अमृतकाल में कृषि और कोऑपरेटिव के लिए संजीवनी बजट

अल्पावधि की जरूरतों और दीर्घ काल में टिकाऊ और समावेशी विकास के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की गई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण निश्चित ही इस स्मार्ट फोकस वाले और संतुलित बजट के लिए प्रशंसा की पात्र हैं

वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में सबसे महत्वपूर्ण और अलग बात यह है कि इसमें भारत के 75 वर्ष के होने की बात को ध्यान में रखने के साथ 100 वर्ष होने पर भारत कैसा होगा, उसका विजन भी बताया गया है। इसमें उन चुनौतियों की बात की गई है जिनका भारत अभी सामना कर रहा है। साथ ही उन चुनौतियों से निपटने के तरीके भी बताए गए हैं। बजट में अगले 25 वर्षों के दौरान भारत को वैश्विक सुपर पावर बनाने के लिए मजबूत नींव रखने के साथ उसका स्पष्ट रोडमैप भी बताया गया है। अल्पावधि की जरूरतों और दीर्घ काल में टिकाऊ और समावेशी विकास के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की गई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण निश्चित ही इस स्मार्ट फोकस वाले और संतुलित बजट के लिए प्रशंसा की पात्र हैं।

कृषि और कोऑपरेटिव सेक्टर के लिए बजट में नजरिए में बड़ा बदलाव स्पष्ट दिखता है। विधानसभा चुनावों को देखते हुए अनेक लोगों को उम्मीद थी कि कुछ लोकलुभावन घोषणाएं बजट में की जा सकती हैं। ऐसा करने के बजाय वित्त मंत्री ने कृषि क्षेत्र के तेज विकास के लिए समावेशी, निवेश और टेक्नोलॉजी पर फोकस करने का रास्ता अपनाया। यह स्थापित तथ्य है कि भारतीय कृषि कम उत्पादकता और निवेश पर कम रिटर्न के लिए जानी जाती है। यही कारण है कि देश आश्रित कृषि की समस्या से जूझ रहा है।

किसानों को हमेशा छोटी-छोटी समस्याओं के समाधान के लिए सरकार का मुंह देखना पड़ता है। जबकि उन समस्याओं का समाधान किसानों के हाथों में ही है। किसान स्वयं अपनी समस्याओं का समाधान कर सकें, इसके लिए देश को आश्रित कृषि से आत्मनिर्भर कृषि व्यवस्था की ओर जाने की जरूरत है। भारत में छोटे और सीमांत किसानों की संख्या अधिक है। उनके पास जो जमीनें हैं उनका आकार बहुत छोटा है। देश के करीब 70 फ़ीसदी किसान ऐसे हैं जो खेती से होने वाली आमदनी की तुलना में उस पर खर्च अधिक करते हैं। कहने का मतलब यह है कि छोटे आकार की जमीन पर खेती करना लाभप्रद नहीं है। इसका समाधान जमीन और अन्य उत्पादक एसेट को साथ मिलाने ने में है।

इस साल के बजट में बुनियादी स्तर पर नजरिए में इस तरह के बदलाव का बीजारोपण किया गया है। इसमें नागरिकों के सशक्तीकरण और उनके समावेशी विकास का प्रस्ताव है। इसमें मोबिलिटी और कनेक्टिविटी सुधारने के साथ उत्पादकता बेहतर करने और निवेश बढ़ाने की भी बात है। सरकारी योजनाओं और भारी-भरकम सब्सिडी पर निर्भर रहने का रास्ता अपनाने के बजाय बजट में प्राकृतिक संसाधनों को बचाने और उनके इस्तेमाल पर जोर दिया गया है। साथ ही प्राकृतिक और जैविक खेती पर भी फोकस किया गया है।

प्राकृतिक और जैविक खेती अपनाने से खेती की लागत घटाने और किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद मिल सकती है। कृषि और पशु अवशिष्ट को मिट्टी और फसल के लिए प्राकृतिक तथा जैविक पोषक तत्वों में बदलकर उनका बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है। प्राकृतिक और जैविक मिट्टी तथा फसलों के लिए पोषक तत्व के उत्पादन की इकाइयां कम्युनिटी के स्तर पर स्थापित की जा सकती हैं। इससे प्राकृतिक और जैविक खेती क्लस्टर के आधार पर शुरू हो सकेगी। इससे इकोनॉमी ऑफ स्केल यानी बड़े आकार में खेतों का इस्तेमाल हो सकेगा और सप्लाई चेन मैनेजमेंट भी बेहतर होगा। खेती को लाभप्रद बनाने के लिए लोगों तक जानकारी को पहुंचाना, सक्षम सप्लाई चेन विकसित करना और किसानों को बाजार से जोड़ना बेहद महत्वपूर्ण है। बजट में इन पर फोकस स्पष्ट दिखता है।

बजट में सरकार, कॉरपोरेट और कृषि विश्वविद्यालयों को साथ जोड़ने के लिए आवश्यक इकोसिस्टम तैयार करने का प्रस्ताव है। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि अतीत के तरीकों से हटकर किसानों को केंद्र में रखा गया है। भविष्य में कृषि से संबंधित सभी कार्यों और एजेंडा में किसान ही केंद्र में होंगे और ऐसा ही होना भी चाहिए। लेकिन इस एजेंडा पर आगे बढ़ने और इसके फायदे उठाने के लिए किसानों को सामूहिक रूप से आगे आना पड़ेगा। भविष्य में सामूहिक खेती किसानों के सामने विकल्प नहीं, बल्कि उनकी आवश्यकता होगी। सामूहिक खेती को अगर किसान नहीं अपनाते हैं तो उनमें से अनेक भविष्य में खेती छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे और भारत उस परिस्थिति को झेल नहीं सकता है। इस बार के बजट में इन गंभीर समस्याओं को ध्यान में रखते हुए कदम उठाए गए हैं। बजट में नाबार्ड के तहत एक अलग डेडीकेटेड फंड बनाने का प्रस्ताव है जो एग्री स्टार्टअप की फाइनेंसिंग, कस्टम हायरिंग और खेती में टेक्नोलॉजी की भूमिका बढ़ाने में मदद करेगा।

सामूहिक खेती का मतलब कोऑपरेटिव, फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (एफपीओ), स्वयं सहायता समूह आदि से है। ये संस्थागत स्तर पर सबसे मुफीद और मुनाफा योग्य हो सकते हैं। इन बातों को ध्यान में रखते हुए और देश में सहकारिता को मजबूत बनाने के लिए बजट में कई उपायों की घोषणा की गई है।

नवगठित सहकारिता मंत्रालय के लिए बजट में 900 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। यह कोऑपरेटिव सेक्टर के लिए पिछले बजट का करीब नौ गुना है। बजट में कोऑपरेटिव और कॉरपोरेट के बीच अंतर मिटाकर दोनों को समान अवसर देने की कोशिश की गई है। इसके लिए कोऑपरेटिव सोसायटी पर लगने वाले न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) की दर 18.5 फ़ीसदी से घटाकर 15 फ़ीसदी कर दी गई है। इसके अलावा एक करोड़ से 10 करोड़ रुपए तक आय वाली कोऑपरेटिव सोसायटी के लिए सरचार्ज की दर भी 12 फ़ीसदी से घटाकर 7 फ़ीसदी कर दी गई है।

कॉपरेटिव संस्थानों में सुधार के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण के महत्व को स्वीकार करते हुए बजट में इस मद में अलग आवंटन किया गया है। पैक्स (पीएसीएस) के कामकाज में दक्षता, लाभप्रदता, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए डिजिटाइजेशन के महत्व को भी स्वीकार किया गया है। इसे देखते हुए बजट में अलग से 350 करोड़ रुपए रखे गए हैं। इसके अलावा व्यापक स्कीम - सहकारिता से संपन्नता - के लिए 274 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है। इस व्यापक स्कीम में कई छोटी-छोटी स्कीमें होंगी। इनके जरिए देश में सहकारिता के विकास के लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा। कॉपरेटिव के लिए क्रेडिट गारंटी फंड शुरू करना भी उल्लेखनीय है, जिसका मकसद देश में कोऑपरेटिव को पर्याप्त वित्तीय मदद सुनिश्चित करना है।

अंत में यह कहा जा सकता है कि वित्त वर्ष 2022-23 का आम बजट भारत के कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने की दिशा में शुरुआती कदम हो सकता है। पहली बार सामूहिक प्रयासों से किसानों के विकास की बात कही गई है ताकि उनकी आमदनी बढ़े। इस तरह वर्षों पुरानी उस परंपरा को भी तोड़ने की कोशिश की गई है जिसमें किसान सब्सिडी और ट्रांसफर पेमेंट व्यवस्था पर आश्रित रहते हैं। सब्सिडी हमेशा के लिए जारी नहीं रह सकती है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पहली बार बजट में कृषि संकट को वैचारिक स्तर पर दूर करने के लिए बुनियादी कदम उठाए गए हैं। इस दिशा में डैमेज कंट्रोल की नीति पर चलने के बजाय किसानों को पहले ही सक्षम बनाने की नीति अपनाई गई है। बजट घोषणाओं को जिस आशय के साथ तैयार किया गया है, अगर वह उसी तरह जमीन पर पहुंचे तो भारत का ग्रामीण और कृषि क्षेत्र बेहतर और संपन्न होगा। इससे देश की बड़ी आबादी को फायदा मिलेगा। उन्हें गरीबी और संकट से बाहर निकालने में भी मदद मिलेगी।