेक वायरस ने भी कई इलाकों में फसल को प्रभावित किया।
केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन वर्ष 2025-26 के लिए सोयाबीन का एमएसपी 5,328 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, जो पिछले साल के मुकाबले 436 रुपये अधिक है। लेकिन बाजार में कीमतें इससे काफी नीचे होने के कारण किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।
देश के प्रमुख उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश में कई जिलों में भारी बारिश से फसल बर्बाद हुई है। ऊपर से किसानों को उचित दाम नहीं मिल रहे हैं। राज्य सरकार ने भावांतर भुगतान योजना शुरू की है, लेकिन किसान संगठनों का कहना है कि इससे वास्तविक नुकसान की भरपाई नहीं होगी।
मध्य प्रदेश के किसान नेता राम इनानिया ने कहा, “सरकार सिर्फ मंडियों के मॉडल प्राइस और एमएसपी के अंतर की भरपाई कर रही है। इससे किसानों को वास्तविक लाभ नहीं मिल पा रहा है।” कई जिलों में किसान संगठन एमएसपी पर खरीद की मांग को लेकर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।
भारत में खाद्य तेलों का उत्पादन मांग के मुकाबले अब भी काफी कम है, फिर भी किसानों को सोयाबीन जैसी तिलहन फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे मुख्य कारण सस्ते खाद्य तेलों का आयात है।
पिछले साल भी किसानों को सोयाबीन का सही दाम नहीं मिला था। यही वजह है कि किसानों का सोयाबीन से रुझान कम हो रहा है और वे मक्का की ओर रुख कर रहे हैं। इस साल बोआई क्षेत्र में आई कमी इसी प्रवृत्ति का संकेत है।
भारत अपनी कुल खाद्य तेल आवश्यकता का 60% से अधिक आयात करता है, जिस पर हर साल लगभग 1.50 लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा खर्च होती है। खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए देश में सोयाबीन उत्पादन बढ़ाना जरूरी है और यह तभी संभव होगा जब किसानों को उनकी उपज का सहीदाम मिलेगा।

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