भारत का कृषि और सहयोगी क्षेत्र का निर्यात 50 अरब डॉलर के स्तर को पार कर गया है। अब अगला चरण 100 अरब डॉलर के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करना है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की एक ट्रिलियन डॉलर की हिस्सेदारी और किसानों की आमदनी बढ़ाने जैसे लक्ष्य भी निर्यात में बढ़ोतरी के जरिये हासिल किये जा सकते हैं।
मौजूदा निर्यात में ऐसे चार उत्पाद हैं जो चार अरब डॉलर या उससे अधिक की हिस्सेदारी रखते हैं। इनके साथ कई अन्य उत्पादों को चार अरब डॉलर वाले समूह में शामिल कर 100 अरब डॉलर निर्यात के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
इस चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को हासिल करने के लिए निर्यात नीतियों में स्पष्टता व स्थिरता और नियम-कायदों व प्रक्रियाओं को सरल बनाने की आवश्यकता है। कृषि उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ एक्सपोर्ट मार्केट तक पहुंच बढ़ाने के लिए फार्म से पोर्ट तक ढांचागत सुविधाओं के विस्तार पर भी जोर देना होगा। बेहतर कृषि उत्पादन प्रक्रिया (गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेज यानी जीएपी) जैसे कई मोर्चे हैं जहां व्यापक सुधार की दरकार है।
अहम बात यह है कि ऐसे दौर में जब पूरी दुनिया अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ के फैसलों और बयानों के चलते उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है, भारत के कृषि निर्यात ने बेहतर प्रदर्शन किया है। भारत से कृषि एवं संबद्ध उत्पादों का निर्यात वर्ष 2024-25 के दौरान 6.47 फीसदी बढ़कर 51.91 अरब डॉलर हो गया। इसमें सबसे महत्वपूर्ण योगदान चावल निर्यात का है जो 12.5 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। इसमें बासमती निर्यात की हिस्सेदारी करीब 6 अरब डॉलर तक पहुंच गई है।
चावल के बाद सबसे ज्यादा 7.4 अरब डॉलर का निर्यात मरीन उत्पादों का होता है। मसालों का निर्यात 4.84 फीसदी बढ़कर 4.45 अरब डॉलर हो गया है। बफैलो मीट के निर्यात में 8.57 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई और यह 4 अरब डॉलर से ऊपर पहुंच गया है। प्रोसेस्ड फूड का निर्यात करीब 2 फीसदी की वृद्धि के साथ 1.68 अरब डॉलर रहा है जबकि ताजे फलों का निर्यात भी करीब 2 फीसदी बढ़कर 1.17 अरब डॉलर हो गया है।
प्रोसेस्ड फ्रूट्स व जूस का निर्यात करीब 6 फीसदी बढ़कर 1 अरब डॉलर से अधिक रहा है। तंबाकू निर्यात में इस साल 40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और यह 1.5 अरब के आसपास है। ऑर्गेनिक उत्पादों के निर्यात में 35 फीसदी और डेयरी प्रोडक्ट्स में 54 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
देश में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत स्थापित कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के दायरे में आने वाली प्रमुख वस्तुओं का निर्यात वर्ष 2024-25 में 11 फीसदी बढ़कर 27.90 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। वैश्विक चुनौतियों के बावजूद देश के कृषि निर्यात में दर्ज की गई बढ़ोतरी से वर्ष 2030 तक कृषि निर्यात को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने की संभावनाओं को बल मिला है। हालांकि, यह राह इतनी आसान नहीं है।
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के चेयरमैन अभिषेक देव ने रूरल वॉयस को बताया कि कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार से लेकर, निर्यात सुविधाएं बढ़ाने और किसानों को निर्यात बाजारों से जुड़े जैसे कई स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं। कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने में बनारस एक सक्सेस स्टोरी है।
अभिषेक देव बताते हैं कि कुछ साल पहले तक बनारस से कोई कृषि निर्यात नहीं होता था। लेकिन चार साल के भीतर बनारस से हजारों टन फल व सब्जियों का कई देशों को निर्यात होने लगा है। चंदौली का काला चावल, बनारसी लंगड़ा आम और आसपास के जिलों से फल-सब्जियों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बनारस को एग्री एक्सपोर्ट हब के तौर पर विकसित किया गया है। इसके लिए बनारस एयरपोर्ट पर कस्टम, एयर कार्गो और अन्य निर्यात सुविधाएं तैयार की गईं। अभिषेक देव ने बताया कि अब बनारस की तर्ज पर अमृतसर एयरपोर्ट को आरए3 स्टेंडर्ड सर्टिफिकेशन का दर्जा देकर निर्यात से जुड़ी सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। अमृतसर से एयर कार्गो के जरिए कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा दिया जाएगा, जिसका लाभ निर्यातकों और किसानों को भी मिलेगा।
फल-सब्जियों और कई कृषि उपजों के जल्द खराब होने के कारण अभी ये उत्पाद देश के भीतर भी दूर तक नहीं पहुंच पाते हैं। वर्ष 2024-25 के आम बजट में एयर कार्गो वेयरहाउसिंग की सुविधा बढ़ाने की घोषणा की गई है। इससे निर्यात और घरेलू व्यापार में वृद्धि होगी। कार्गो स्क्रीनिंग और कस्टम प्रोटोकॉल को सुव्यवस्थित करने से निर्यात की राह आसन हो सकती है।
एक लाख करोड़ का चावल निर्यात
कृषि उपजों का निर्यात किसानों की आमदनी बढ़ने का अहम जरिया है क्योंकि वैश्विक बाजार मिलने से उपज का बेहतर दाम मिलने की संभावना बढ़ जाती है जिसका लाभ किसानों तक भी पहुंचता है। लेकिन इसके लिए उपज की गुणवत्ता और खाद्य सुरक्षा मानकों पर खरा उतरना जरूरी है।
कई भारतीय उत्पाद जैसे बासमती चावल अपनी विशेष खूबियों के चलते विश्व बाजार में पैठ बना चुके हैं। कृषि निर्यात में चावल एक बेहतरीन उदाहरण है। वर्ष 2024-25 में भारत से चावल निर्यात पिछले साल के 163.58 लाख टन से 23.48 फीसदी बढ़कर 202 लाख टन तक पहुंच गया है जिसका मूल्य 12.47 अरब डॉलर यानी एक लाख करोड़ रुपये से अधिक है। देश के कुल कृषि निर्यात में करीब 25 फीसदी हिस्सेदारी अकेले चावल की है। अकेले बासमती चावल का निर्यात 50 हजार करोड़ रुपये से अधिक का होता है।
इससे अन्य उपजों के निर्यात की संभावनाओं का अंदाजा लगा सकते हैं। अगर एक कृषि उपज का निर्यात 12 अरब डॉलर से ऊपर पहुंच सकता है तो देश की सभी कृषि वस्तुओं का निर्यात 100 अरब डॉलर तक पहुंचाना कोई असंभव काम नहीं है।
क्वालिटी और फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड
कृषि निर्यात बढ़ाने के लिए क्वालिटी और फूड सेफ्टी से जुड़े मानकों पर खरा उतरना जरूरी है। खेत में बीज से लेकर फसल कटाई, प्रोसेसिंग और पैकेजिंग, हर लेवल पर अंतरराष्ट्रीय मानकों और सरकारी प्रक्रियाओं का पालन करना होता है। अमेरिका में निर्यात के लिए यूएस एफडीए और यूरोप के लिए ईयू के स्टैंडर्ड हैं। इसके अलावा अलग-अलग देशों और आयातकों के अपने मानक भी होते हैं।
उत्पादों की गुणवत्ता के अलावा सेनेटरी व फाइटोसेनेटरी स्टेंडर्ड, पेस्टिसाइड रेसिड्यू और ट्रेसेबिलिटी जैसे मुद्दे काफी अहम हो जाते हैं। इसके लिए किसानों को खेत में बीज से लेकर उर्वरक, फसल सुरक्षा और उत्पादन की प्रक्रिया पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके बाद प्रोसेसिंग से लेकर पैकेजिंग में भी ग्लोबल स्टैंडर्ड का ध्यान रखना पड़ता है। इन मसलों पर किसानों और निर्यातकों को जागरूक करना एक क्रिटिकल कंपोनेंट है। थोड़ी-सी चूक भी ग्लोबल मार्केट में हमें बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है। अमेरिका को निर्यात हुए आम के कंसाइनमेंट रिजेक्ट होने का मामला एक ताजा उदाहरण है।
पिछले दिनों अमेरिका में भारतीय आम की 12 खेप रिजेक्ट होने की खबर आई। इसके पीछे डॉक्यूमेंटेशन में गड़बड़ी और प्रक्रियागत खामियों को वजह बताया गया, जिससे निर्यातकों को 4 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ। निर्यातकों का कहना है कि उन्हें इरिडिएशन प्लांट की गलती का खामियाज उठाना पड़ा क्योंकि नवी मुंबई स्थित इरिडिएशन सेंटर पर डेटा दर्ज करने में गलती हुई थी। बहरहाल, मामले की जांच-पड़ताल जारी है।
इस तरह के मामले कृषि निर्यात से जुड़ी पेंचिदगियों और चुनौतियों को उजागर करते हैं। खासतौर पर खाद्य वस्तुओं के निर्यात से पहले उन्हें सघन जांच, कस्टम क्लियरेंस और इरिडिएशन जैसी प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। जिन देशों को निर्यात करना है, उनके नियम-कायदों और मानकों का पालन करना होता है।
निर्यात की इन चुनौतियों के कारण ही दुनिया का लगभग 43 फीसदी आम उत्पादन करने वाला भारत सालाना आम उत्पादन का एक फीसदी आम भी निर्यात नहीं कर पाता है। जबकि देश में आम की 14 किस्मों को विशेष भौगोलिक पहचान (GI) प्राप्त है और भारत के आम दुनिया भर में पसंद किए जाते हैं। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में भारत से आम और मैंगो पल्प का निर्यात बढ़ा है। वर्ष 2024 में भारत से 32 हजार टन आम और 60 हजार टन मैंगो पल्प का निर्यात हुआ था। यूपी जैसे प्रमुख आम उत्पादक राज्य से आम निर्यात को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं।
उत्पादों की गुणवत्ता, निर्यात सुविधाओं के विस्तार और मानकों पर खरा उतरने को लेकर उठाये जा रहे कदमों पर एपीडा चेयरमैन का कहना है कि हम भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) पूसा के वैज्ञानिकों, एफएसएसएआई और निर्यातकों के साथ मिलकर इस मोर्चे पर काम कर रहे हैं। राज्यों की भी यहां अहम भूमिका है। बासमती के मामले में राज्य सरकारों ने कई पेस्टिसाइड प्रतिबंधित किये। लेकिन निर्यातकों को भी सजग रहने की आवश्यकता है।
मूल्यवर्धित उत्पादों की हिस्सेदारी
निर्यात में बढ़ोतरी के लिए हमें मूल्यवर्धन को प्राथमिकता देनी है। इसमें खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (एमओएफपीआई) के सचिव सुब्रत गुप्ता का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप बुनियादी ढांचे, स्वच्छता और फाइटोसैनिटरी मानकों को विकसित करने और केंद्र सरकार, राज्य सरकार, विभिन्न विभागों और उद्योग के बीच अधिक तालमेल की आवश्यकता है।
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशंस (फियो) के महानिदेशक डॉ. अजय सहाय बताते हैं कि भारत के कुल कृषि निर्यात में कच्चे माल की हिस्सेदारी लगभग 50 फीसदी है जबकि प्रोसेस्ड फूड की हिस्सेदारी 30 फीसदी के आसपास है। कृषि निर्यात को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने के लिए वैल्यू एडिशन और प्रोसेसिंग पर जोर देने की आवश्यकता है। निर्यात में प्रोसेस्ड फूड की हिस्सेदारी बढ़ानी होगी। साथ ही अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरुप गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार करने होंगे।
कई मंत्रालयों, विभागों की भूमिका
दरअसल, कृषि निर्यात का मामला कई मंत्रालयों, विभागों और संस्थाओं से जुड़ा है। कृषि उत्पादन कृषि मंत्रालय के दायरे में आता है जबकि कृषि निर्यात में वाणिज्य मंत्रालय की भूमिका अहम है। खाद्यान्न और कृषि उपज की सरकारी खरीद, उपलब्धता और भंडारण की नीतियों में खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय का दखल रहता है, जबकि फूड प्रोसेसिंग से जुड़ी अहम योजनाएं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के जरिए चलाई जाती हैं। इसी तरह डेयरी और मीट प्रोडक्ट्स के मामले में पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय की अहम भूमिका है। जबकि कस्टम से जुडे़ मामले वित्त मंत्रालय के अधीन आते हैं।
जीआई उत्पादों से निर्यात संवर्धन
भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग मिलने से विभिन्न कृषि उत्पादों को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने और निर्यात को बढ़ावा देने में मदद मिलती है। इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारत सरकार ने जीआई टैग वाली चावल किस्मों के लिए अलग से एचएस (Harmonised System) कोड शुरू किया है। भारत में चावल की 29 किस्मों को जीआई टैग मिला है जिनमें कालानमक, गोबिंदभोग, नवारा, पोक्कली, वायनाड जीरकासला, वायनाड गंधकसाला, कटारनी और चोकुवा चावल की किस्में शामिल हैं।
अलग एचएस कोड से जीआई-टैग वाले चावल के निर्यात में मदद मिलेगी। खासकर जब चावल की सामान्य किस्मों के निर्यात पर प्रतिबंध लग जाता है, तब भी इनका निर्यात संभव होगा। साथ ही ट्रेसेबिलिटी और डेटा प्राप्त करने में भी आसानी होगी।
जीआई टैग वाले उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के दिशा में कदम बढ़ाते हुए एपीडा ने सिक्किम से डल्ले मिर्च के निर्यात की शुरुआत करायी है। इसी तरह उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से बांग्लादेश को 30 टन गुड़ के निर्यात किया गया। किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के माध्यम से पश्चिमी उत्तर प्रदेश से गुड़ निर्यात की शुरुआत की गई है। पश्चिमी यूपी का गुड़ विशिष्टि भौगोलिक पहचान (जीआई) वाला उत्पाद है। एपीडा बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन के जरिए मुजफ्फरनगर क्षेत्र से गुड़ निर्यात को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है। निर्यात का सीधा लाभ किसानों तक पहुंचाने के लिए एफपीओ को माध्यम बनाया जा रहा है।
एपीडा के सचिव डॉ. सुधांशु ने बताया कि पश्चिमी यूपी के कई एफपीओ गुड़, गुड़ उत्पादों, बासमती चावल और दालों के निर्यात में जुटे हैं। उन्हें एपीडा की ओर से प्रशिक्षण और तकनीकी सहयोग दिया जा रहा है, ताकि किसानों के उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में जगह बना सकें। 2023 और 2024 में पश्चिमी यूपी से एफपीओ के जरिए लेबनान ओर ओमान को बासमती चावल का निर्यात हुआ था।
इंफ्रास्ट्रक्चर और निर्यात सुविधाएं
कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए पैक हाउस, पेरिशेबल कार्गो, ऑक्शन सेंटर, एक्सपोर्ट फैसिलिटी सेंटर, कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर, इरेडिएशन सेंटर आदि बुनियादी ढांचे और निर्यात सुविधाओं को विकसित करना जरूरी है। एपीडा कई योजनाओं के माध्यम से इन बुनियादी सुविधाओं के विकास को प्रोत्साहन दे रहा है।
कृषि से संबंधित बुनियादी ढांचे जैसे बिजली आपूर्ति, सिंचाई प्रणाली और परिवहन नेटवर्क में पर्याप्त निवेश उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ बाजार पहुंच को बढ़ा सकता है। उत्पादकता में सुधार के साथ ही फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करना भी जरूरी है। इसमें नई तकनीक महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पैकेजिंग के पूर्व निदेशक डॉ. एन.सी साहा बताते हैं कि खाद्य वस्तुओं की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए पैकेजिंग टेक्नोलॉजी बहुत कारगर साबित हो रही है। पैकेजिंग टेक्नोलॉजी की मदद से लीची की सेल्फ लाइफ 12 से 15 दिन तक बढ़ाने में मदद मिली है। अब ऐसे तकनीक भी विकसित हो चुकी हैं जिनसे लीची जैसे फलों की सेल्फ लाइफ 60 दिनों तक बढ़ाई जा सकती है। निर्यातक पैकेजिंग तकनीक की मदद से निर्यात की संभावनाओं को बढ़ा सकते हैं। इसके लिए सरकार की ओर से भी पैकेजिंग तकनीक अपनाने को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
किसान हित और निर्यात नीतियां
सरकार को महंगाई काबू में रखने और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ निर्यात बढ़ाने के बीच संतुलन कायम करना होता है। ऐसे में कई बार जब किसानों को निर्यात बाजार के लाभ से वंचित रहना पड़ता है। वर्ष 2023 में प्याज और गैर-बासमती चावल के निर्यात पर लगी पाबंदियों का खामियाजा देश के कृष निर्यात और किसानों को उठाना पड़ा था। यही स्थिति गेहूं के मामले में देखने को मिल रही है।
पिछले दो साल से कृषि मंत्रालय की तरफ से देश में गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन के दावे किए जा रहे हैं। कृषि मंत्रालय का अनुमान है कि 2024-25 में गेहूं उत्पादन रिकॉर्ड 11.54 करोड़ टन होगा। इस साल गेहूं की सरकारी खरीद पिछले साल से करीब 11 फीसदी अधिक रही है। फिर भी गेहूं के निर्यात पर लगी रोक जारी है।
गौरतलब है कि उत्पादन में गिरावट को देखते हुए भारत सरकार ने मई 2022 में गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और महंगाई काबू में रखने के लिए यह कदम उठाया गया। प्याज के मामले में भी ऐसा ही हुआ था जब 2023 में सरकार ने प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था जो 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र में बड़ा मुद्दा बन गया था।
ऐसे में कृषि उत्पादन के आंकड़ों पर भी सवाल उठते हैं। क्योंकि पिछले साल 11.32 करोड़ टन गेहूं के बंपर उत्पादन के बावजूद सरकारी खरीद 266 लाख टन रही थी और निर्यात पर रोक के बाद भी घरेलू बाजार में गेहूं के दाम कम नहीं हुए।
वास्तव में, कृषि निर्यात को बढ़ाने के लिए कृषि उत्पादन को बढ़ाना बेहद जरूरी है। इसके अलावा विभिन्न कारणों से निर्यात पर पाबंदियां लगाकर किसानों को बेहतर दाम से वंचित रखने की नीति पर भी विचार करने की जरूरत है। किसानों को उपज का बेहतर दाम दिलाने में कृषि निर्यात अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिए खाद्य सुरक्षा और कृषि व्यापार के बीच सामंजस्य बनाए रखने की आवश्यकता है। उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने, उपज की बर्बादी कम करने, आपूर्ति श्रृंखला दक्षता में सुधार करने और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाकर यह यह सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है।
उत्पादकता और दक्षता बढ़ाने की दरकार
कृषि उत्पादन के मामले में भारत अभी विकसित देशों के साथ ही चीन से भी काफी पीछे हैं। ऐसे में उत्पादकता नहीं बढ़ने से हमारे उत्पादों का प्रतिस्पर्धी होने की भी चुनौती बनी रहती है। हालांकि फलों के मामले में हमने अंगूर, केला और अनार जैसे उत्पादों के मामले में बहुत तेजी से तरक्की की है। लेकिन इसे दूसरे उत्पादों में भी हासिल करना है जो 100 अरब डॉलर के कृषि निर्यात के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने की अहम कड़ी है।
निर्यात के लिए सरकार ने 2018 में नई निर्यात नीति के समय ही इस लक्ष्य की बढ़ने का कदम उठाया था, लेकिन अभी हम इस लक्ष्य से काफी दूर है। हालांकि 50 अरब डॉलर का स्तर एक टिकाऊ स्तर बन गया है। ऐसे में अब कदम इसे दोगुना करने की ओर बढ़ चले हैं और देश के किसानों की बेहतर आय के साथ खेती को अधिक आकर्षक कारोबार बनाने के लिए भी यह अनिवार्य शर्त है कि कृषि उत्पादों से किसानों को अधिक आय हो जिसमें निर्यात की भूमिका बड़ी है।