जीएम सरसों पर सुप्रीम कोर्ट ने 26 सितंबर तक टाली केंद्र की याचिका, कहा- पर्यावरण नुकसान की कैसे हो सकती है भरपाई

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस याचिका पर 26 सितंबर तक के लिए सुनवाई स्थगित कर दी है जिसमें आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों की व्यावसायिक खेती पर जोर नहीं देने के बारे में कोर्ट से किए गए मौखिक वादे को वापस लेने की मांग की गई है। इस मामले पर 29 अगस्त को हुई सुनवाई में शीर्ष अदालत ने कहा कि पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस याचिका पर 26 सितंबर तक के लिए सुनवाई स्थगित कर दी है जिसमें आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों की व्यावसायिक खेती पर जोर नहीं देने के बारे में कोर्ट से किए गए मौखिक वादे को वापस लेने की मांग की गई है। इस मामले पर 29 अगस्त को हुई सुनवाई में शीर्ष अदालत ने कहा कि पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती है।

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने केंद्र की इस याचिका पर सुनवाई टाल दी। याचिका में कहा गया था कि या तो इसे नवंबर 2022 में केंद्र सरकार की ओर से कोर्ट से किए गए मौखिक वादे से मुक्त कर दिया जाए या वैकल्पिक रूप से सरकार को इस सीजन में कुछ जगहों पर जीएम सरसों बोने की अनुमति दी जाए। यदि अदालत हमें अपना वादा वापस लेने की अनुमति देती है, तो हम शुरू में प्रस्तावित दस जगहों पर जीएम सरसों के बीज बोने और रिसर्च करने के लिए आगे बढ़ सकते हैं। याचिका में कोर्ट से अनुरोध किया गया कि अदालत को हमारी रिसर्च रिपोर्टों का लाभ भी इस मामले का फैसला करते समय मिलेगा।

केंद्र सरकार की ओर से पेश हुई अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत से कहा, "वैकल्पिक रूप से कम से कम सरकार को आठ जगहों पर बीज बोने और अदालत के समक्ष रिपोर्ट पेश करने की अनुमति दी जाए।" उन्होंने कहा कि सरकार एक और बुवाई का मौसम खोना नहीं चाहती है। उनकी इस दलील पर अदालत ने उन्हें याद दिलाया कि पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई करना कितना मुश्किल है। पीठ ने कहा कि एक साल आगे या पीछे होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। यह केवल एक सीजन है। अगले साल एक और सीजन आएगा लेकिन पर्यावरण को जो नुकसान पहुंचेगा उसकी भरपाई कैसे की जाएगी।  पीठ ने याचिका को 26 सितंबर तक के लिए टालते हुए कहा कि हमें आवेदन पर सुनवाई करनी होगी और उस पर विचार करना होगा।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने अदालत में उन परिस्थितियों का उल्लेख किया जिसके तहत केंद्र की ओर से कोर्ट को मौखिक वचन दिया गया था कि इस मामले का फैसला आने तक केंद्र सरकार कोई कदम नहीं उठाएगी। तब शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह इस मामले पर जल्दबाजी में कोई कदम न उठाए क्योंकि मामले को नवंबर 2022 में अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाना था। उस समय 10 में से 8 जगहों पर जीएम सरसों के बीज पहले ही बोए जा चुके थे और बुवाई का अगला सीजन एक साल दूर था। इन परिस्थितियों में कोर्ट से मौखिक वादा किया गया था।

उन्होंने कहा कि हम शोध के अंतिम चरण में हैं। यह कोई व्यावसायिक रिलीज नहीं है, बल्कि एक पर्यावरणीय रिलीज है। पीठ ने पूछा कि अगर केंद्र सरकार को अपने वचन से मुक्त कर दिया जाता है कि वह जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती के साथ आगे नहीं बढ़ेगी तो सरकार क्या फैसला करेगी। पीठ ने सुनवाई स्थगित करते हुए कहा कि तीन हफ्तों में कुछ भी नहीं बदलेगा।

एक्टिविस्ट अरुणा रोड्रिग्स की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने केंद्र सरकार की दलीलों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि जीएम सरसों के पर्यावरणीय उत्सर्जन से गैर-जीएम फसलें प्रदूषित हो सकती हैं। इससे पहले, शीर्ष अदालत ने मौखिक वचन को वापस लेने की मांग करने वाली केंद्र की याचिका पर एनजीओ 'जीन कैंपेन' और अन्य से जवाब मांगा था। जीन कैंपेन की ओर से पेश वकील अपर्णा भट्ट ने जवाब दाखिल करने के लिए कोर्ट से समय मांगा।

3 नवंबर, 2022 को शीर्ष अदालत ने व्यावसायिक खेती के लिए जीएम सरसों को मंजूरी देने के जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) के फैसले पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। अदालत ने सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा था कि इस मुद्दे पर कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई होने तक "कोई त्वरित कार्रवाई" नहीं की जाए।